shabd-logo

अधीर अवधी के सशक्त हक्ष्ताक्षर

3 जनवरी 2017

132 बार देखा गया 132
"अधीर अवधी के सशक्त हक्ष्ताक्षर" बाबा राम अधार जी जो कवियों में श्रेष्ठ है, मेरे बचपन के साथी है थोड़ा मुझ से ज्येष्ठ है।। --"अंजान" "अधीर जी की पुण्यतिथि पर अधीर "का काव्य पक्ष-एक विश्लेषण अधीर का साहित्य"- श्री राम अधार शुक्ल "अधीर" जिन्हें सभी उम्र के लोग 'बाबा जी' के नाम से पुकारते थे।वे समाज सुधारक,साहित्यकार,राजनीतिज्ञ थे।पूरे प्रदेश में खासकर अवधी बेल्ट में एक लम्बे समय तक मंचों पर उनकी कविताएँ लोगों व्दारा सराही जाती रही।वे अवधी में लिखते थे।26जुलाई2006 को वे अकस्मात खुशनुमा मौसम में हरियाली का आनंद लेते हुए यादें बन गए।शुरुआती दौर में वे वीर रस में कविताएँ लिखते थे।बाद में ज्यादातर रसों में अपनी रचनाएँ दी। शिव साहित्य परिषद के अध्यक्ष पद को सुशोभित करते हुए परिषद की ओर से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका का सफल सम्पादन भी उन्होंने किया।उस पत्रिका के माध्यम से उनके ढेर सारे विचार व उनकी कृतियों ने समाज को आइना दिखाया जो आज भी प्रासंगिक है।वे आज हमारे बीच नही हैं लेकिन उनके मुक्तक गंभीर पाठकों की वाणी से अनायास ही निकल पड़ते है।उनमें जहाँ एक ओर अधुना के प्रति अनुराग था तो वही अतीत के गौरवमय संस्कृति के आधार पर एक नये समाज के निर्माण का सपना।उनकी कविताओं में जीवन अपनी पूरी ऊर्जा के साथ मौजूद है । समाज में महिलाओँ की निम्न स्थिति पर चिंतित कवि ने 'कन्या'शीर्षक से लिखे खण्डकाव्य मेँ राष्ट्र के निर्माण में महिलाओं की भूमिका को चित्रित कर उनके हर प्रकार के प्रगति व सम्मान को जरुरी बताया है।जिसके लिए उन्होंने पौराणिक तत्वों का भी सहारा लिया। 'भारत के जन भारतीयता सनेही आओ, जनगणमन में अमित प्यार भर दो।'... 'कौन सा मुकाम जहाँ लड़ना सिखाया है।'... जैसे छन्द जो सर्वधर्म समभाव,राष्ट्रीय एकता व प्रगति पर हैं,काफी प्रभावशाली व बेहद प्राणवान है।कुछ ऐसे छन्द है जहाँ कवि गहराई से मूल्यबोध के साथ जीवन की पड़ताल करता है।ये छन्द सिर्फ सपाटबयानी नहीं है और न ही साहित्य का कोरस।अधीर जी की तमाम रचनाएँ जिंदगी के सहजबोध से प्रभावित है वे अपनी छोटी-छोटी पंक्तियों में बड़ी-बड़ी बातें कह जाते है। गुरु व्यर्थ हैं जो धननाश करै ,कर्त्तव्य का पाठ पढ़ा न सके।... वह कैसी उठान है उन्नति का,मन में सद्भाव जगा न सके।.. वह सीख है व्यर्थ जो मानव को,मानवता सिख ला न सके।.. वह राष्ट्र का नायक व्यर्थ है जो,सेबरी के निवास को जा न सके।.. जैसी रचनाएँ समाज में व्याप्त विषमता को प्रकट कर आम जन मानस के मन में हलचल पैदा कर साहित्य समाज का दर्पण है इस उक्ति को सार्थक करती है। 'आज सत्ता के पुजारी जन-जन के गुलाम हैं ।' में उन्होंने यह दिखाने का प्रयास किया कि जब चुनावी मौसम आता है तब नेतागण क्षेत्रों में दिखाई देते हैं।और अपने को जनता का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने की कसमें खाते है तथा मौसम निकल जाने के बाद कसमें वादे याद नही रहते। 'चरित्र से भाग्य रचा करते है।' में उन्होंने बताया है कि कर्म ही हमारे उन्नति का अधार है।आजादी आन्दोलन के संघर्षो की याद में भी उनकी लेखनी चली है। 'जिन्हें देवता पुकारा और दूध भी पिलाया।अवसर कभी न चूके,जब पाया डसा ही हैं ।' 'लगता है सच न बोलो शासन से मनाही है।' जैसे गजलों में वे अपने अनुभव व दृष्टिकोण साझा करते हुए दिखाई देते है। 'देवर जी रंग मत डालो -एक ही धोती है।'जैसे मार्मिक गीतों में अधीर जी ने सामाजिक- आर्थिक विषमता पर खुलकर प्रहार किया है।'मुट्ठी बाँध तन अकड़ चला काम पे' जैसी रचनाओं में उन्होंने यह चित्रित किया है कि किस प्रकार किसान , मजदूर को हर मौसम व परिस्थिति को शिकस्त देते हुए रोटी के जुगाड़ में घर से निकलता ही पड़ता है । मुक्तक में उन्होंने अपने कटु अनुभव व जीवन संघर्षों को बड़ी सफलता के साथ उजागर किया है। 'हर चमकती हुई धातु सोना नही।' 'कष्ट जिसने सहा क्या से क्या बन गया।' 'कैसे कह दूँ अमावस्य गुनहगार है। काफिले लुट रहे चाँदनी रात मेँ।' जैसे मुक्तक में पूरे समाज को आयना प्रस्तुत कर अपने दृष्टिकोण को साझा किया है । "मै बन फूल खिला भी तो क्या किसने जाना किसने पहचाना अगर किसी ने जाना भी तो स्वार्थी तत्वोँ ने पहचाना।"... इस गीत में यह दिखाया गया है कि किस तरह एक ईमानदार व समाज के प्रति समर्पित व्यक्ति का शोषण पर ठिकी पूंजीवादी व्यवस्था उसका इस्तेमाल करती है । अधीर जी एक सफल साहित्यकार रहे है।संयोगवश उनकी रचनाओं का कोई संकलन प्रकाशित नही हो पाया हाँलाकि पत्र पत्रिकाओं में उनकी रचना प्रकाशित होती रही।वे चकाचौंध,बाजार से दूर के रचनाकार रहे है उनकी तमाम रचनाएँ चोरी भी हुई।उन्होंने मुत्यु के दो दिन पूर्व ही अपनी रचनाओं का संकलन कम्पोजिंग के लिये दिया था लेकिन आज भी पाठकों की निगाहें बड़ी बेसब्री से निहार रही है कि-वे अच्छे दिन कब आये

