shabd-logo

जिंदगी एक झूला है

19 जून 2020

307 बार देखा गया 307
featured imageज़िंदगी एक झूला है साहब अगर पीछे जाए तो डरो मत वह आगे भी आयेगा वह जितना पीछे जायेगा उतना ही आगे आयेगा उसी वेग से बस हौसला रख रख यकीं उस ऊपर वाले पर और करता रह अपना काम सहजता से, वे मोटे दरख़्त उनके पुष्पजों के मानिंद जो झेल कर झंझावातों को हिलते रहते हैं खुशी से और गिरकर भी उग आते हैं कई बार उसी जमीं पर , बस जज़्बा रख जैसे करती रहती हैं नन्हीं चीटिंयाँ अपने अंडों और अपने आहार की उचित व्यवस्था उठाये रहती हैं उनका भार इधर से उधर, उधर से इधर, वह रौंधी जा सकती किसी के पैरों तले फिर भी करती रहती है अपना काम भयमुक्त होकर बस हिम्मत रख अमृता की लताएँ प्रतिकूल मौसम में पात हीन होकर भी रहती है पेड़ों पर सवार अपनी ऊर्जा को करती रहती है सिंचित और फिर हरी भरी हो जाती हैं बनती हैँ रोग मुक्ति का उपाय| बस भाव रख होते हैं कई बार कई काम धीरे-धीरे धीरज से बस धैर्य रख हमेशा से दुनिया उम्मीदों पर कायम रही है बस उम्मीद रख दैदीप्यमान नक्षत्र गृह, तारागण जिनकी चमक ग्रहण से कम हो जाती है, लेकिन प्रतिभा कहाँ छुपती है अधिक समय तक वे निकल आते हैं फिर अपनी तेजोमयता और शीतलता के साथ बस चाहत रख कहर फैलता है तो फैलने दे, फैला है हर युग में यह, और प्रत्येक बार-अमानव इसे फैलाते रहेंगे, मानव बन रख दूरियां सम्भल कर चल तैयारी रख निकल बस सावधानी रख सूखी लकड़ी नहीं है तू जो टूट कर गिर जायेगा समय का इंतजार कर झूले के वेग की तरह ही सूद समेत सब मिल जायेगा, बस आस रख जिंदगी एक झूला है साहब पीछे जायेगा तो आगे भी ज़रूर आयेगा| उसी वेग से हवा की तरह हल्का होकर| -डाॅ. भूपेन्द्र हरदेनिया

डाॅ भूपेन्द्र हरदेनिया की अन्य किताबें

1

जिंदगी एक झूला है

19 जून 2020
0
0
0

ज़िंदगी एक झूला है साहबअगर पीछे जाए तो डरो मतवह आगे भी आयेगावह जितना पीछे जायेगाउतना ही आगे आयेगाउसी वेग से बस हौसला रखरख यकीं उस ऊपर वाले परऔर करता रह अपना काम सहजता से,वे मोटे दरख़्तउनके पुष्पजोंके मानिंदजो झेल कर झंझावातों को हिलते रहते हैं खुशी सेऔर गिरकर भी उग आते हैंकई बार उसी जमीं पर ,बस जज़्

2

जनपदीय भारत में अन्त्यजीय संवेदना का धर्मशास्त्र(डॉ. देवेन्द्र दीपक के कविता संग्रह ‘मेरी इतनी-सी बात सुनो की समीक्षा)समीक्षक-डॉ. भूपेन्द्र हरदेनिया

19 जून 2020
0
0
0

आज के साहित्यिक परिवेश में दलित चिंतन एक विमर्श के साथ एक गम्भीर मुद्दा भी है|  विषय उन दलितों का जिन्हें आज हम पंचम वर्ण या अन्त्यज भी कहते हैं। ‘चातुर्वण्यं मया सृष्टं‘ कहते हुए गीता में भी कृष्ण ने बताया था कि संसार में उनके द्वारा सिर्फ चार वर्णाें का ही सृजन हुआ है, लेकिन समाज के उच्च वर्ग की स

3

आत्मचेतस् से सम्पृक्त लोकचेतनावादी कविता संग्रह (ऑंख ये धन्य है-नरेन्द्र मोदी, अनुवाद अंजना संधीर) -डॉ0 भूपेन्द्र हरदेनिया

19 जून 2020
1
0
0

आचार्य भरत का कथन है-सा कविता सा बनिता यस्याः श्रवनेने स्पर्शनेन च।कवि हृदयं पति हृदयं सरलं-तरलं सत्वरं भवति।।अर्थात् एक सुन्दर और श्रेष्ठ कविता वही है जो अपने श्रोता, पाठक, सहृदय का उसी प्रकार साधारणीकरण कर दे जिस प्रकार एक सुन्दर स्त्री अपने पति के हृदय को आल्हादित कर उसका सरलीकरण कर देती है, उसे

4

मोदी युगीन लोकधर्मिता की स्पष्ट बयॉंवाजी ‘मोदी युग‘- प्रो. संजय द्विवेदी की पुस्तक मोदी युग की समीक्षा

19 जून 2020
0
0
0

अभी हाल ही में प्रकाशित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति श्री संजय द्विवेदी की एक पुस्तक ‘मोदी युग‘ काफी चर्चा में है। सौभाग्य से यह पुस्तक मुझे भी प्राप्त हुई। इस पुस्तक का अवलोकन करते समय संजय जी के आलेखों से जब मैं रू-ब-रू हुआ  तो मुझे लगा कि इस पुस्तक को ल

5

मुरैना जिले की लोक देवियॉं-मत, मान्यता और परम्परा

20 जून 2020
0
0
0

संक्षेपिका-मानव की सांस्कृतिक क्षमता का रहस्य उसकी जैविक रचना में निहित है। जब किसी संस्कृति के आधारभूत मूल्य किसी समाज के बहुसंख्यक वर्ग को प्रेरित करना बन्द कर देते हैं, तो क्रमश: संस्कृति का अवसान हो जाता है, लेकिन अगर ये मूल्य एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संवाहित होते रहते हैं, तो संस्कृति वैयक्तिक

6

एक दिन पिता के लिए

21 जून 2020
0
0
0

प्रकृति के समानत्याग की प्रतिमूर्ति कोसागर सी भावमय अतल गहराई कोअंबर सी ऊँची प्रेरणाओं कोअसंख्य प्रोत्साहनों कोशीतल बयार से फैले अहसासों कोवटवृक्ष सी घनी छाँव कोधरती के समान भार वहन करने कीअसीम शक्ति उसके विस्तार को सृष्टि के साक्षात ईश्वर कोएक बिन्दु में समेटने जैसा निरर्थक प्रयास हैपितृ दिवस|इस शब

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए