"स्त्री" इस शब्द से और इसके पर्याय से आप सभी परिचित है। इस शब्द की संज्ञा मानव नस्ल के एक खास वर्ग को दिया गया है जिसे उस नस्ल में न के बराबर रखा जाता है।
हमने अक्सर हमारे समाज के शारीरिक परिपक्वता को पाए हुए व्यक्तियों से सुना है कि लड़कियां तो पराई होती है , वो पराई धन है , कुल को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी तो लड़को की होती है वही तो बुढ़ापे का एक मात्र सहारा है। भले ही वो सहारा उस अवस्था प्राप्त व्यक्ति से मुक्ति की कामना करता हो परंतु आवर्ती ज्ञानों के अनुसार पुत्र ही सबकुछ होता है। इस ब्रह्मांड को चलाने में केवल पुरुषो की भूमिका है उस आवर्तित ज्ञान का आशय हमेशा यही रहा है। हालांकि हम 21वी सदी के इंसान है मगर हमने अपने इतिहास को पढ़ा है और उस विशेष वर्ग को उपनिवेश वर्ग में हमेशा से बदला है और स्त्री वर्ग को उपनिवेश वर्ग बनाने की प्रक्रिया तो बचपन से ही बड़े सहज ढंग शुरू की जाती है । उनके खान- पान, रहन - सहन, बोल चाल , खेलकूद एवम अन्य क्रियाकलापों में औपनिवेशिक संस्कार इस तरह से भर दिए जाते है जिससे वो पूर्ण से उपनिवेश बने मगर उसमें भारत की तरह स्वराज की भावना न उत्पन्न हो ।
पूर्ण रूप से जब एक लड़की उपनिवेश बन जाती है तो उसे दूसरे देश( घर) के अधीन कर दिया जाता है और इससे लोगो की गरिमा बढ़ती है । कुछ अच्छे लोग है जो उसे स्वराज बनने में मदद करते है परंतु अन्य घटनाओं से भयभीत होकर और जिम्मेदारियों को बोझ समझकर परितंत्रता का समर्थन करते है । कुछ लोग उपनिवेश (गुलाम) बनाना एक अच्छा इंसान बनाना समझते है पता नहीं मानवता के तराजू में वो इन्हे कैसे नही समझ पाती है।
औपनिवेशिक प्रक्रिया इस कदर से चारो ओर व्याप्त है जो कि स्त्री वर्ग से उनके अस्तित्व को छीन लेता है और बहुतों को तो उनको अपने जीवन पूर्ण होने पर भी महत्व नही समझ आता । पुरुष प्रधान समाज में कुछ खास कैंसर भी है और कुछ ब्रेन ट्यूमर भी। दोनों में फर्क ये है को कैंसर (लोग) वाले स्त्री को पैर की धूल समझते है जिन्हे अपने मां का भी योगदान समझ नही आ पाता। ब्रेन ट्यूमर (लोग) वाले पर स्त्री गमन करके अपनी की स्त्री सुरक्षा पर भाषण भी देते है और दूसरो की शारीरिक संरचना की व्याख्या भी।
हालांकि अब तो स्त्री वर्ग उपनिवेश के साथ साथ भोग की वस्तु बनकर रह गई है। स्त्री वर्ग के प्रति प्रेम और विश्वास उनके साथ गलत हो जाने और उनके लिए कैंडल लेकर चलने तक ही याद रहती है । बाकी फिर अगले दिन दूसरे की बहन बेटी को वस्तु का उपमा देना एक परम धर्म बन गया है । जो वर्ग 2 परिवार , दो समाज , दो समुदाय के बीच सेतु का काम करता है कई तरह की रिश्तों के महत्व को बढ़ाता है , नौ माह तक एक जीव को धारण किए रहता है , सिर्फ एक ही नही बल्कि दो कुल की बढ़ाने की जिम्मेदारियों को निभाता है , अफसोस की बात है इस दौर में भी वही वर्ग असुरक्षित है ... दूसरो के साथ साथ अपनों से भी । भारत मां को तो उनकी संतानों ने मिलकर आजाद कराया है , मगर उसी मां की बेटियां अभी तक उपनिवेश बनकर खुशी खुशी रहने की कोशिश कर रही है । मगर जब भी चार दिवारियों के बीच भारत मां की बेटियों की आवाज दर्द से सिसकारी भरती हुई निकलती है ना तो उनका कलेजा फटकर टुकड़ों में तब्दील हो जाती है और उस मां के आशु भी उससे ये सवाल पूछते है , क्या सच में मैं आज़ाद हूं.. क्या मेरी बेटियां हमेशा दबी हुई आवाज़ रहेंगी या कभी उभरा भविष्य भी ।किसी भी निर्मम घटना से केवल उपनिवेश वर्ग का इज्जत जाता है और वो इज्जत शब्द कोई भावना नहीं है वो उसके शरीर का हिस्सा है जिससे किसी और ने जबरदस्ती भोग लिया और उसकी इज्जत चली गई😞। मगर ये इज्जत का सिद्धांत पुरुषो पर लागू नहीं होता है , इतिहास में भी 100 बीवियां रखने वाले राजा ताकतवर कहे जाते थे। इसका तो अभिप्राय यह भी निकलता है कि औरत ताकत दिखाने वाली वस्तु भी है जिसका भोग कर हम अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते है ... परंतु उसके लिए उसकी इज्ज़त लूट जाती है । करवा है मगर सच है ... पर स्त्री पर ध्यान देना और स्त्री सुरक्षा का ज्ञान देना बहुत आसान है। सती प्रथा तो खत्म हुई है मगर अब हमे उपनिवेश प्रथा को भी खत्म करने के तरफ कदम उठाना होगा वरना एक दिन सम्पूर्ण ब्रह्मांड की आवाज भी दब जाएगी ।🙂
अगर कुछ गलत लिखा हूं तो छोटा भाई समझ कर माफ करना और मेरा उद्देश किसी को ठेस पहुंचाना नही बल्कि नए और शिक्षित समाज का निर्माण करना है ।धन्यवाद ।।