वीरेन्द्र त्रिपाठी की अन्य किताबें

1

अधीर अवधी के सशक्त हक्ष्ताक्षर

3 जनवरी 2017
0
1
0

"अधीर अवधी के सशक्त हक्ष्ताक्षर" बाबा राम अधार जी जो कवियों में श्रेष्ठ है, मेरे बचपन के साथी है थोड़ा मुझ से ज्येष्ठ है।। --"अंजान" "अधीर जी की पुण्यतिथि पर अधीर "का काव्य पक्ष-एक विश्लेषण अधीर का साहित्य"- श्री राम अधार शुक्ल "अधीर" जिन्हें सभी उम्र के लोग 'बाबा जी' के नाम से पुकारते थे।वे समाज

2

अदम गोण्डवी जनवादी चेतना के रचनाकार

3 जनवरी 2017
0
1
0

3

उ प्र विधानसभा चुनाव : एक नजर में उ.प्र. चुनाव : क्या इस बार भी जातीय समीकरण तय करेगा चुनाव की दिशा Update on : 8 January, 2017, 9:57 2 1 0

8 जनवरी 2017
0
2
0

4

युगीन यथार्थ का आईना :आईना -दर-आईना

7 मार्च 2017
0
1
0

5

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस केवल महिलाओँ के समान अधिकारोँ और समान अवसरोँ को स्थापित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सोलिडरिटी और एकता कायम करने के उद्देश्य क

8 मार्च 2017
0
1
1

6

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के संदर्भ में

8 मार्च 2017
0
1
0

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस केवल महिलाओँ के समान अधिकारोँ और समान अवसरोँ को स्थापित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सोलिडरिटी और एकता कायम करने के उद्देश्य के प्रति ही नही बल्कि क्रान्तिकारी मजदूर वर्ग संघर्ष को भी मजबूत बनाने के लिए समर्पित है।इस संबंध मेँ स्वर्णाक्षरोँ मेँ

7

आजादी आन्दोलन के विप्लवी योद्धा :भगतसिंह

20 मार्च 2017
0
1
0

" आजादी आन्दोलन के विप्लवी योद्धा :भगतसिंह " शहीद -ए -आजम भगतसिंह का जीवन संघर्ष एक मिसाल है। सिर्फ 23 वर्ष की अवस्था में शहीद हुए भगतसिंह ने शोषण पर टिकी व्यवस्था को बदलने के लिए स्वयं को अर्पित कर

8

बाबा रामअधार शुक्ला अधीर

27 जुलाई 2017
0
0
0

9

अधीर

27 जुलाई 2017
0
0
0

तन के गुलाम कोई मन के गुलाम , विषयन के गुलाम कोई धन के गुलाम है। दरबार तथा कोई कार के गुलाम , कोई असन बसन परिजन के गुलाम है।सुरा के गुलाम कोई सुन्दरी के कोई है अधीर सुबरन के गुलाम है।चाम के गुलाम तामझाम के गुलाम आज सत्ता के पुजारी जन-जन के गुलाम है।- बाबा राम अधार शुक्ल " अधीर"प्रस्तुति अधीर साहित्य

10

कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद

30 जुलाई 2017
0
0
0

" कलम के अमर सिपाही " आधुनिक हिन्दी साहित्य की चर्चा 'मुंशी प्रेमचंद 'के साहित्य के बगैर अधूरा है। प्रेमचंद ने अपने लेख न में भारतीय समाज में व्याप्त कुरूपता, असमानता, अत्याचार व अन्याय क

11

के के शुक्ला लखनऊ

14 अगस्त 2017
0
0
0

12

केके शुक्ला

14 अगस्त 2017
0
1
0

13 अगस्त, 2017, लखनऊ। नागरिक परिषद और सर्वहारा लेखक संघ के संयुक्ततत्वाधान में शहर के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं श्रमिक नेता के0 के0 शुक्ला(क्रांति कुमार शुक्ला) के 80वें जन्मदिन पर उनका नागरिक अभिनन्दन कियागया। श्री शुक्ला का जन्म 9 अगस्त, 1937 को मवैया लखनऊ में हुआ था। का0शुक्ला पिछले 60 वर्षों

13

बहार की नई काव्य कृति पर समीक्षात्मक टिप्पणी

7 जनवरी 2018
0
0
0

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए