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तो क्या हुआ की

1 फरवरी 2022

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"तो क्या हुआ की"
मेरी आँखें एक सुहाना सफ़र मेरे घर की दहलीज़ से उसके घर की खिड़की तक हररोज़ तय करती है, क्यूँकी मेरे सामने वाली खिड़की में इक चाँद का टुकड़ा रहता है। उस हूर परी की एक झलक पा लूँ तो आशिक नहीं तो देवदास सी फीलिंग आती है। वो तितली सी कोमल, पतली, गोरे गुलाबी गालों वाली प्यारी सी लड़की खिड़की से झाँकती है जब नीलगगन की ओर अपलक देखते तब मेरी आँखें उसे निहारती है। मन करता है ज़ाहिर हो जाऊँ और उसकी ज़द में वसन कर लूँ।
बहुत देख लिया उसे फूलों में, चाँद में, कल्पनाओं में, सपनो में,मेरे उदासीन एकांत में तो मैं अव्वल दर्जे का प्रेमी हूँ दिल फ़ाड़ कर बरसता हूँ मेरे तसव्वुर में उस सुंदर ललना पर। पर सोचता हूँ क्यूँ ना अब उस कमसिन को पाने की कोशिश की जाए ? अपने असीम प्रेम के ज्वालामुखी पर इतना तो यकीन है मुझको की उस हिमशीला को पिघला सकता हूँ। पटाना या रिझाना नहीं पाना है भँवरा बन पंख़ुड़ी को।
अब नीरस सी ज़िंदगी में किसी अपने का अभाव खटकता है। ददनलदिऐपर वो शुक्र तारें सी झिलमिलाती ओर मैं चाँद दूज का मेल होगा क्या ?
पर अनकहे अनबरसे व्योम कहलाने से बेहतर है बरसा दूँ अपनी चाहतों की सुराही से कुछ नशीली बूँदें शायद मेरी स्याह रातों के गहरे आसमान में भर दें अपनी चाहत के इज़हार की झिलमिलाती रोशनी।
उसके पद चिन्हों पर रोज़ चलता हूँ उसे छूने भर सा महसूस करने। जहाँ-जहाँ छूती है वो हर जगह को चुमता हूँ, इस गलियारे के कण-कण को छुआ है मैंने बस अब कोई लापरवाही नहीं करनी बिछा देना है दिल उसके कदमों में, "उसके एहसास की नमी को छूना नहीं पीना है" पर सीधे जाकर कहूँ या ऑनलाइन धीरे-धीरे नज़दीक लाकर ?
कुछ समझ में नहीं आ रहा, दिल की अंजुमन में एक सुंदर विचार उभरा मानों मेरी स्वप्न परी ने संदेशा दिया, क्यूँ ना कलम को ज़रिया बनाऊँ और कविता को प्रेम दूत, इतनी मरहमी प्रेमिका से इज़हार का बेनमून सुझाव लो लिख लिया मैंने शब्दों के ज़रिए मोहब्बत को उडेल दिया कागज़ के सीने पर..!

मेरे जीवन के उत्सव सी हंसिका, 
हाँ यही तो नाम है तुम्हारा धवल उजली चाँदनी सा रुप, सुनहरे केश और आपस में लिपटी दो कलियों से होंठ। होंठों के उपर वो छोटा सा तिल शायद रब ने जानबूझकर दिया है मेरी अमानत को किसीकी नज़र ना लगे, आँखें है या झील उस पर कहर ढ़ाती काजल की धार,  सुराही सी गरदन, बल खाती कमर और नखशिख रति से रुप की हाला..! 
