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पहुंचते कम है जहाँ,
पहुंचाए ज्यादा जाते है
पैसो के दम पर देखो
क्या -2 खेल खिलाये जाते है
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सुनाई जाती थी जहाँ,
पंच परमेश्वर की कहानियाँ
देखो उस देश मे अब,
अन्याय के लिये घर जलाये जाते है
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कर्म नही जहाँ,
वहाँ धर्म कहाँ
जहाँ धर्म नही,
वहाँ शर्म कहाँ
अक्सर ऐसे हालातो में,
संतो के पाप छुपाये जाते है
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बोता है कोई,
खोता है कोई
फर्क नही पड़ता है,
लोकतंत्र की वेदी को
क्योकि ऐसे तमाशो से,
अक्सर वोट लुभाये जाते है
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जहाँ महिमामंडन होते हो,
वहाँ शुद्ध कर्म कहाँ होते होंगे
सागर ऐसे संतो में,
राम कहाँ बसते होंगे
यह बात अलग है कलयुग की
अब रावण,कंस ही पूजते होंगे
✍ स्वरचित...............
सुख सागर गौत्तम