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अधूरा तन

5 अक्टूबर 2015

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पल-प्रतिपल

प्रताड़ित किया जा रहा था

एक मासूम जीवन,

वह अधूरा था तन का

पर मन का था पूर्ण,

दण्डित होकर भी

उस निश्छल का मन शांत था

क्योंकि वह था भूख का ग़ुलाम,

वह कर्ज़दार था उनका

जिनके पास उसका अस्तित्व

गिरवी पड़ा था,

"कल" तक के लिए

जो कभी नहीं आता "कल" !


--- राजेन्द्र मल्ल ---


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राजेन्द्र मल्ल

राजेन्द्र मल्ल

वर्तिका और शर्मा जी ....उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद !

8 मार्च 2016

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

वह कर्ज़दार था उनका जिनके पास उसका अस्तित्व गिरवी पड़ा था,"कल" तक के लिए जो कभी नहीं आता "कल" ! सुन्दर भावाभिव्यक्ति !

5 अक्टूबर 2015

वर्तिका

वर्तिका

ग़ूढ अर्थ से सुसज्जित आपकी रचना!साझा करने के लिए धन्यवाद!

5 अक्टूबर 2015

1

रश्मि बिखेरो

25 सितम्बर 2015
0
7
4

रश्मि बिखेरो, सारे जहां में सूरज बनकर तुम,आलोकित करो,इतना अवनि को,अंधकार हो जाए गुम.

2

काया

29 सितम्बर 2015
0
6
7

हड्डियों के ढाँचे पर एक झिल्ली लिपटी हुई है उस जर्जर काया पर कपड़े की एक परत चिपटी हुई हैबेबस नेत्र कनीनिका ने मिचमिचाकर देखा उधर किलकारी करता बचपन बेख़बर था जिधर वह मरियल आगे बढ़ा जहाँ कुछ दूरी पर अंगड़ाई ले रहा था यौवन फिर उस साँचे ने स्वयं को निहारा क्या यही है जीवन !

3

अल्हड़ बचपन

30 सितम्बर 2015
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1

चंचरीक सा आह्लादित मन सारंग प्रसून सा तन दृग में दामिनी सी दीधिति किसी स्पृहा को संजोया मन कैसी है सुरम्य काया मुकुलित सी यह अल्हड़ बचपन !---- राजेन्द्र मल्ल ----

4

अधूरा तन

5 अक्टूबर 2015
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पल-प्रतिपल प्रताड़ित किया जा रहा था एक मासूम जीवन, वह अधूरा था तन का पर मन का था पूर्ण, दण्डित होकर भी उस निश्छल का मन शांत था क्योंकि वह था भूख का ग़ुलाम, वह कर्ज़दार था उनका जिनके पास उसका अस्तित्व गिरवी पड़ा था, "कल" तक के लिए जो कभी नहीं आता "कल" !--- राजेन्द्र मल्ल ---

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