भूख से भयभीत अधिकतर भारतीयों की भीड़ ही भृष्टाचार करने को विवश होती है ,
हज़ारों सालों की गुलामी से त्रस्त भारतीय जनमानस किसी तरह स्वतंत्र तो हो गया परन्तु उनमे आज़ादी को लेकर स्वेक्छाचारिता और अनुशासन हीन प्रवर्ती को अपना लिया ,
उसकी एक मात्र वजह खुला लोकतंत्र और निरंकुश जीवन शैली ही थी साथ ही धर्म निरपेक्ष शासन व्यवस्था ने तुष्टिकरण के चलते कोई नीतिपूर्ण जनसंख्या सिद्धांत पर गौर ही नही किया ,
स्वतंत्रता प्राप्ति के 70 वर्षों बाद भी अगर भारत पिछड़ा हुआ और विकाश से अछूता रह गया तो उसमें देश की लचर लोकतान्त्रिक व्यवस्था और वोट बैंक की राजनीती के साथ साथ धार्मिक स्वतंत्रता भी काफी हद तक जिम्मेदार माना जा सकता है ,,
हमसे भी देर से स्वतंत्र हुवे कुछ राष्ट्र विकसित और
टेक्नोलॉजी को अपनाकर आज विश्व में अपना स्थान हासिल कर चुके हैं और भविष्य में उनके समृद्ध बनने के आसार भी दिखाई देते हैं उनकी बनिस्बत हमारी स्वतंत्रता हमे सिर्फ धर्मांधता और पिछड़ी रूढ़ि वादी मानसिकता को ही स्वतंत्रता और अपना अधिकार मान कर बैठ जाना ही हमारे लिए पिछड़ जाने का सबसे बड़ा कारण बन चूका है ,
आज नही तो कल हमे कड़े फैसे लेने ही होंगे खासतौर पर हमें सीमित संसाधनों को ध्यान में रखते हुवे बेतरतीब बढ़ती आबादी को ही सीमित करने का लक्षय लेकर चलना होगा ,हमारे लिए जापान और जर्मनी ही वो अर्थ सम्पन्न देश हैं जो रोल मॉडल बनने योग्य हैं ,
अतः भारत जैसे पिछड़े और अशीक्षi ग्रस्त देश को सम्रद्ध बनाने में अगर कोई त्रुटि दिखाई देती है तो निश्चित तौर पर प्रथम दृष्टया आदर्श जनसंख्या सिद्धांत का अभाव व् सख्त कानून की कमी ही है !!