
सपनें में भी सहम गयी वंदना सुन अपनी बेटी की चित्कार मानों पिंकी झकझोर रही है, कुछ समय पहले एक राक्षने दबोच लिया था स्कूल जाती हुई पिंकी को, ओर मसल दिया था मासूम कली को..! वंदना कुछ नहीं कर पाई थी, अभी तक न्याय नहीं मिला तो सपने में माँ से मानों असंख्य सवालों की गठरी खोल माँ से पूछ रही थी, उठो ना माँ पूछो तो सही उस भेड़िये की अंतरात्मा को क्या भूल सकता है वो उस काली अंधेरी रात को मेरे गूँगे से चित्कार को एक बेबस गुड़िया लाचार को..! मैं क्रुर पंजो से निबट रही थी जूझ रही थी नाखूनों की चुभन से उठते शूल से क्या इत्तू सी भी यातना मेरी नज़र ना आयी थी उस ज़ालिम को उठो ना माँ देखो तो सही ये खून से लथपथ गुप्तांग मेरे माँ दवा लगा दो दुख रहा है, टूट रहा हर एक अंग..! माँ पूछो ना उस अंकल को काँपती नहीं क्या रुह उसकी रात के सन्नाटे में कभी याद आती है जब-जब मेरी बेबसी क्या चैन की नींद वो सो सकते है,नोचकर एक मासूम सी कली..! क्या बंद आँखों के भीतर कभी झांकता नहीं चेहरा मेरा हाथ फैलाकर इंसाफ मांगता..! माँ पूछो ना उस पापी से क्या मिला मेरी बलि चढ़ाकर,चंद पलों की हवस बूझाकर रोंद दिया मेरे वजूद को..! बस इतना सा पूछ लो ना माँ खून का रंग तो धो लिया रुह पे पड़े मेरे आँसूओं के बोझ को हटा पाएगा वो..! सपनें में भी हिल गई वंदना क्या-क्या सहा होगा मेरी बेटी ने की इतने दर्द से कराह रही है, बेटी की फ़रियाद ने, तड़प ने नींद उड़ा दी, नींद में भी आँखों से टपक पड़े आँसू सुनकर बेटी की चित्कार को, कभी किसीका बुरा ना चाहने वाली वंदना के मुँह से एक हाय निकल गई, हे उपर वाले अगर तेरी हस्ती है अगर कहीं तो उस दरिंदे को एसी सज़ा देना की उसकी रूह काँपने उठे ओर फूट-फूट कर रोने लगी।।
beti bachao
beti bachao beti padhao yojana