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लोग बदल जाते हैं

10 मई 2022

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समय बदलता है तो लोग बदल जाते हैं

इंसान नहीं रहते वो मौसम नजर आते हैं

शिकवा-शिकायत कैसी जमाने का दस्तूर है

लहलहाते पेड़ के नीचे छांव ढूंढने जाते हैं

हैसियत जरा कम क्या हुई अपनी यारों

पल-पल औकात दिखाने दौड़े चले आते हैं

समय भी रहता नहीं एक जैसा हर कभी

बस यही बात अक्सर लोग भूल जाते हैं

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रचनाएँ
अजय मौर्य ‘बाबू’ की डायरी
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प्रस्तुत पुस्तक अजय मौर्य ‘बाबू’ की डायरी बीते हुए लम्हे, गुजरे हुए दिनों की वो अमानत है, जो वर्षों तक डायरीनुमा तिजोरी में बंद रही. अब पुस्तक की शक्ल में आप तक पहुंचने को बेताब है. स्कूल के दिनों में बालपन को पीछे छोड़ किशोरावस्था की ओर जाते हुए गुनगुनाई पंक्तियों को कभी कलम से कागज पर जो आकार दिया था, आज वह रचनाओं में ढलकर तैयार है. पुस्तक में कई रंगों की रचनाएं हैं. हालांकि सभी रचनाएं कविता के आकार में हैं, लेकिन मैं इन्हें कविताएं नहीं मानता. ये तो समय-समय पर दिल में उठे गुबार की भावक्ति है, जिन्हें आप कविताएं कह सकते हैं. 
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लोग बदल जाते हैं

10 मई 2022
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समय बदलता है तो लोग बदल जाते हैं इंसान नहीं रहते वो मौसम नजर आते हैं शिकवा-शिकायत कैसी जमाने का दस्तूर है लहलहाते पेड़ के नीचे छांव ढूंढने जाते हैं हैसियत जरा कम क्या हुई अपनी यारों पल-पल औकात दिख

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दीवाना

10 मई 2022
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ुम्हारी सादगी ने इस कदर दीवाना बनाया  सुनार से एक पाजेब खरीदकर ले आया ये हीरे, ये जेवरात फीके हैं तुम्हारे आगे मनिहार से बिंदी, सिंदूर खरीदकर ले आया दुप्पटा भी अच्छा है पर पल्लू की बात अलग तु

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दीवाना

10 मई 2022
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ुम्हारी सादगी ने इस कदर दीवाना बनाया  सुनार से एक पाजेब खरीदकर ले आया ये हीरे, ये जेवरात फीके हैं तुम्हारे आगे मनिहार से बिंदी, सिंदूर खरीदकर ले आया दुप्पटा भी अच्छा है पर पल्लू की बात अलग तु

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