“मुक्तक”
माँ जगत की अन्नदाता भूख को भर दीजिये।
हों सभी के शिर सु-छाया संग यह वर दीजिये।
उन्नति के पथ डगर पिछड़े शय शहर का नाम हो-
टप टपकती छत जहाँ उस गाँव को दर दीजिये॥-१
माफ कर जननी सुखी सारे सिपाही आप के।
बेटियों की हो रहीं कैसी बिदाई माप के।
जी रहें अंधेर में बिजली चिढ़ाती है कड़क-
खो गयी है प्रगति पथपर भार कंधे बाप के॥-२
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी