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"परिचय" मैं बेंगलोर से भावना ठाकर एक छोटी सी रचनाकार हूँ, पढ़ना लिखना और संगीत सुनना मेरे शौक़ है। मैं कविताएँ, कहानियां और हर विषय पर लेख लिखती हूँ। देश के लगभग बहुत सारे राज्यों में मेरे लेख कविताएँ और कहानियाँ छपती है। साहित्यिक सफ़र में दो अवार्ड से सम्मानित हूँ, साथ ही 120 से ज़्यादा डिजिटल सर्टिफिकेट से सम्मानित हूँ। मेरे 5 साझा संकलन पब्लिश हो चुके है, और खुद का एकल काव्य संग्रह "चंद बूँदें मेरे तसव्वुर की" प्रकाशित हो चुका है। इस किताब में पहली बार कुछ महिलाओं के जीवन में घट रही घटनाओं को अपनी कल्पनाओं को उड़ान देते शब्दों के ज़रिए सहज, सरल भाषा में पिरोने का प्रयास किया है। सारी रचनाएँ अपनी रूह की कलम से लिखकर इस काव्य सागर को आपके समक्ष रख रही हूँ। और चाहती हूँ कि मेरी इस कल्पनाओं की खट्टी-मीठी यात्रा में हंसी, खुशी, प्रेम, विरह, दर्द, नफ़रत और आँसूओं से भरी शब्दों की पतवार संग भावनाओं की कश्तीयों में बैठकर शब्दों का समुन्दर पार करें। आशा करती हूँ पढ़ कर आपके मन में भावसान्द्रता का सैलाब उठे। आपके प्रतिभाव के इंतज़ार में मेरी लेखनी नविन उर्जा का स्त्रोत भरने के लिए बेताब है, इस स्त्री विमर्श संग्रह के न्यायधीश मेरे सारे पाठक होंगे, मेरी कलम को कितना न्याय देना है ये मैं आप पर छोड़ती हूँ। धन्यवाद। भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर

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साप्ताहिक लेखन प्रतियोगिता2022-02-20

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स्त्री विमर्श

स्त्री विमर्श

इक्कीसवीं सदी में भी कुछ नारियों के लिए कुछ भी नहीं बदला। बेशक कुछ महिलाओं के जीवन में परिवर्तन आया है, पर आज भी कुछ मर्दों के दिमाग में पितृसत्तात्मक वाली सोच पल रही है, जिसका खामियाजा कुछ स्त्रियाँ भुगत रही है। मेरी यह किताब उन्हीं महिलाओं को समर्प

25 common.readCount
33 common.articles
common.personBought

ईबुक:

₹ 53/-

प्रिंट बुक:

168/-

स्त्री विमर्श

स्त्री विमर्श

इक्कीसवीं सदी में भी कुछ नारियों के लिए कुछ भी नहीं बदला। बेशक कुछ महिलाओं के जीवन में परिवर्तन आया है, पर आज भी कुछ मर्दों के दिमाग में पितृसत्तात्मक वाली सोच पल रही है, जिसका खामियाजा कुछ स्त्रियाँ भुगत रही है। मेरी यह किताब उन्हीं महिलाओं को समर्प

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"शृंगार रस"

"शृंगार रस"

प्यार इश्क मोहब्बत की परिभाषा

निःशुल्क

"शृंगार रस"

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प्यार इश्क मोहब्बत की परिभाषा

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ज़िंदगी के रंग कई रे

ज़िंदगी के रंग कई रे

कभी-कभी इंसान अपेक्षाओं के पीछे भागते तमस की गर्ता में चले जाते है जहाँ से उभरना नामुमकिन होता है किसीकी किस्मत अच्छी होती है जिसे ईश्वर कृपा से कोई उस दलदल से बाहर निकालने में मदद करता है। एक ऐसी ही औरत की कहानी है।

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ज़िंदगी के रंग कई रे

ज़िंदगी के रंग कई रे

कभी-कभी इंसान अपेक्षाओं के पीछे भागते तमस की गर्ता में चले जाते है जहाँ से उभरना नामुमकिन होता है किसीकी किस्मत अच्छी होती है जिसे ईश्वर कृपा से कोई उस दलदल से बाहर निकालने में मदद करता है। एक ऐसी ही औरत की कहानी है।

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ज़िंदगी के रंग कई रे

ज़िंदगी के रंग कई रे

कभी-कभी इंसान अपेक्षाओं के पीछे भागते तमस की गर्ता में चले जाते है जहाँ से उभरना नामुमकिन होता है किसीकी किस्मत अच्छी होती है जिसे ईश्वर कृपा से कोई उस दलदल से बाहर निकालने में मदद करता है। ऐसी ही एक लालायित औरत की कहानी है 'ज़िंदगी के रंग कई रे'

