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अम्मा... अध्याय 2

18 अक्टूबर 2021

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घर में सबसे बड़ी भी थी , सर्वगुण सम्पन्न, हर कला में निपुण, ऐसा कोई काम न था, जो न आता हो उन्हें l घर में, मोहल्ला पडोस में, शादी ब्याह हो,रीति रिवाज हो, भजन कीर्तन हो ,पूजा पाठ हो, रसोई हो..कोई ऐसी जगह न थी जहाँ उनकी पूछपरख ना हो l

जैसे कि वह थी,उतनी ही प्रभावशाली,सुन्दर कदकाठी की मालकिन थी ...5'6 फ़ुट लम्बी ऊँची पूरी, इकहरा शरीर, धवल श्वेत बेदाग गोरा रंग, तीखे नैन नक्श, करीने से तेल लगे बालो की गुत्थी हुई चोटी, झक सफ़ेद रंग की गोल्डन किनारी की सीधे पल्लू की साड़ी, माँथे पर चन्दन का टीका गले में सोने की चेन, कान में सोने के कर्णफ़ूल, हाथो में चाँदी के कंगन, पैरो में चाँदी के तोडल ,राजमाता सरीखा.. कि एक बार कोई देखले तो नतमस्तक हो जाए l और उतनी ही वाचाल थी l उनकी वाणी के तरकश में ऐसे ऐसे मुहावरे, लोकोक्ति, नीतिगत दोहे उपाधियांँ कि पूरा ग्रंथ लिखा जा सकता है..और जिस पर इन बाणों की वर्षा हो जाए उसकी खैर नहीं l बहुत ही अनोखी थी अम्मा l

जब अम्मा से पहली बार मिली तब मैं सोलह साल की थी... और ब्याह के इस घर में आई थी l पहले शादियाँ कम उम्र में ही कर दी जाती थी l ऐसे ही अम्मा भी बारह या तैरह की उम्र में ब्याह कर आई थी..और पन्द्रह या सोलह की उम्र में पहला बच्चा हो गया, दो तीन साल के अंतर से दूसरा बच्चा भी आ गया l वे 19 या 20 की रही होगी....उन्हे वैधव्य का इतना बड़ा दुर्भाग्य झेलने मिल गया l

जब ससुरजी गए तब मेरे पति 5 साल के थे lयही से शुरू हो गया उनका संघर्षमय जीवन...बहुत सारे रंग थे उनकी जिंदगी के..खट्टे,मीठे, कड़वे, बेस्वाद.. कुछ स्याह भी रहे होगे.. जो उनकी जुबान पर नहीं आये l क्योंकि मैं ये मान ही नहीं सकती, इतनी सुन्दर थी वो..l  जब इस पुरुषमय दुनिया में पति के रहते स्त्री सुरक्षित नहीं होती फ़िर वो तो एक अकेली औरत थी ? मैंने उन्हें जितना जाना ...उनकी मुहँजुबानी या उनके साथ रहकर महसूस किया ...बहुत कुछ ऐसा भी जो उन्होने बोला ही नहीं l

बहुत ही अच्छी कथावाचक थी वो l जब वो अपने यादो के पिटारे में झाँकती और कुछ सुनाती,तो सब घेर के बैठ जाते थे उन्हे.. बारीक से बारीक बातें भी नहीं छोड़ती थी ...ऐसा लगता मानो सामने ही चलचित्र चल रहा हो... जिसका कुछ कुछ असर मेरे पति.. मतलब कि उनके बेटे पर भी आया है.... l

कितना कठिन होगा उनके लिए एक पल में ही.. दो बच्चों के साथ, सिर पर छत नहीं l जब औरत एक माँ बन जाती है ना, तो मुझे लगता है कि सारी दुनिया की समझदारी , उसके अंदर अपने आप ही आ जाती हैं l जिस दुकान के मालिक की वो पत्नी थी ...उसी दुकान की जरूरतों को, जिन्हें 4-4 नौकर भी मिलकर पूरा नहीं कर पाते थे, वो अकेले ही कर जाती थी l कितना कष्टदायक होगा ना उनके लिए ,जो एक जमींदार की इकलौती बेटी थी,घर के मुखिया की पत्नी और घर की सबसे बड़ी बहु l

