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अब नहीं हैं

17 जुलाई 2017

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सावन तो हर साल है आता; अब बस पेड़ो पर उसके झूले नही है पानी तो अब भी है बहता; बस उसमें कागज की किश्तियाँ नही है बचपन तो अभी भी है खिलखिलाता; बस उसमें मासूमियत नही है कहानियां तो अभी भी है सुनाने को; बस उसमें यादें बसी नही है कहीं गुजर हुआ आज भी है साथ; उससे मुलाकात का वक्त नही है ज़िन्दगी गुज़र तो रही है; बस उसको जीने का रस नही है मुस्कुराहटें तो अभी भी है लबों; पर अब उसमें भोलापन नही है भीड़ तो बहुत है आज भी यारों की; अब किसी में अपनापन नही है मोहब्बतें तो है आशिकों में आज भी; अब दिलों में दीवानापन नही है जवानी तो है जिस्म में अभी भी; अब लहू में गाढ़ापन नही है शरारतें तो है अभी भी; अब निश्छल बचपन नही है

नन्द किशोर कुमावत की अन्य किताबें

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

बचपन की याद दिला दी

17 जुलाई 2017

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अभी हारा नहीं हूँ

14 जुलाई 2017
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मैं अभी रुका हूँ थोड़ा थमा हूँ पर हारा नहीं हूँ नज़र अभी भी मुकाम पर है पैरो के छालो को देखा नहीं हूँ पीठ पर कई खंजर लहू बहा रहे है पर आखों से आंसू नहीं छलका हूँ विचारो की कश्मकश में उलझा है मन पर आस को छोड़ा नहीं हूँ निष्प्राण सा है तन पर दिल क

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मेरी मधुशाला

15 जुलाई 2017
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कभी जो अधरों से पिलायी थी तुमने प्रेम हाला अभी भी उस खुमारी में झूमु मैं होकर मतवाला ना मंदिर में ना मस्जिद में दिखे मुझे दुनिया बनाने वाला मेरा तो तू ही रब तू ही मेरा शिवाला मधु रस में डूबे सभी पर तू ही मेरा प्रेम प्याला तू ही साकी मेरा तुम ही हो हाला ज

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मेरा शहर

16 जुलाई 2017
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टूटते परिवारों का; बढ़ते मकानों काज़िंदा लाशो का; घटते शमशानों कामरते अरमानो का; भूलते अहसानो काबिछड़ते दोस्तो का; बढ़ते अनजानो काशहर हुआ मेरा कब्रिस्तानों कावक्त न होने का रोना है; वक्त पर रोना नही आताअजनबी तो बहुत मिलते है; अपना कोई मिलने नही आतासमय तो गुजर जाता है; सुकून कभी नही आताआते तो बहुत है यहा

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अब नहीं हैं

17 जुलाई 2017
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सावन तो हर साल है आता; अब बस पेड़ो पर उसके झूले नही हैपानी तो अब भी है बहता; बस उसमें कागज की किश्तियाँ नही हैबचपन तो अभी भी है खिलखिलाता; बस उसमें मासूमियत नही हैकहानियां तो अभी भी है सुनाने को; बस उसमें यादें बसी नही हैकहीं गुजर हुआ आज भी है साथ; उससे मुलाकात का वक्त नही हैज़िन्दगी गुज़र तो रही है; ब

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मेरा मरना

18 जुलाई 2017
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ख्वाबों का सिलसिला खत्म हुआ; आज में खुद ही ख्वाब हुआज़िंदा लाशो को छोड़; आज कब्रिस्तान में आबाद हुआबैठा अब सोचता हूं कि कैसे जीवन बर्बाद हुआमरा नही अभी तो धड़कनों का साज; ना-साज हुआमरना अभी शेष है; अभी कुछ धागे टूटना बाकी हैकुछ आंखों में अभी; मेरी यादों का पानी बाकी हैघरौंदे में अभी; रिश्तों के कुछ तिन

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