... शौचसन्तोषतप: स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमा: ।।
योगसूत्र ।।
(शौच) अर्थात् स्नानादि से पवित्रता, (सन्तोष) सम्यक् प्रसन्न होकर निरुद्यम रहना सन्तोष नहीं किन्तु पुरुषार्थ जितना हो सके उतना करना, हानि लाभ में हर्ष वा शोक न करना, (तप) अर्थात् कष्टसेवन से भी धर्मयुक्त कर्मों का अनुष्ठान, (स्वाध्याय) पढ़ना पढ़ाना, (ईश्वरप्रणिधान) ईश्वर की भक्ति विशेष में आत्मा को अर्पित रखना, ये पांच नियम कहाते हैं । यमों के बिना केवल इन नियमों का सेवन न करें किन्तु इन दोनों का सेवन किया करे । जो यमों का सेवन छोड़ के केवल नियमों का सेवन करता है वह उन्नति को नहीं प्राप्त होता किन्तु अधोगति अर्थात् संसार में गिरा रहता है ।... सत्यार्थ प्रकाश …. (पृष्ठ-४८)