अम्मा शब्द अम्बा का तद्भव है उच्चारण में अधिक बल लगता था इसलिए अम्बा का अम्मा हो गया। इसको इस लिए बता रहा हूं कि गांव के सब लोग अपनी दादी को माई कहते थे सिर्फ हमारा घर अम्मा कहता था । एक दिन आपने परिवार (परिवार में कुल चार घर में पच्चास लोगों का खानदान) के सब लोग बैठे थे। बात बात में उन लोगों ने कहा अम्मा शब्द हिन्दी का नहीं है अम्मा शब्द उर्दू का है अम्मा नहीं कहना चाहिए मेरे मन में यह बात बैठ गई और हम भी मन ही मन खान लिए की अब हम भी अपनी अम्मा को माई कहेंगे । तब मैं शायद एक या दो में पढ़ता था। शायद इसीलिए कि ठीक से याद नहीं। हर रोज की तरह शाम को हम बाबू के साथ उनके पास लेट गया और उनसे बात करने लगा । बाबू से पूछा कि अम्मा शब्द उर्दू का है बाबूजी ने समझाया तब हमने कहा दिनेश चाचा (बगल के थे)कह रहें थे । बाबू ने कहा कि गलत बोल रहे हैं उनको कुछ नहीं आता । फिर भी हमको विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि दिनेश चाचा ही नहीं और कई लोगों ने कहा था ,रात को जब भोजन करने लगा तो बाबू के साथ ही भोजन कर रहा था पिता जी भी थे और और चाचा लोग फिर वही बात उठाया लेकिन इस बार पूछने का तरीका अलग था इस बार मैंने पूछा कि हम लोग अम्मा को माई क्यों नहीं कहते जबकि गांव के सब लोग अम्मा को माई कहते हैं। तब पिता जी ने भी अम्मा शब्द का विस्तृत वर्णन किया। समझ में तो नहीं आया पर मुझे ज्ञान हुआ कि अम्मा कहना कोई ग़लत नहीं है। आज तक मेरे समझ से परे रहा कि आखिर गांव के लोगो को अम्मा शब्द से क्या परहेज था।
अम्मा जो आज भी हमें याद आती है हर दिन हर सुख में हर दुख में वो थी ही ऐसी किसी से न डरने वाली -निडर , देशभक्ति के भावों से ओत प्रोत , भारतीय जनता पार्टी की प्रबल समर्थक , सत्यप्रिय , अत्याचार अनाचार का विरोध करनेवाली, अर्थ का सही जगह पर प्रयोग थोड़ा सा कृपण भी कह सकते हैं। क्योंकि जब तक वो थी हम लोग किसी भी प्रकार का निर्थक खर्च खान पान रहन सहन पर नहीं कर सकते थे, हां जो आवश्यक आवश्यकता थी उसपर कोई रोक टोक नहीं थी। मुझे याद उनके शरीर त्याग के बाद भी हम कोई वस्तु लेकर आते तो जैसे ही घर के दरवाजे पर पहुंचते तो एक बार अम्मा की याद आ जाती थी। अम्मा मेरे लिए मां और पिता दोनों थी ।