सुनो, इस नाचीज़ की इल्तिजा है छोटी सी, शायद सदियों से तुम्हारी तलाश में भटक रहा हूँ रोज़ मरता हूँ तुम पर, मेरे बेपनाह इश्क को अपना कर मेरे अधूरेपन को पूरा कर दो...अगर मेरा प्रेम स्वीकृत है तो आज शाम सूरज डूबने की बेला पर वही नीला कुर्ता पहनकर आना जो तुम्हारे रुप पर चार चाँद लगाता है, में समुन्दर की गीली रेत पर शाम 6 बजे तुम्हारा इंतज़ार करूँगा। 
तुम्हारे प्यार में पागल एक आशिक, 
तुम्हारे घर की सामने वाली खिड़की वाला।
ओर ये प्रेम पत्र पड़ोस में रहती उर्मि भाभी की छोटी सी गुड़िया रैनी के हाथों भिजवा दिया हंसिका के कोमल हाथों में। धूमिल शाम को प्रियतमा के इंतज़ार में बेकल दिल लिए एक घंटा पहले ही पहुँच गया समुन्दर किनारे। अंतरंगी मन के सतरंगी खयालों के साथ मन में एक डर गोते खा रहा था। क्या सोचती होगी वो, क्या फैसला लेगी एसा भी नहीं की वो मुझे जानती नहीं, आते जाते बहुत बार आमने-सामने हुए। मैं नज़रों से उसे पी लेता और वो कनखियों से एक नज़र भर देखकर नज़रे झुका लेती थी।
वो गीतांजलि सी मेरी मेहबूबा राज करती है इस दिल पर कोई कमी नहीं ज़िंदगी में फिर भी उसके बगैर सब अधूरा सा। मन के तरंगों में बसी बस अब घर में उजाला कर दें।
खयालों के समुन्दर में उठती लहरों को छानती मेरे मोबाइल में मैसेज की घंटी बजी। खोलकर देखा तो लिखा थी आप जहाँ खड़े हो वहाँ से बाँई ओर तकरीबन पचास कदम दूर जो घाटी दिखती है उसके पीछे चले आओ। अरे ये किसका मैसेज हो सकता है कहीं हंसिका का तो नहीं। शायद वही होंगी इस जगह पर ओर कौन बुला सकता है। मेरी ज़िंदगी का फैसला पचास कदम दूर दूसरे छोर पर उस घाटी के पीछे छुपा था। जैसे कोई तलबगार टूटी सुराही को टकटकी बाँधे देखता रहता है ठीक वैसे मैं उस घाटी को बेसब्री से देख रहा हूँ। फिर डर ने सर उठाया ये मोहब्बत एक तरफ़ा हुई तो? सरगम सजें साजों से लबरेज़ दिल को ठेस तो नहीं लगेगी चाहत की विणा टूट तो नहीं जाएगी, इकरार के फूल बरसेंगे या इन्कार के केकटस जो भी हो आज ये पचास कदम का फासला तय करना जरूरी था मेरे ज़िंदा रहने के लिए। 
धीमी लय में चलता हुआ उस घाटी से महज़ दस कदम दूर था की एक साया दिखा मेरी सोन परी हंसिका का। "मैं आँखें बंद किए उस मंज़र को महसूस करने लगा कल्पनाओं को पर देते अपनी ही धून में"
महसूस कर रहा था मानों हंसिका की कोमल आवाज़ कानों से टकरा रही है मधुर तान में शायद मुझे ही पुकार रही हो "बहारों मेरा जीवन भी सँवारो कोई आएँ कहीं से" बड़ी कैफ़ियत से मीठे सूर में हंसिका गा रही है, एसा महसूस होता था मानों प्रीत के हर रुप को चुन-चुनकर अपनी आवाज़ में गूंथ रही थी बहुत बार सुना था ये गाना पर इस कोमलता का अनुभव आज पहली बार हुआ।
हवाएँ जैसे मालकौंस छेड़ रही थी और आसमान विणा के तार बन गए पूरी कायनात से सुमधुर संगीत मानों करवट ले रहा था। मेरे दिल के भीतर खलबली मचाते असंख्य धुन बज रही हो, मानों इस रुप परी की आवाज़ से सदियों से मेरा राब्ता रहा हो।
मानों मेरी आहट को पहचानती हो हौले- हौले से सुराहीदार गर्दन घुमाती बंद आँखों से गाने की आख़री पंक्तियाँ गुनगुनाते पलकें उठा रही थी। शाम की बेला में परिंदे नीड़ागमन करते चहचहाते मानो कोरस के रंग पूर रहे थे।
मुझे देखते ही उसके नाजुक लबों पर हंसी की धनक खिल गई। अकेले में उनसे लाखों बातें बतियाने वाला मैं इस वक्त हलक से एक शब्द नहीं निकल रहा था। क्या बोलूँ, इतनी सुंदर लड़की  जिसको पिछले 2 सालों से देख-देखकर जी रहा हूँ जिसे पाने के सपने देख रहा हूँ उसके मुख़ातिब होते ही ज़ुबाँ सिल गई थी।
दिल तो कर रहा था चिल्ला-चिल्ला कर प्यार का इज़हार कर लूँ, मेरी असमंजस को शब्दों में ढ़ालती वो बोली हहहममम तो आप जनाब हमसे बेपनाह मोहब्बत करते है? मैंने हाँ में सर हिलाया तो वो बोली अच्छा तो फिर बकायदा इज़हार भी करो, बताओ क्या तोहफा लाए हो मेरे लिए, कुछ गुलाब सुलाब चाॅकलेट वाॅकलेट या अंगूठी वगैरह? 