अचानक से एक पल में सब बदल गया... और जल्दी ही उन्हें समझ आ गया कि.. यदि इस घर में रहना है तो इन घरवालो के लिए अपनी जरूरत महसूस करानी होगी.. और उपलब्ध करादी उन्होने सबके लिए बिन पैसे की एक मजदूर..l इतनी कम उम्र में ही..कुछ नजरों ने भी समझा दिया होगा कि यही सबसे अच्छा तरीका है ,सुरक्षित रहने का l सबके सामने सहज,सरल उपलब्ध होकर, दिन के 24 घंटे काम में झोंककर , तन की, मन की, और इन घूरती हुई नजरों से सुरक्षित रहने का, मान सम्मान से रहने का l

धीरे धीरे उन्होने घर की, दुकान के कामों की हर जिम्मेदारी को अपने ऊपर ओढ लिया और बन गई उस घर की सबसे बड़ी जरूरत l क्योंकि जानती थी शायद कि जब लोग किसी पर निर्भर हो जाते है तो वो आपको कही जाने नहीं देते,और तो और वो आपकी दस बातें भी सुनने को तैयार हो जाते है l

उनकी इसी कमजोरी को धीरे धीरे अपनी ताकत बनाने लगी आप l उसका गुस्सा जब आपके देवरों ने मारपीट करके निकाला तो आप समझ गई कि यदि आपने ये रोज सहना चालू कर दिया और झुक गई तो वो दिन दूर नहीं.. कि आप घर के किसी कोने में फ़ेँक दी जाएगी l शायद इसलिए आप अपनी सारी शक्तियां इकट्ठा कर खड़ी हो गई..एक तेजतर्रार ,वाचाल स्त्री बनकर lआप जानती थी एक पुरुष किसी औरत के सामने हारता है या कही से भी कमतरीन महसूस करता है ,तो वह उससे उलझता नहीं है और फिर उससे एक निश्चित दूरी बना लेता है l उसके बाद जो आप पूरे आत्मसम्मान और वर्चस्व के साथ खड़ी हुई तो , वो आप अंत तक रही l

इसे समय की मार कहे या असुरक्षा का भाव या लगातार सहते सहते ... उसने आपको जिद्दी, कठोर और हिटलर बना दिया था l आपकी हर कही बात आपके लिए पत्थर की लकीर होती जिसे आप मनवाकर ही दम लेती l सबसे डरते डरते.. आपने अपने इर्दगिर्द खुद का ही एक डर का साम्राज्य स्थापित कर दिया था l

घर में जिस बहु पर वो हिटलर कि तरह छाई रहती..उसी बहु को कोई बाहर, कुछ कह दे तो उसकी खैर नही l यही हाल घर के बच्चों का था l सब पर नजर रहती थी उनकी , जो बच्चा उनकी नज़र में अच्छा होता उसकी तो हर गलती माफ़ और जो उनके निशाने पर आ जाए ,उस पर जो उनके व्यँग्य बाणो की बरसात होती कि पूछो मत l लेकिन उसी बच्चे को किसी दूसरे घर के बच्चे या काकी, बुआ, चाची ने कुछ कह दिया तो फ़िर जो अम्मा अपने सारे साजोसामान के साथ उस पर चढ़ाई करती और तब तक वापस ना आती जब तक कि उनके तरकश के आधे से ज्यादा अस्त्र खाली ना हो जाए l

ऐसा ही भेदभाव उनका घर में सबके लिए खानेपीने में चलता ..किसी पर कम किसी पर ज्यादा l ये भेदभाव मेरे और मेरी देवरानी के बीच भी किया जाता.. मैं उनके पास थी इसलिए मुझे कम और वो घर से दूर इसलिए उस पर भर भरके प्यार लुटाया जाता l
                   
ऐसी पता नहीं कितनी अनगिनती कहानियाँ है अम्मा की l ऐसे ही जब मेरी बहु आ गई तो ,जब वो देर से उठकर नीचे आती और मेरा सारा काम हो चुका होता.. तो मेरे लिए उससे भी लड़ना शुरू हो जाती.... और फ़िर उनका ज्ञान शुरू हो जाता की तुम बड़ी सीधी हो, तेज़ बनकर रहो..बहु की लगाम कसके रखो , नहीं तो कुछ ना सुनेगी तुम्हाई... बड़ी हँसी भी आई.. अपने लिए "सीधा" शब्द सुनकर😅l

ऐसे ही जब बच्चों के इम्तिहान आते , तो सभी अप्रैल के महीने में, गर्मी में छ्त पर सोया करते थे l बच्चे रात भर जागकर पढ़ते तो उनको चाय बनाकर देना हो या बच्चों को पढ़ते समय कुछ खाने का मन करेगा तो, उसके लिए सूखा नाश्ता-नमकीन बनाना हो ,उनकी तैयारी पहले ही हो जाती थी l बच्चो को सुबह जगाने का अलार्म भी वही होती..बच्चे भी बेहिचक उन्हे जताकर सो जाते..कि अम्मा 4 बजे जगा देना..और अम्मा बिल्कुल 4 बजे..1 मिनट ना इधर.. न 1 मिनट उधर.. चाय बनाकर, एक लोटे में मुँह धोने के लिए पानी लिए ..घर कि तीसरी मन्जिल पर तैयार मिलती... आज सोचती हूँ तो लगता है कि इतनी उमर में.. झुकी हुई कमर के साथ कैसे करती थी सब??.
                        
