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4) हवेली से आती डरावनी आवाज़..

12 सितम्बर 2021

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" हवेली से आती डरावनी आवाज़।"


रात गहराती जा रही है। बारिश जोरों से हो रही है। सड़क किसी नाली कि तरह नजर आ रहा है।
हवाएं तेजी से प्रवाहित हो रही है जिसके चलते सड़क किनारे के वृक्ष हिले जा रहे है।
एक कार उसी सड़क पर अब नजर आने लगी।
कार के आगे लगी हुईं बत्तियां जल रही है पीले और संतरे रंग कि रंगत लिए।


" ये बारिश को भी अभी होना था। उफ! ऐसा लग रहा है मानों हम किसी बड़ी मुसीबत में फंसने वाले हो। देवर जी, जरा फुल स्पीड से कार ड्राइव कीजिए। नही तो रात इसी सड़क पर गुजारनी पड़ेगी।" विभा ने अपने देवर शौरभ से कहा। विभा अपने पति बृजराज सिंह के साथ  पीछे कि सीट में बैठी हुई है और शौरभ आगे कि ड्राइविंग सीट पर बैठा हुआ कार ड्राइव कर रहा है।

" भाभी! मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं लेकिन तेज बारिश और तेजी से चल रही हवाओं कि वजह से कार ड्राइव करने में दिक्कत आ रही है। रास्ता क्लियर दिख नहीं रहा है अब।" शौरभ ने कहा।

" भगवान करे कि बारिश कि रफ्तार और ज्यादा न बढ़े। काफ़ी पानी भरने लगा है सड़क पर। और ज्यादा मुश्किलें बढ़ जायेगी अगर बारिश रूकी नहीं तो।" बृजराज ने कहा।

" री... प. प।" तेज आवाज के साथ कार रूक गई।

"What happened?" विभा ने कहा।

" कार के इंजन में कुछ खराबी आ गई है। स्टार्ट नहीं हो रही है कार।" शौरभ ने कहा।

" चलो कार से उतर कर इसे धक्का देते हैं। शायद काम बन जाए?" बृजराज ने कहा।

तीनों कार से बाहर उतरे। बारिश में भीगते हुए तीनों ही कार को धक्का देने लगे। 


" भैया ,भाभी! वो देखिए। एक हवेली है वहां पर।" थोड़ी दूर पर नजर आ रही एक पुरानी हवेली कि ओर इशारा करते हुए शौरभ ने कहा।

" डरावनी दिख रही है। हम कार में बैठ जाते हैं। जब बारिश रूक जाएगी तब कोई सॉल्यूशन निकाल ही लेंगे।" विभा ने डरते हुए कहा।

" तुम भी ना,, चलकर उस हवेली के किसी भी आदमी से हेल्प मांग लेते हैं। बारिश में भीग चुके हैं हम और हवाएं तेजी से प्रवाहित हो रही है। बीमार पड़ गए तो सुबह का सूरज देख न पाएंगे। मेरी मानों चलो वहां और धक्का देते हुए कार को भी उस ओर ले चलते हैं। इंजन और भी ज्यादा खराब हो जाएगा कार में बारिश के पानी पड़ते रहने से।" बृजराज ने विभा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
थोड़ी न नुकुर करने के बाद विभा मान गई।
तीनों अब उस हवेली कि ओर बढ़ रहे हैं। विभा देखती है कि हवेली के पास सुखा हुआ पेड़ है और पेड़ कि एक शाखा पर रस्सी बंधी हुई है जिसमे एक कंकाल का गला उसी रस्सी से बंधा हुआ लटक रहा है। विभा डर के मारे चीख पड़ी।

" क्या हुआ?" बृजराज ने कहा। विभा उसके सीने से लगते हुए बोली–" कोई कंकाल है वहां पर, हवेली के पास। मुझे डर लग रहा हैं। जरूर ये भूतिया हवेली है। प्लीज मत जाओ उधर।"

