सावन तो हर साल है आता; अब बस पेड़ो पर उसके झूले नही है
पानी तो अब भी है बहता; बस उसमें कागज की किश्तियाँ नही है
बचपन तो अभी भी है खिलखिलाता; बस उसमें मासूमियत नही है
कहानियां तो अभी भी है सुनाने को; बस उसमें यादें बसी नही है
कहीं गुजर हुआ आज भी है साथ; उससे मुलाकात का वक्त नही है
ज़िन्दगी गुज़र तो रही है; बस उसको जीने का रस नही है
मुस्कुराहटें तो अभी भी है लबों; पर अब उसमें भोलापन नही है
भीड़ तो बहुत है आज भी यारों की; अब किसी में अपनापन नही है
मोहब्बतें तो है आशिकों में आज भी; अब दिलों में दीवानापन नही है
जवानी तो है जिस्म में अभी भी; अब लहू में गाढ़ापन नही है
शरारतें तो है अभी भी; अब निश्छल बचपन नही है