कभी कभी हम अपने बड़ो को कितना नजरअंदाज करते  हैं ना...? वो हमारे आसपास बिना कुछ बोले, बिना कुछ जताये, कितना कुछ करते रहते हैं l हम भी पुरे हक से करवाते रहते हैं और हमे इस बात का बुरा भी नहीं लगता है , हमे इसकी आदत पड़ जाती हैं l हम कभी उनसे ये भी नहीं पूछ्ते कि आप कैसे हैं l आज जब उनकी जगह पर मैं हूँ , तो आज ज्यादा अच्छी तरह से समझ पा रही हूँ l

जब मैं नई नई शादी होकर आई थी, तब आजकल की तरह सबके अपने कमरे नहीं हुआ करते थे l तब एक बड़े से कमरे में ,एक साथ बिस्तर लगाये जाते थे l पर्दा करने वाले बड़े बुजुर्ग बाहर सोते बाकि सब अंदर सोते थे l पति कही और सो रहा होता ,पत्नी कही और l ऐसी व्यवस्था के अंतर्गत सभी से नजर बचाकर एक दूसरे के लिए समय निकालना बड़ा मुश्किल होता था हम लोगों को l

जब नई नई शादी होकर आई थी ,तब तो पतिदेव भँवरे की तरह आसपास मँडराते रहते थे..पर मजाल है कि मिल पाये.. क्योंकि पता नहीं कैसे अम्मा हर समय हमारे बीच उपस्थित रहती थी l उस समय तो उनसे नफ़रत सी होने लगी थी कि उन्हें कुछ समझ नहीं आता क्या?? जहाँ हम अपना बिस्तर आसपास लगाते..पता चलता कि आसपास ही अम्मा का बिस्तर लगा हुआ है l जब पति को खाना परोसती हुए सोचती कि थोड़ा सा वक्त साथ साथ मिल जाए,अम्मा हमारे बीच उपस्थित रहती l

ऐसी ही पता नहीं कितनी बाते थी.. ऐसे ही कितने साल बीत गए..बच्चे हो गए और बहुत सी जिम्मेदारी आ गई तो नजदीकियाँ भी कुछ कम हो गई l शुरुआत के साल थोड़े तकलीफदेय रहे अम्मा की वजह से.. l उस समय तो समझ नहीं आता था..वो ऐसा क्यों करती थी??😅उस समय तो इतनी चिढ़ आती थी कि बता नहीं सकती l लेकिन आज समझ पाती हूँ कि उनके लिए भी कितना कठिन होगा ऐसा करना l हमेशा अदबकायदे से रहने वाली सलीकापसन्द अम्मा.. कैसे सब कर जाती थी ,मुझे लगता है...उन्हें खुद भी समझ नहीं आता होगा l
                       
वो औरत जो इतनी ही उम्र की रही होगी जब उनका पति उनसे दूर हो गया था l तब तो उन्होने परिस्थितिवश अपने आप को जिम्मेदारियों में झोंक दिया.. लेकिन अब जब उनकी इतनी ज्यादा अभी उम्र भी नहीं थी ,और उनके चारों तरफ एक प्रेमी युगल जो प्रेमरस में डूबा हुआ.. चुहलबाजी करता ,अठखेलियाँ करता मँडरा रहा हो l कितना कठिन होता होगा ना अपने आप को सँभालना l वो इच्छाऐ जिन्हें पता नही कबसे वो कुचलती आ रही थी,दबाती आ रही थी वो आपके आसपास ही घट रही हो l कैसा लगता होगा उन्हें ?? कितनी बेबस महसूस करती होगी वो l
          
मानव शरीर की स्वभावजनित कमियाँ..... वो शरीर की स्वभाविक जरूरतें ,उसकी प्यास... कितनी ही दबाने पर फ़िर जल उठती होगी... कुछ अहसास जो कही दबे हुए थे फ़िर उछाल मारते होंगे lऔर उस प्यास.....उस तड़प को शांति देने अपने आप ही कदम उस ओर खिचें चले जाते होंगे l