" तुम एक नम्बर कि डरपोक हो। मैं और शौरभ है यहां पर तुम्हारे साथ। हमें तो कोई कंकाल दिख नहीं रहा है। तुम्हारा वहम होगा। रात में ऐसे डरावने ख्याल मन में नहीं लाने चाहिए। बारिश में भीगकर मरने से अच्छा है कि किसी से मदद मांगी जाए। वैसे भी तुम्हे बुखार हो जाता है बारिश के पानी में भीगने से। डरो मत और हमारे साथ चलो। ये हवेली नजर नहीं आती तो कार में बैठे– बैठे ठिठुरते रहते अभी। डरो मत मैं हूं ना।" बृजराज ने विभा को समझाते हुए कहा। विभा ने फीकी तरह से मुस्कुराते हुए हामी भरी। उसका डर अभी भी नहीं गया है।

तीनों अब हवेली के नजदीक पहुंच गए। कार को धक्का देकर साईड में खड़ा किया। विभा नजरे झुकाए बृजराज के पास खड़ी हुई है। 
"आ.. ओ.... आ... ओ..न..।"  तभी उसे किसी महिला कि हवेली से आती डरावनी आवाज़ सुनाई दी। लेकिन शौरभ या बृजराज को ये आवाजे सुनाई दे ही नहीं रही है।


" आपको कोई आवाज़ सुनाई दी क्या?" विभा ने पूछा।

" नही तो ! किसकी आवाज सुनाई देगी हमे यहां?" बृजराज ने कहा। शौराभ ने भी  "न" में सिर हिला दिया।

" कुछ नहीं।" माथे पर उभर रहे पसीने को हैंकी से पोंछते हुए विभा ने अनमने मन से कहा। विभा को समझ में नहीं आ रहा है कि उसे जो दिखाई देता है, उसे जो डरावनी आवाजे सुनाई दे रही है  बृजराज और शौराभ को क्यों न ही दिखाई दे रहा है और न सुनाई दे रहा है? 

तीनों हवेली के दरवाज़े पर खड़े हुए।

" कोई है क्या? प्लीज दरवाजा खोलिए? बारिश के रुकने तक हमें अपने यहां रुकने दीजिए थोड़ी देर। " शौरभ ने ऊंची आवाज़ में कहा। तभी बिजली कड़की। विभा डरकर बृजराज के हाथों को थाम लेती है।

" दरवाजा खुला हुआ –सा लग रहा हैं और शायद यहां पर कोई नहीं है।" शौरभ ने कहा फिर दरवाज़े को छूते ही, दरवाजा अपने आप खुल गया।
घुप्प अंधेरा है हवेली के अंदर। बृजराज ने बाएं हाथ में पकड़ी हुई टॉर्च जलाई।

बड़ा– सा हॉल नजर आया। देखा कि एक ओर सीढ़िया है ऊपर के कमरों में जाने के लिए। बेहद सुंदर है ये हवेली। लेकिन रात के अंधेरे में भयानक दिख रही है।

" चलो कोई नहीं है यहां। हॉल में जाकर आग जलाने कि कोशिश करते हैं किसी तरह । कपड़े भी नहीं ला पाए हैं अपने साथ, गीले कपड़ों में ही रहना पड़ेगा। शायद आग सेकेंगे तो कपड़े थोड़े सूख जाएंगे।" बृजराज ने कहा।
तीनों अंदर गए। फर्श पत्थरों के टाइल्स से बनी हुई हैं। एक जगह चिमनी के पास लकड़ियां बिखरी हुई रखी  है।

" वहां पर लकड़ियां है। मैं जाकर आग जलाने कि कोशिश करता हूं।" शौरभ ने कहा। वह चिमनी कि ओर बढ़ गया।
विभा के बगल में बृजराज खड़ा हुआ हवेली को गौर से देखने में लगा हुआ है।

विभा को अजीब सा महसूस हुआ। उसे लग रहा है कि कोई उसके ठीक पीछे खड़ा हुआ है। डरते हुए विभा ने पीछे कि ओर अपनी गर्दन घुमाई।

" न...हीं...।" विभा कि चीख निकली। उसने देखा कि कोई भयानक साया काले रंग का, जिसकी आंखे पूरी सफेद है, सिर के बाल लंबे है कंधो तक लटकते हुए, चेहरे पर भी काले बाल है वह खड़ा हुआ विभा को नजर आया था जिसे देखते ही विभा जोर से चीखी और फिर बेहोश होकर गिर गई। बृजराज और शौरभ घबरा से गए। विभा को के पास पहुंचे ही थे कि वह दरवाजा झटके के साथ बंद हो गया। दोनों हैरान रह गए।


