ऋतं च स्वाध्याय.........प्रवचने च ।
( तैत्तिरीयोपनिषत् )
ये पढ़ने पढ़ाने वालों के नियम हैं । (ऋतं॰) यथार्थ आचरण से पढ़ें और पढावें, (सत्यं॰) सत्याचार से सत्यविद्याओं को पढ़े वा पढ़ावें, (तप:॰) तपस्वी अर्थात् धर्मानुष्ठान करते हुए वेदादि शास्त्रों को पढ़ें और पढ़ावें, (दम:॰) बाह्य इन्द्रियों को बुरे आचरणों से रोक के पढ़ें और बढ़ाते जायें, (शमः॰) अर्थात् मन की वृत्ति को सब प्रकार के दोषों से हटा के पढ़ते पढ़ाते जायें, (अग्नय:॰) आहवनीयादि अग्नि और विद्युत् आदि को जान के पढ़ते पढ़ाते जायें, और (अग्निहोत्रं॰) अग्निहोत्र करते हुए पठन और पाठन करें करावें, (अतिथय:॰) अतिथियों की सेवा करते हुए पढ़ें और पढ़ावें, (मानुषं॰) मनुष्यसम्बन्धी व्यवहारों को यथायोग्य करते हुए पढ़ते पढ़ाते रहैं, (प्रजा॰) अर्थात् सन्तान और राज्य का पालन करते हुए पढ़ते पढ़ाते जायें, (प्रजन॰) वीर्य की रक्षा और वृद्धि करते हुए पढ़ते पढ़ाते जायें, (प्रजाति:॰) अर्थात् अपने सन्तान और शिष्य का पालन करते हुए पढ़ते पढ़ाते जायें ।..... (पृष्ठ-४८)