अधूरा तन
पल-प्रतिपल प्रताड़ित किया जा रहा था एक मासूम जीवन, वह अधूरा था तन का पर मन का था पूर्ण, दण्डित होकर भी उस निश्छल का मन शांत था क्योंकि वह था भूख का ग़ुलाम, वह कर्ज़दार था उनका जिनके पास उसका अस्तित्व गिरवी पड़ा था, "कल" तक के लिए जो कभी नहीं आता "कल" !--- राजेन्द्र मल्ल ---