" मैं तुम तीनों को मौत कि नींद में सुला दूंगी..। तुम तीनों के शरीर का खून पीने से मैं शक्तिशाली हो जाऊंगी और फिर इस हवेली से मुझे मुक्ति मिल जाएगी। हमेशा के लिए मुक्ति..। " इस भयावह हवेली से आती डरावनी आवाज़ गूंज उठी। विभा कि आंखे खुली। एक काली परछाई तीनों को उस दरवाज़े पर दिखाई दी। तीनों के रोंगटे खड़े हो गए।


"कौ.. न?" शौरभ ने हिम्मत करके कहा।
विभा कांपती हुई उंगलियों से अपने चेहरे पर आ रहे बालों को कान के किनारे करती हुईं बृजराज के सीने से लग कर अपना चेहरा छुपा लेती हैं।


" तेरी मौत......."। प्रचंड आवाज आई उस परछाई कि ओर से।
अब जाकर बृजराज और शौरभ को अहसास हुआ कि विभा सच बोल रही थी। दोनों ही पछता रहे हैं।

परछाई ने एक छलांग मारी। हवा में उड़ते हुए वह सीधे शौरभ के सामने आ खड़ी हुई। शौरभ कि घिग्घी बंध गई। तभी विभा को कुछ याद आया।
वो अब डर को काबू में करके उस काली परछाई को देखते हुए कोई सिद्ध मंत्र बोलने लगी, धीमे स्वर में।

ॐ ह्रीं श्रीं चक्रेश्वरी, चक्रवारुणी,
चक्रधारिणी, चक्रवे गेन मम उपद्रवं
हन-हन शांति कुरु-कुरु स्वाहा।


परछाई चीखने लगी। तड़पते हुए जमीन पर जा गिरी। बृजराज और शौरभ हैरानी और डर के मिले जुले भावों के साथ विभा को देखे जा रहे हैं।
थोड़े ऊंचे स्वर में विभा फिर उसी मंत्र को बोलने लगी।


देखते ही देखते परछाई चीखती हुई नगण्य होकर राख में तब्दील हो गई। विभा ने हाथ जोड़कर शीश नवाया।

" थैंक गॉड! हम तो बुरी तरह से फंस चुके थे। तुमने ये किया कैसे विभा?" बृजराज ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

" मुझे पहले से ही अहसास हो रहा था कि जरूर इस इलाके में कोई नेगेटिव एनर्जी है। मैं बहुत देर से अपना सिद्ध किया हुआ मंत्र याद करने में लगी हुई थी ताकि नेगेटिव एनर्जी से हम बच सके। फाइनली मुझे वो मंत्र याद आ ही गया और हम बच गए। वह चक्रेश्वरी देवी की मंत्र है। जो नेगेटिव एनर्जी से रक्षा करती है।" विभा ने उत्साह से भरे स्वर में कहा।

" Iam proud of you. I am very lucky to have a sister-in-law like you." 
("मुझे आप पर गर्व है।  मैं भाग्यशाली हूं जो मुझे आप जैसी भाभी मिली है। " ) – शौरभ ने खुश होते हुए कहा।
तीनों मुस्कुरा उठे और भगवान का आभार व्यक्त किया। 


" अब चले इस हवेली से बाहर या यहीं रहने का इरादा है?" कहकर विभा ने उन दोनों पर टेढ़ी निगाहे डाली।

" चलिए जल्दी यहां से।" दोनों एक स्वर में बोले।

हवेली से बाहर निकल कर अपने कार के पास गए। बारिश एकदम कम हो गई है।
कार में तीनों बैठे। शौरभ ने कार स्टार्ट कि तो कार स्टार्ट हो गया। तीनो खुश हो गए। कार अब तेजी से इस हवेली को अलविदा कहकर आगे बढ़ गया।




।। समाप्त।।


5
रचनाएँ
हॉरर स्टोरीज
5.0
कुछ डरावनी कहानियां।

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