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"गीतिका"

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"गीतिका" पर्दे में जा छुपे क्यों सुन चाँद कल थी पूनम।कैसे तुझे निकालूँ चिलमन उठाओ पूनम। इक बार तो दरश दो मिरे दूइज की चंदा-जुल्फें हटाओ कर से फिर खिलाओ पूनम।।हर रोज बढ़ते घटते फितरत तुम्हारी कैसीजुगनू चमक रहें हैं बदरी हटाओ पूनम।।फिर घिर घटा न आए निष्तेज हुआ सूरजअब तो गगन

महा शिवरात्रि के परम पावन पर्व पर सादर प्रस्तुत गीतिका आप सभी को ॐ नमः शिवाय हर हर महादेव ॐ जय श्री महाकाल"गीतिका"अवघड़ दानी भोले बाबा संग में नंदी बैलानाचे गाए धूम मचाए भंग का रसिया छैलाआज गौरा की महलिया री अंखियाँ चार हो जाईडमडम डमरू की बोली रस रंग में फूले शैला।।शिव क

"गीतिका"काश कोई मेरे साथ होता तो घूम आता बागों बहारों मेंबैठ कैसे गुजरे वक्त स्तब्ध हूँ झूम आता यादों इशारों में पसर जाता कंधे टेक देता बिछी है कुर्सी कहता हमारी हैराह कोई भी चलता नजर घूमती रहती खुशियाँ नजारों में॥प्यार करता उन दरख्तों को जो खुद ही अपनी पतझड़ी बुलाते हैं आ

आधार- रोला छंद समांत- ओगे अपदांत "गीतिका"तकते मेरी राह, कहो कबतक भटकोगेरहते तुम चुपचाप, भला कैसे सुलझोगेहँसती कब दीवार, बिना खिड़की के खोलेइतनी सी है बात, न जाने कब समझोगे।।मन में होगी आस, पास आये कोयलियाबिना अधर के राग, सुर वीणा में भरोगे।।चाहत की बरसात, बदरिया छाए बरसेभौ

समान्त- आत, पदांत- निकली, मात्रा भार- 30"गीतिका" कहीं शादी की शहनाई कहिं गम की बारात निकली किसी ने गिरा दिया डफली तो डम की आवाज निकली शोर खुद के दामन से रुबरु होकर गुजरा अभी अभी इक से इक मिले तमाशबिन जब नम की सौगात निकली।। उठाकर निकले हैं भार मिलकर कुछ चिर परिचित कंधे बलभर आजमाते रहे जिसे

गीतिका, समान्त- आने, पदांत- के लिए, मात्रा भार- 28........ "गीतिका" सैलाब आते रहे हैं पानी बहाने के लिए नदियां उफ़न जाती हैं आफत भगाने के लिए दोनों की जदोजहद में तबाही के फेन देखिए हवायें भी चलती है किनारे सुखाने के लिए।। जाने कितने घर और बहेंगे अंधी सुनामी में सुना यह नमूना है परिंदों को

"गीतिका" यही परिवार है अपना यही दरबारे दर हमारा है यहीं हिलती मिलती हैं खुशियाँ यही संसार हमारा है इसे जन्नत कहो मन्नत कहो या बागवन ही कह लेना मगर खुदगर्जी का दामन मत कहो निस्बत हमारा है।। बहके हुए चलते जो कदम कुछ दूर जाकर लौटाते यहीं वह छाँव है शीतल यही शायद सम

"गीतिका" कभी दिल्लगी में कभी वंदगी में कभी जीत जाने की जिद जिंदगी में कभी सो गया मैं कभी खो गया मैं कभी फूल बन मैं खिला जिंदगी में॥ कभी द्वंद देखी कभी दी दुहाई कभी दामिनी गिर पड़ी जिंदगी में॥ कभी पस्त था मैं कभी सुस्त साथी कभी मस्त मौके मिले जिंदगी में॥ क

मापनी- 2221 221 221 222 "गीतिका" कुछ तो बात है आप के आशियाने में सबको छाप दिये एकही शामियाने में गुमशुम हैं लटकने खफा कहरदार लिए आपस में मशवरा मसगूल बतियाने में।। इक ही राग है हर मन की एक रागीनी इक ही तो अलाव है मुराद हथियाने में।। अहम चुनाव है अब नयी मशवरा देखें फिर आया मजा उनके घिघिया

मापनी- 2221 221 221 222 कुछ तो बात है आप के आशियाने में सबको छाप दिये एकही शामियाने में गुमशुम हैं लटकने खफा कहरदार लिए आपस में मशवरा मसगूल बतियाने में।। इक ही राग है हर मन की एक रागीनी इक ही तो अलाव है मुराद हथियाने में।। अहम चुनाव है अब नयी मशवरा देखें फिर

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