मन से मन की बातों को,
शब्दों के जज्बातों को,
सोचती जागती रातों को,
अक्सर समझ नहीं पाते हैं लोग.......
संबंधों की गहराई को,
समय की दुहाई को,
अपनों की अच्छाई को,
अक्सर समझ नहीं पाते हैं लोग.......
नेह से भींगी आँखों को,
बोझ उठाती शाख़ों को,
रिश्तों में हुए सुराखों को,
अक्सर समझ नहीं पाते हैं लोग.......
अपने अंदर की शैतानी को,
ईच्छाओं की मनमानी को,
चाहत की बेईमानी को,
अक्सर समझ नहीं पाते हैं लोग.......
सन्मुख होती घटनाओं को,
उछश्रृंख होती कामनाओं को,
साथी की भावनाओं को,
अक्सर समझ नहीं पाते हैं लोग.......
वास्तविकता वाले रूप को,
शिशिर की सर्द धूप को,
अपने ही स्वरुप को,
अक्सर समझ नहीं पाते हैं लोग.......
समय की छिपी शर्तों को,
साँसों की भIरी परतों को,
ईर्ष्या की मोहक गर्तों को,
अक्सर समझ नहीं पाते हैं लोग.......