तन के गुलाम कोई मन के गुलाम ,
विषयन के गुलाम कोई धन के गुलाम है।
दरबार तथा कोई कार के गुलाम ,
कोई असन बसन परिजन के गुलाम है।
सुरा के गुलाम कोई सुन्दरी के
कोई है अधीर सुबरन के गुलाम है।
चाम के गुलाम तामझाम के गुलाम
आज सत्ता के पुजारी जन-जन के गुलाम है।
- बाबा राम अधार शुक्ल " अधीर"
प्रस्तुति
अधीर साहित्य संस्थान
पूरे नन्दू मिश्र, जखौली, पटरंगा फैजाबाद