यह दौर है उम्मीदों का
अभी हर सीने में आग है
छलनी है हर सीना यहाँ
शोषण उपेक्षा की मार से
आज भाई से भाई
मिला रहा है कदम
चाहत है बस एक
जिंदगी स्वाभिमान की
हर एक यहाँ अब
पूंछता है खुद से
तुम नहीं तो
कौन होगा
आज नहीं तो
कब होगा
तू क्यों फ़िक्र
करता है कल की
आज तो सँवार ले
छुट गया जो पीछे
बढ कर आज
थाम ले
बन जा नौका आज सबको
इस मझधार से तार दे