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अम्मा

शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

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ये कहानी है एक बहु की नजर से उसकी सास "अम्मा" की ...या कह सकते है मेरी दादी की.. मेरी माँ की नजर से.. मैंने कहने की कोशिश की है जो मैने देखा, सुना, समझा... ये मेरी ओर से मेरी दादी के लिए एक श्रद्धांजलि हैं l 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 सुबह के छह बज रहे थे.. सूरज देवता अपनी रोशनी चारों तरफ़ बिखेर रहे थे l आज कुछ हड़बड़ी भी नहीं थी ,ना ही कोई डर था... पर फ़िर भी कुछ अच्छा नहीं लग रहा था l ऐसा लग रहा था कुछ कमी है l ऐसी सुबह की कितनी चाह थी उसके अंदर.. पर आज मिली भी तो.. जैसे कि कोई स्वाद ही नहीं.. बिल्कुल बेरंग l उसे समझ ही ना आ रहा था कि शुरू कहा से करे l वर्षो की आदत थी आखिर,ऐसे कैसे एक दिन में छूट जाती l रोज सुबह उनकी आवाज से ही दिन शुरू होता था.. तो उनकी आवाज , उसके लिए अलार्म की तरह हो गई थी l उनके बोले बिना तो घर में पत्ता भी ना हिलता था l इतने वर्षो से वह सब काम कर रही थी, उसे पता भी था कि कब क्या करना है ,पर मजाल है कि उनके बोले बताये कुछ भी हो जाए l   बड़ा ही अजीब रिश्ता था मेरा और उनका l कहने को सास -बहू का रिश्ता था और 64 साल का साथ था हमारा, पर वो कभी मेरे लिए सास , तो कभी हमदर्द , तो कभी माँ, तो कभी कर्कश ,कभी दुश्मन, तो कभी बच्ची, तो कभी मेरे बच्चों की दादी, तो कभी मेरे बच्चों की दुश्मन, तो कभी एक हिटलर, तो कभी औरत, मार्गदर्शक और पता नहीं कितने रिश्ते थे उनके साथ मेरे..जिन्हे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता l मतलब कि मेरी जिंदगी की खिचड़ी की वो घी ,पापड़ ,अचार थी.. जिसके बिना कोई रस ,कोई स्वाद नहीं था l वो मेरी जिंदगी कि वो धुरी थी , जिसकी नोंक पर मैं घूमती थी l आज उनके बिना पंगु सा महसूस कर रही थी मैं l अच्छा बड़ा संयुक्त परिवार था हमारा और ढेर सारे रिश्ते l उन सभी रिश्तो में शामिल थी , अम्मा...मेरी सास l सभी उन्हें अम्मा ही कहते थे l पूरा घर उनसे डरता था..थी भी तेजतर्रार.. वैसा ही उनका व्यक्तित्व था और व्यवहार l कहते है ना कि जिसकी "कथनी और करनी" में अंतर नहीं होता..और माद्दा इतना कि कोई न सुने तो सामर्थ्य के साथ कर गुजरने की ताकत भी रखे , तो वही बोल सकता है पूरे ठसक के साथ ...ऐसी ही थी, इसलिए सब डरते थे l क्रमशः.... ✍️शालिनी गुप्ता प्रेमकमल 🌸 (स्वरचित)  

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