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अभी हारा नहीं हूँ

14 जुलाई 2017

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मैं अभी रुका हूँ थोड़ा थमा हूँ पर हारा नहीं हूँ

नज़र अभी भी मुकाम पर है पैरो के छालो को देखा नहीं हूँ

पीठ पर कई खंजर लहू बहा रहे है पर आखों से आंसू नहीं छलका हूँ

विचारो की कश्मकश में उलझा है मन पर आस को छोड़ा नहीं हूँ

निष्प्राण सा है तन पर दिल की धड़कन साज है अभी मरा नहीं हूँ

मैं अभी रुका हूँ थोड़ा थमा हूँ पर हारा नहीं हूँ


कदम लड़खड़ा रहे है पर मंज़िल के रास्तो से भटका नहीं हूँ

अकेला ही चल रहा हूँ पर किसी हाथ का इंतज़ार नहीं हूँ

अपनों ने दिल में लगायी थी जो आग कभी उसे बुझाता नहीं हूँ

आज जीता नहीं तो क्या अभी हारा नहीं हूँ

मैं अभी रुका हूँ थोड़ा थमा हूँ पर हारा नहीं हूँ





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