प्रस्तुत पुस्तक अजय मौर्य ‘बाबू’ की डायरी बीते हुए लम्हे, गुजरे हुए दिनों की वो अमानत है, जो वर्षों तक डायरीनुमा तिजोरी में बंद रही. अब पुस्तक की शक्ल में आप तक पहुंचने को बेताब है. स्कूल के दिनों में बालपन को पीछे छोड़ किशोरावस्था की ओर जाते हुए गुनगुनाई पंक्तियों को कभी कलम से कागज पर जो आकार दिया था, आज वह रचनाओं में ढलकर तैयार है. पुस्तक में कई रंगों की रचनाएं हैं. हालांकि सभी रचनाएं कविता के आकार में हैं, लेकिन मैं इन्हें कविताएं नहीं मानता. ये तो समय-समय पर दिल में उठे गुबार की भावक्ति है, जिन्हें आप कविताएं कह सकते हैं.