मैं हक्का-बक्का रह गया ये खयाल तो आया ही नहीं तसव्वुर में लाखों बार इन सारी चीज़ों के साथ इज़हार किया आज जब साक्षात उसके सामने करना था तो मैं बुद्धुराम खाली हाथ चला आया था। कुछ नहीं सुझा तो मैंने बोल दिया मुझे क्या पता था आपको मेरा प्यार मंज़ूर है भी या नहीं अगर जानता तो जरूर लाता। उसने रूठते हुए कहा ऐसे बुद्धु से कौन प्यार करें जो मेहबूबा से पहली बार खाली हाथ मिलने आए। मैं खिसीयाना हो गया तो उसने अपने पास पड़ी बैग में से एक लाल गुलाब और बड़ी वाली चाॅकलेट मेरे हाथ में थमा दी और मेरी आँखों पर अपनी नाजुक खुशबूदार हथेली रखकर मेरे गाल को चुमते कहा सुनो मेरे प्यार, ये पगली भी आपसे बेइंतेहाँ मोहब्बत करती है उस दिन से जिस दिन तुम्हें पहली बार अपनी ख़िड़की से मुझे झाँकते हुए देख लिया था। पर कोई इतना समय लगाता है क्या प्यार का इज़हार करने में जब तक की मेहबूब की डोली किसी ओर के आँगन उतर न जाए।
उसके मुँह से निकला एक-एक शब्द मेरे कानों में मिश्री घोल रहा था। वो मेरे इतने करीब थी की उसकी महकती साँसे मेरा इमान डगमगा रही थी विवश था मैं पहली ही मुलाकात थी वरना ......
बहुत देर मुझे आँखें बंद किए कल्पनाओं में उलझे देखते थक गई वो तो मुझे झकझोरते जगाया। मैं हक्का बक्का रह गया, ओह्हह तो अब तक मेरे खयालों में ही हमारा इज़हार इकरार हो रहा था, मैं सौरी कहते उसे एकटक देखता ही जा रहा था पर वो हाथ के इशारे से कुछ समझाने की कोशिश करने लगी तो मैंने मुस्कुरा कर पूछा मेरी चिठ्ठी पढ़ी ? तो उसकी आँखों से सावन भादों बरसने लगे उसने जीभ बाहर निकालते इशारों में कहा की वो बोल नहीं सकती...!! 
"गूँगी है"
मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गई उपर वाले का अन्याय देखकर, इतनी सुंदर, इतनी प्यारी लड़की के साथ ईश्वर ऐसा कैसे कर सकते है।  "पर एक पल को भी उसके लिए मेरी भावनाओं ने पीछेहठ नहीं की" तो क्या हुआ की वो बोल नहीं सकती महज़ इस बात से उसके लिए मेरा प्यार कम कैसे हो सकता है। आज के बाद मेरी ज़ुबाँ से बोलेंगी वो, या तो मैं खुद बोलना बंद कर दूँगा।
मैंने उसे पास बिठाकर कहा मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता तो क्या हुआ तुम बोल नहीं सकती, मैंने सोच समझकर तुमसे प्यार नहीं किया था रूह की गहराई से तुम्हें चाहता हूँ। तुम मेरी अमानत हो बस इतना बता दो की तुम मुझे प्यार करती हो की नहीं ?
उसने मेरी कल्पना में देखा वाकिया दोहराया अपनी नाजुक खुशबूदार हथेली मेरी आँखों पर रखकर मेरा गाल चुम लिया। 
मैंने उसे अपनी आगोश में भर लिया और हम दोनों प्रीत के गर्म आबशार में नहा रहे थे। ऐसा महसूस हो रहा था मानों एक ही चटाई पर लेटे है, ना टांके, ना फांके ना कोई कड़ी बस दोनों को जोड़े हुए चाहत के रेशम की एक रेखा थी एक ही लोई से बेली गई। वो शीशे सी नाजुक मेरी आत्मा में टेर लगाती उतर रही थी मेरे रोम-रोम में। मेरे भीतर का खालीपन भर गया था उसकी मौन मुलायम गूँज से। मैं उसका होकर, उसके साथ, उसका हाथ थामें बुढ़ा होना चाहता हूँ ओर मैं समर्पित सा झुक गया अपनी आराध्या के प्रति शिद्दत वाले इश्क में। जिसे पाना मुश्किल लग रहा था कभी आज वो दामन मेरे हाथ से बँधा था, इस मधुर मिलन का स्वागत करते समुन्दर की लहरों ने उफ़ान के साथ भीगा दिया ज़ोर से हम दोनों को और वो सिहर कर मेरी आगोश में समा गई।।
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु) #भावु
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