“मुक्तक” माँ जगत की अन्नदाता भूख को भर दीजिये। हों सभी के शिर सु-छाया संग यह वर दीजिये। उन्नति के पथ डगर पिछड़े शय शहर का नाम हो- टप टपकती छत जहाँ उस गाँव को दर दीजिये॥-१ माफ कर जननी सुखी सारे सिपाही आप के। बेटियों की हो रहीं कैसी बिदाई माप के। जी रहें अंधेर में बिजली चिढ़ा