..... (स्वाध्याय) सक्ल विद्या पढ़ाते-पढ़ाते, (व्रत) ब्रह्मचर्य्य सत्यभाषणदि नियम पालने, (होम) अग्निहोत्रादि होम, सत्य का ग्रहण, असत्य का त्याग और सत्य विद्याओं का दान देने, (त्रैविद्येन) वेदस्थ कर्मोपासना ज्ञान विद्या के ग्रहण, (इज्यया) पक्षेष्ट्यादि करने, (सुतै:) सुसन्तानोत्पत्ति, (महायज्ञै:) ब्रह्म, देव, पितृ, वैश्वदेव और अतिथियों के सेवनरूप पञ्चमहायज्ञ और (यज्ञै:) अग्निष्टोमादि तथा शिल्पविद्याविज्ञानादि यज्ञों के सेवन से इस शरीर को ब्राह्मी अर्थात् वेद और परमेश्वर की भक्ति का आधाररूप ब्राह्मण का शरीर बनता है । इतने साधनों के विना ब्राह्मणशरीर नहीं बन सकता ।.. सत्यार्थ प्रकाश