कश्मीर में हिन्दुओं का जिनोसाइड अचानक शुरू नहीं होता । कश्मीर को लेकर कहानी तो भारत की स्वतंत्रता से शुरू होती है, स्वतंत्र जम्मू-कश्मीर में कबिलाईयों द्वारा आक्रमण करके जब तक भारत सरकार की कागजी कार्यवाही होती तब तक एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया गया और उस हिस्से में आज एक भी मुस्लिम से भिन्न सम्प्रदाय का व्यक्ति नहीं रहता है। 1958 में मकबूल भट्ट नाम का एक व्यक्ति घाटी से पाक अधिकृत कश्मीर में जाता है और 1965 में अमानुल्लाह खान व अन्य साथियों के साथ मिलकर प्लेबिसाईट फ्रंट की स्थापना की गयी जिसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को भारत पाकिस्तान से अलग करके एक अलग देश बनाया जाये जहां सिर्फ कुरान का पालन व कुरान को मानने वाले लोग रहें । 1966 में मकबूल भट्ट कश्मीर घाटी लौट आया और अपने उद्देश्य पर काम करने लगा अनेकों अटैक किये संगठन बनाया । मकबूल भट्ट का इतिहास पढ़ सकतें हैं, 1977 में मकबूल भट्ट व अमानुल्लाह खान ने इंग्लैंड में शरण ली क्योंकि इंग्लैंड ही जहां दुनिया भर के आंतकवादी व भ्रष्टाचारी , क्रिमिनल लोग शरन लेंते है ।ये भागे क्यों इनका इतिहास पढ़ सकते हो सब पता चल जाएगा। 29 म ई 1977 बर्मिंघम में इन दोनों के द्वारा जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट की स्थापना की जाती है इसी बीच पाक अधिकृत क्षेत्र के कुछ हिस्से को इनके साथियों द्वारा आजाद कश्मीर घोषित कर दिया जाता है। 1982 में jklf की आज़ाद कश्मीर में प्रथम शाखा स्थापित की गयी और 1987 में भारत की कश्मीर घाटी में प्रथम शाखा और यहीं से शुरु होता है मुख्य खेल । इससे पहले आगे का पढ़ें तो मकबूल भट्ट का इतिहास पढ़ लें जिसको 1984 में भारत सरकार ने फांसी पर लटका दिया।1987 से पहले फिल्ड तो तैयार हो ही चुकी थी बस प्रतिक्षा थी तो एक ऐसे मौके की जिससे jklf अपनी बात को जन जन तक पहुंचा सके और वह भी आ गया 1987 जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव जहां से असली खेल आरंभ हुआ जेकेएनसी और कांग्रेस का इतिहास जम्मू-कश्मीर में सास बहू का रहा है कभी गठबंधन हो जाना कभी अलग हो जाना कभी राज्यपाल शासन लगवा देना 1982 में दोनों सास बहू ने इक्ट्ठे चुनाव लडा था और 95% वोट हासिल किए थे बीच में मतभेद हुए अलग हुए और 1987 में फिर इक्ट्ठे होकर चुनाव लडने का फैसला किया । उस समय जेकेएनसी के लीडर फारुख अब्दुल्ला थे । अब बारी आयी जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (jklf) की इसने सभी मुस्लिम संगठनों को इकट्ठा किया और जिसमें सबसे बड़ा संगठन जमात ए इस्लामी था और पार्टी का नाम मुस्लिम संयुक्त मोर्चा के नाम से चुनाव लडा 76 में से 44 सीटों पर वो सभी कश्मीर की सीटें थीं जहां मुस्लिमों की संख्या अच्छी खासी थी । जेकेएनसी ने 45 ये सभी कश्मीर की सीटें थी और कांग्रेस ने 31 सीटों पर चुनाव लडा जो जम्मू में थी जो हिन्दू बाहूल्य क्षेत्र थे । टोटल वोटिंग 75% हुई और कश्मीर घाटी में 80 % । जेकेएनसी को 40 सीट मिली, कांग्रेस को 26, एमयूफ को 4 बीजेपी जो जम्मू क्षेत्र में लड़ी थी उनको 2 , परन्तु वोट प्रतिशत जेकेएनसी को 40% वोट जो मिला पिछली बार की अपेक्षा 14.30% कम कांग्रेस को 20% पिछली बार की अपेक्षा 10% कम और एमयूएफ को 19% जो पहली बार चुनाव लड रही थी । मुस्लिम संयुक्त मोर्चा ने धांधली का आरोप लगाया जो सत्य भी है सैकड़ों घटनाएं हुई 2-4 पर प्रकाश डालता हूं इससे पहले बता दूं मुस्लिम संयुक्त मोर्चा के घोषणा-पत्र में मुख्य बात थी कुरान का कानून और घाटी में इस पार्टी को 31% वोट मिली । इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार चुनाव से 2 सप्ताह पहले muf के 600 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। जमात ए इस्लामी के नेता सैयद मोहम्मद शाह अपनी सीट से जीत गये थे परन्तु रिजल्ट को कुछ समय तक रोक कर गुलाम मोहिद्दीन शाह को विजेता घोषित कर दिया विरोध करने पर सैयद मोहम्मद शाह को जेल में डाल दिया गया। कश्मीर न्यायालय ने धोखाधड़ी की सारी याचिकाओं को खारिज कर दिया गया। केंद्र सरकार को जांच के लिए लिखा गया परन्तु कोई उत्तर नहीं दिया गया । घाटी की तीन सीटें बिजवेहरा , वाची और शोपियां में खराब हुए मतों की संख्या गंठबंधन की जीत के अंतर से काफ़ी अधिक थी । फारुख अब्दुल्ला की सीट का रिजल्ट मात्र 3 घंटे में घोषित कर दिया गया , अनंतनाग सीट के रिजल्ट 2.30 घंटे लेट सुनाए गए। जगमोहन मल्होत्रा जो उस समय कांग्रेस की तरफ जम्मू कश्मीर के राज्यपाल थे 11 जुलाई 1989 तक कांग्रेस की तरफ से राज्यपाल पद पर रहते हुए ही स्वीकार किया धांधली हुई मुझे कार्य नहीं करने दिया गया । पूर्व सिविल सेवक वजाहत हबीबुल्लाह ने भी धांधली को स्वीकार किया । स्वयं फारुख अब्दुल्ला ने ब्यान दिया मुस्लिम संयुक्त मोर्चा 20 सीटें जीत रही थी परन्तु इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। उन्होंने जनता के बीच सारा दोष कांग्रेस के ऊपर डाल दिया गया , और इस घटना के बाद कश्मीर के अधिकांश मुस्लिमों के हृदय में यह बैठा दिया गया भारत हमारा देश नहीं और हमें स्वतंत्र देश बनना है जहां सिर्फ मुस्लिम रहते हों और कुरान का आदेश चले । यदि देखा जाए तो यह चुनाव मात्र एक प्रयोग था उन अधिकांश मुस्लमानो को दिखाने के लिए जो भारत को अपना देश समझते थे और अच्छा मानते थे। स्क्रिप्ट तो पहले से ही लिखी जा चुकी थी कि सभी मुसलमानो को अपने पक्ष में कैसे लिया जाए । और चुनावों के बाद असली काम शुरू होता है जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट का जिसकी कश्मीर की प्रथम शाखा का शाखा का प्रथम नेता था यासीन मलिक।