मनुष्य की कीमत को पहचानों,,
राम -राम सा ।।।
**एक बार फिर मेरे लिखने के प्रयास को सफल बनाने मे आप सभी अपना अपना सहयोग दें,,
•---आप सभी बुद्धिजीवियों को पुनःमेरा राम राम सा•----|||
में दिल की बीमारियों से बचने के लिए आजकल दिल से लिखना और सोचना कम कर दिया हूँ,,लेकिन मनुष्य की घट रही कीमतों ने मुझे लिखने के लिये विवश कर दिया,,मैंने सोचा आज इस पर अगर कुछ नहीं लिखा तो आने वाले युग मे बहुत अनर्थ हो जायेगा,, में आशा करुंगा •--
सभी मनुष्यों मे मेरे इस लेखन से मनुष्य को अनमोल बनाने की चेतना जागे,,
एक समय था,जब हर क्षेत्र मे मनुष्य की कमी थी,,दूर -दूर तक कोई मनुष्य से मिलाप नहीं होता था,, मानव -मानव को देखकर प्रसन्न होते थे,, मिल बांटकर खाते थे,मिल जुलकर रहते थे,उनके जीवन की कथाओं से प्रत्येक मनुष्य को एक दूसरे के काम मे सहायता करनी चाहिए,,जरुरत पड़ने पर अपनी उपस्थिति का अनुभव जरूर करावैं,,ना जाने क्या आशा लेकर व्यक्ति राह देखता है,अगर आप के पास कोई सामर्थ्य हैं,तो उस सामर्थ्य का परिचय अवश्य दें,यहीं मानवता होगी,,और प्रत्येक मनुष्य को मानवता का धर्म निभाना चाहिए,,लेकिन चिंता है इस बात की ,,
कि अब वो दौर चला गया ,, उस दौर को वापस लाने के लिए हम मनुष्यों को कठिन परिश्रम करना होगा,बहुत प्रयास करने होगें,,बहुत मेहनत करनी पड़ेगी,,त्याग जैसा तप और बलिदान जैसा बल प्रकट करना होगा,,
जीने की तरकीब नहीं, देखो मानव मरने की तरकीब डुडें हैं,,
यही मानव है, जिनमें कई नेक तो
कई गुडें हैं,,|||||आने वाला भविष्य बहुत खतरनाक साबित हो सकता है,इसलिए हमें अपने विचारों को बदलना होगा,विस्फोटक आबादी को रोकना होगा,,
क्योंकि ज्यों- ज्यों आबादी बढ़ती गईं ,
त्यों -त्यों मनुष्य की कीमत घटती गईं,घटती हुई कीमत का मुख्य कारण बढ़ती हुई जनसंख्या हैं,,लेकिन मुझे दुख है कि अभी भी मनुष्यों की बन्द अँख्या हैं,,राष्ट्र की आर्थिक कमजोरी का कारण भी जनसंख्या हैं,,फिर भी जानवरों का कत्ल हो रहा है,पशु-पक्षियों को मार रहे हैं,गायों की हत्या हो रही हैं,,में मनुष्यों से ही नहीं संसार के समस्त जीवों,प्राणियों से प्यार करता हूँ,,इसलिए मेरे कहने का मतलब यह नहीं कि फिर मनुष्य को काटा जाए,
लेकिन थोड़ी समझदारी अपना कर रोका जाए,,
हम आबादी के प्रति समझदार होगें,
तभी राष्ट्र के विकास मे भागीदार होगें
हम दो हमारे दो के नारे को भी अब बदलना होगा,,
तब ही राष्ट्र आर्थिक रूप से मजबूत होगा,,
हम मानवों ने ही संसार की बनीं हुईं सभी व्यवस्था को बिगाड़ा हैं,
जिससे अब ने कोई व्यवस्था बन पा रही हैं,और ने कोई बना पा रहा है,,आज अगर देखें तो मनुष्य की कीमत सड़ी हुई सब्जी के बराबर है,,
कभी कान्दा मंहगा हुआ तो कभी आलू मंहगा कभी टमाटर और आज मिर्ची की कीमत बढ़ गई
पर मुझे चिंता है,इस बात की कि मनुष्य की कीमत क्यूँ नहीं बढ़ रही हैं,,जैसे आप सबने सुना हैं,,गोल्ड मैन दत्ता फुगे की भी कीमत शून्य रही,,
फिर यह जीवन भर संघर्ष किस काम का ,क्या होगा परिणाम भी पता नहीं,फिर क्या हासिल करना चाहते हो,,संसार की सबसे अनमोल वस्तु""प्रेम""को तो तुम खो रहे हो,,अगर प्रेम जैसा रतन नहीं हैं पास मे तो फिर क्या मतलब तुम्हारे पास करोड़ों हो,,दूसरों के हक का छिनकर खाने की कुत्तों जैसी आदत को हम कब छोड़ेंगे,,
एक दूसरे का बदला लेने की आदत को हम कब मारेंगे,,
हम स्वार्थ की भावना से कब उपर उठेंगे,,
आज दाल बाटी खावौं अर हरी रा गुण गावौं ,,जैसा कथन किसी के मुख से सुनने को नहीं मिलता,,मिलता हैं लेकिन इस कथन से बिलकुल नहीं मिलता हैं,,आज तो प्रत्येक मुख पर कमवौ,कमावौ ,और भूखा ही मर जावौ,,न खावौ अर न किसी को खिलावौ,,जैसे कथनों की गूंज -गूंज रही हैं,चारों तरफ,किस किस से बचकर रहेंगे भाई इस भिड़ मे मनुष्य तो कम और ज्यादा से ज्यादा नजर आवै सर्प ही सर्प ,,अब सच्चे मनुष्य के पास कोई मंत्र तो हैं नहीं जो इन सर्पों पर चलाकर अपनी जोली मे दबा ले,,परन्तु मनुष्य को अपनी आत्मा मे विराजमान परमात्मा पर पक्का भरोसा है,,आखिर सम्पूर्ण संसार का सुधारा वो ही कर सकता हैं,,
इसलिए कहता हूँ,,,,,,,
क्षण-क्षण रा संकट मानव
थारा सावरियौं टालसी,,
क्षण-क्षण सिवरले सावरिया
ने मत कर मानव आलसी,,,,,
मेरे प्रभु •---
ब्रम्हा ,विष्णु,महेश
सूख दुख मे
संग रहे मेरे हमेश,,
•------विचारक
भाई मंशीराम देवासी
बोरुंदा --जोधपुर राजस्थान
9730788167