ऐसी थी अम्मा मेरी.. शायद ऐसा कुछ जो वो कह नहीं पाती थी, जता नहीं पाती थी l कुछ अनकहा,असुरक्षा का भाव,कुछ टूटता,बिखरता सा वो अहसास उनका...गुस्सा , चिढ़चिढ़ापन और खीज के रूप में निकलता था l

आज मुझे इस बात का गर्व है कि मैं शायद उन्हें उस समय ... समझ भले ही ना पाई हूँ पर मैंने कभी उनके साथ बेअदबी नहीं की l उनका सम्मान हमेशा बनाये रखा l ऐसा नहीं कि मैंने ही सब कुछ किया हो, वो भी हर समय, हर कदम पर, हर जिम्मेदारी में, पूरी ताकत के साथ मेरे पीछे खड़ी रही l 

क्रमशः... 

✍️शालिनी गुप्ता प्रेमकमल 

(स्वरचित ) 

Shailesh singh

Shailesh singh

बहुत ही बेहतरीन भावुक भाग

25 अक्टूबर 2021

शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

25 अक्टूबर 2021

जी बहुत बहुत धन्यवाद सर🙏😊

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रचनाएँ
अम्मा
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ये कहानी है एक बहु की नजर से उसकी सास "अम्मा" की ...या कह सकते है मेरी दादी की.. मेरी माँ की नजर से.. मैंने कहने की कोशिश की है जो मैने देखा, सुना, समझा... ये मेरी ओर से मेरी दादी के लिए एक श्रद्धांजलि हैं l 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 सुबह के छह बज रहे थे.. सूरज देवता अपनी रोशनी चारों तरफ़ बिखेर रहे थे l आज कुछ हड़बड़ी भी नहीं थी ,ना ही कोई डर था... पर फ़िर भी कुछ अच्छा नहीं लग रहा था l ऐसा लग रहा था कुछ कमी है l ऐसी सुबह की कितनी चाह थी उसके अंदर.. पर आज मिली भी तो.. जैसे कि कोई स्वाद ही नहीं.. बिल्कुल बेरंग l उसे समझ ही ना आ रहा था कि शुरू कहा से करे l वर्षो की आदत थी आखिर,ऐसे कैसे एक दिन में छूट जाती l रोज सुबह उनकी आवाज से ही दिन शुरू होता था.. तो उनकी आवाज , उसके लिए अलार्म की तरह हो गई थी l उनके बोले बिना तो घर में पत्ता भी ना हिलता था l इतने वर्षो से वह सब काम कर रही थी, उसे पता भी था कि कब क्या करना है ,पर मजाल है कि उनके बोले बताये कुछ भी हो जाए l   बड़ा ही अजीब रिश्ता था मेरा और उनका l कहने को सास -बहू का रिश्ता था और 64 साल का साथ था हमारा, पर वो कभी मेरे लिए सास , तो कभी हमदर्द , तो कभी माँ, तो कभी कर्कश ,कभी दुश्मन, तो कभी बच्ची, तो कभी मेरे बच्चों की दादी, तो कभी मेरे बच्चों की दुश्मन, तो कभी एक हिटलर, तो कभी औरत, मार्गदर्शक और पता नहीं कितने रिश्ते थे उनके साथ मेरे..जिन्हे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता l मतलब कि मेरी जिंदगी की खिचड़ी की वो घी ,पापड़ ,अचार थी.. जिसके बिना कोई रस ,कोई स्वाद नहीं था l वो मेरी जिंदगी कि वो धुरी थी , जिसकी नोंक पर मैं घूमती थी l आज उनके बिना पंगु सा महसूस कर रही थी मैं l अच्छा बड़ा संयुक्त परिवार था हमारा और ढेर सारे रिश्ते l उन सभी रिश्तो में शामिल थी , अम्मा...मेरी सास l सभी उन्हें अम्मा ही कहते थे l पूरा घर उनसे डरता था..थी भी तेजतर्रार.. वैसा ही उनका व्यक्तित्व था और व्यवहार l कहते है ना कि जिसकी "कथनी और करनी" में अंतर नहीं होता..और माद्दा इतना कि कोई न सुने तो सामर्थ्य के साथ कर गुजरने की ताकत भी रखे , तो वही बोल सकता है पूरे ठसक के साथ ...ऐसी ही थी, इसलिए सब डरते थे l क्रमशः.... ✍️शालिनी गुप्ता प्रेमकमल 🌸 (स्वरचित)

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