कभी जो अधरों से पिलायी थी तुमने प्रेम हाला
अभी भी उस खुमारी में झूमु मैं होकर मतवाला
ना मंदिर में ना मस्जिद में दिखे मुझे दुनिया बनाने वाला
मेरा तो तू ही रब तू ही मेरा शिवाला
मधु रस में डूबे सभी पर तू ही मेरा प्रेम प्याला
तू ही साकी मेरा तुम ही हो हाला
जीवन में आयी हो तुम बन मेरी मधुशाला
उलझनों में जकड़ा था मन निष्प्राण सा था तन
पिंजरे की कैद सा था ये जीवन
आशाओं के परो को बांधे हुए कट रहा था यौवन
कमी कुछ नहीं थी फिर भी एक प्यास थी
मुक्त हो गया इन ज़ंजीरो से जब तुम मेरे पास थी
अब नहीं डराता मुझको काल विकराला
जब से पिया है तेरे प्रेम का हाला
जीवन में आयी हो तुम बन मेरी मधुशाला
प्रेम का प्यासा मैं ही नहीं, है वो भी ऊपरवाला
वैदही बिना, बिना देह का हो गया था तारने वाला
कृष्ण के विरह में निष्प्राण हो गयी थी वृषभाना
शबरी के झूठन में घुली थी यही प्रेम हाला
विदुरे के खिलाई थी यही कदली छाला
सुदामा के अक्षतों में भरी थी यही अक्षय हाला
कृष्णा ने कृष्ण के घाव पर लगाया था यही मधु हाला
महारास की हर रात आज भी बरसती है ये हाला
इसी तरह तुम भी बन आयी हो मेरी मधुशाला