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ज़िंदगी के रंग कई रे

ज़िंदगी के रंग कई रे

कभी-कभी इंसान अपेक्षाओं के पीछे भागते तमस की गर्ता में चले जाते है जहाँ से उभरना नामुमकिन होता है किसीकी किस्मत अच्छी होती है जिसे ईश्वर कृपा से कोई उस दलदल से बाहर निकालने में मदद करता है। ऐसी ही एक लालायित औरत की कहानी है 'ज़िंदगी के रंग कई रे'

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ज़िंदगी के रंग कई रे

22 मार्च 2022
1
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"ज़िंदगी के रंग कई रे" (अनुसंधान)और चंदा बिरजू के साथ चल दी अपनी छोटी सी प्यारी सी दुनिया में वापस आज़ादी की साँस लेने।बिरजूने माँ के चरण छुएं और घर ले आया। सालों बाद चंदा ने बाहर की दुनिया में कदम रख

ज़िंदगी के रंग कई रे

22 मार्च 2022
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"ज़िंदगी के रंग कई रे" (भाग 1)धवल उजियारे आसमान में कहीं कोई मेघसभर बादल की परछाई भी नज़र नहीं आ रही चंदा ने चिंतित होकर गोपाल से पूछा।गोपाल क्या होगा इस साल हमारा बारिश के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे, प

शृंगार रस

15 मार्च 2022
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1 रसीले होंठअनार रस टपकाते तुम्हारे रसीले नाजुक लब पर ठहर जाऊँ भँवरे की गूँज बनकरलिपटी दो कलियाँ गुलाब की हो आपस में जैसे लुभा रही है मेरी अदाओं को।देखो ना भँवरे के चुम्बन के प्यासेकुँवारे स

पहलू में बैठूँ ज़रा

14 मार्च 2022
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ए हीरे की कनी सुनों,मेरी ज़ुबाँ पर ठहरे सवाल का सुमधुर स्वाद थोड़ा चख लो, सुनों क्या इज़ाज़त है पहलू में बैठूँ ज़रा,तुम्हारी बिल्लौरी सी चमकती आँखों का रंग देखना चाहता हूँ।धड़कन की धुन पर बजती तान

दूर है वो उजली भोर

11 मार्च 2022
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उनकी आज़ादी के लिए सदियों पहले प्रारंभ हुए यज्ञ में शब्दाहुति क्या दूँ, निरंतर धूनी जलती हो जिसकी रीढ़ पसीजते उम्र की वेदी पर बलि चढ़ते। विमर्श के समिध कब तक जलाऊँ आग के बदले जब धुआँ ही उठता

कोई तो इतिहास रचो

11 मार्च 2022
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"कोई तो इतिहास रचो"अपनी प्रिया का सुंदर स्वरुप देखना है अपनी आँखों में तो जैसे हो वैसे रहो, वफ़ादार साथी का साथ बनाता है सुंदर स्त्री को।उसके कदम से कदम मिलाओ चाँद की तरह चमकते उसकी राहों में रोशनी भर

लहू लूहान आत्मा

11 मार्च 2022
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तकती है जब वासना सभर आँखें उधेड़ कर रख देती है तितली के पूरे अस्तित्व कोकुछ कड़वे स्पर्श की भाषा समझतेमर जाती है आत्मा। ताउम्र उस दंश के निशान गढ़ जाते है मन की ज़मीन परधीरे-धीरे क

मैं इक्कीसवीं सदी की नारी हूँ

11 मार्च 2022
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"मैं इक्कीसवीं सदी की नारी हूँ"मुद्दतें हो गई हिसाब ही नहीं किया तेरा ए विमर्श तुझे झुकना होगा, मेरे हौसलों ने बगावत की है, घोर घटनाओं की आदी मेरी रीढ़ ने सर उठाकर आसमान छूने की तानी है।काटत

शिकस्त की आदी

11 मार्च 2022
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मेरी आँखों की पुतलियाँ खुशीयाँ पाने से डरती है, गम की बस्ती बसाए अश्कों के समुन्दर में रहती है।दर्द सहते उम्र बीती डरूँ हंसी से तो अपराध क्या मेरा, खुशियों की चद्दर छोटी मेरी वेदना का बड़ा वितान है।सि

हौसला हो तो हालात बदलते है

11 मार्च 2022
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"हौसला हो तो हालात बदलते है"थोपी गई विचारधारा का खंडन होता है जब सुजबुझ की प्रत्यंचा से तब क्रांति का आगाज़ होता है...नाशूर बना खामोश उत्पिड़न जब गवाह बनकर चिल्लाता है तब क्रूरता का हनन अवश्य होता है.

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