समय बदलता है तो लोग बदल जाते हैं
इंसान नहीं रहते वो मौसम नजर आते हैं
शिकवा-शिकायत कैसी जमाने का दस्तूर है
लहलहाते पेड़ के नीचे छांव ढूंढने जाते हैं
हैसियत जरा कम क्या हुई अपनी यारों
पल-पल औकात दिखाने दौड़े चले आते हैं
समय भी रहता नहीं एक जैसा हर कभी
बस यही बात अक्सर लोग भूल जाते हैं