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अम्मा

10 नवम्बर 2021

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अम्मा शब्द अम्बा का तद्भव है उच्चारण में अधिक बल लगता था इसलिए अम्बा का अम्मा  हो गया। इसको इस लिए बता रहा हूं कि गांव के सब लोग अपनी दादी को माई कहते थे सिर्फ हमारा घर अम्मा कहता था । एक दिन आपने परिवार (परिवार में कुल चार घर में पच्चास लोगों का खानदान) के  सब लोग बैठे थे। बात बात में उन लोगों ने कहा अम्मा शब्द हिन्दी का नहीं है अम्मा शब्द उर्दू का है अम्मा नहीं कहना चाहिए मेरे मन में यह बात बैठ गई और हम भी मन ही मन खान लिए की अब हम भी अपनी अम्मा को माई कहेंगे । तब मैं शायद एक या दो में पढ़ता था। शायद इसीलिए कि ठीक से याद नहीं। हर रोज की तरह शाम को हम बाबू के साथ उनके पास लेट गया और उनसे बात करने लगा । बाबू से पूछा कि अम्मा शब्द उर्दू का है बाबूजी ने समझाया तब हमने कहा दिनेश चाचा (बगल के थे)कह रहें थे । बाबू ने कहा कि गलत बोल रहे हैं उनको कुछ नहीं आता । फिर भी हमको विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि दिनेश चाचा ही नहीं और कई लोगों ने कहा था ,रात को जब भोजन करने लगा तो बाबू के साथ ही भोजन कर रहा था पिता जी भी थे और और चाचा लोग फिर वही बात उठाया लेकिन इस बार पूछने का तरीका अलग था इस बार मैंने पूछा कि हम लोग अम्मा को माई क्यों नहीं कहते जबकि गांव के सब लोग अम्मा को माई कहते हैं। तब पिता जी ने भी अम्मा शब्द का विस्तृत वर्णन किया। समझ में तो नहीं आया पर मुझे ज्ञान  हुआ कि अम्मा कहना कोई ग़लत नहीं है। आज तक मेरे समझ से परे रहा कि आखिर गांव के लोगो को अम्मा शब्द से क्या परहेज था।
अम्मा जो आज भी हमें याद आती है हर दिन हर सुख में हर दुख में वो थी ही ऐसी किसी से न डरने वाली -निडर , देशभक्ति के भावों से ओत प्रोत , भारतीय जनता पार्टी की प्रबल समर्थक , सत्यप्रिय , अत्याचार अनाचार का विरोध करनेवाली, अर्थ का सही जगह पर प्रयोग थोड़ा सा कृपण भी कह सकते हैं। क्योंकि जब तक वो थी हम लोग किसी भी प्रकार का निर्थक खर्च खान पान रहन सहन पर नहीं कर सकते थे, हां जो आवश्यक आवश्यकता थी उसपर कोई रोक टोक नहीं थी। मुझे याद उनके शरीर त्याग के बाद भी हम कोई वस्तु लेकर आते तो जैसे ही घर के दरवाजे पर पहुंचते तो एक बार अम्मा की याद आ जाती थी। अम्मा मेरे लिए मां और पिता दोनों थी । 
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रचनाएँ
आलोक की डायरी
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'मेरा कुछ नहीं' सब उसका है जो ब्रह्मांड को नियंत्रित करता है , फिर भी हम अपना-अपना कह कर दिन रात दर्प में चूर रहते हैं। मैं भी था अब भी हूं सब समझता हूं कि यह संसार नश्वर है यहां कोई किसी का नहीं है फिर भी दिन रात मेरा है अपने है करता रहता हूं। मैं ही नहीं सब जानते है यह यहां सब नश्वर है कुछ भी स्थाई नहीं है, बड़े महात्माओं विद्वानों के मुख से सुना है कि देव लोक के देवताओं का भी जीवन काल निश्चित है फिर हम मनुष्य क्या चीज़ है। मेरी दृष्टि में इस संसार में अगर किसी प्राणी ने सबसे अधिक विकास किया है तो वह मनुष्य है उसका कारण यह है कि वह समाज में रहता है और सामाजिक है।वह एक दूसरे के दुख और सुख को समझता है और परिस्थितियों के अनुरूप व्यवहार करता है।उसका अपना परिवार अपना समाज है। वह जो कुछ भी करता है अपने परिवार समाज को ध्यान में रखकर करता है यही कारण है कि मनुष्य इस संसार का सबसे भावनात्मक जीव है। यही भाव मानव को सभी जीवों में श्रेष्ठ बनाता है,उसको सब प्राणियों से अलग करता है । यही भाव जब प्रबल रूप में प्रकट होती है तो वह भावना को जन्म देती है और यह भावना ही मनुष्य को मनुष्य से बांधती है ।,भावना एक आत्मीय अनुभव है जो सामान्यीकृत रेखीय समायोजन और मानसिक और शारीरिक हलचल के साथ-साथ व्यक्ति में राज्यों को जोड़ता है और जो अपने स्वयं के व्यवहार में दिखाता है"। "भावना एक जीव की 'चालित या' उभरी हुई अवस्था है। यह एक उथल-पुथल भरा एहसास है, यही वह तरीका है जो व्यक्ति को स्वयं दिखाई देता है। अगर हम यह कहें कि यह भावना ही प्रेम है तो गलत नहीं होगा। कुछ लोग अलग मानेंगे पर प्रेम भाव से ही उत्पन्न होता है यह बात दूसरी है कि प्रेम अच्छे भाव से उत्पन्न होता है क्योंकि भाव अच्छे भी होते हैं और बुरे भी अच्छे भाव से प्रेम और बुरे भाव से घृणा द्वेष जलन ईर्ष्या का जन्म होता है । प्रेम एक एहसास है। जो दिमाग से नहीं दिल से होता है प्यार अनेक भावनाओं जिनमें अलग अलग विचारो का समावेश होता है!,प्रेम स्नेह से लेकर खुशी की ओर धीरे धीरे अग्रसर करता है। ये एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना जो सब भूलकर उसके साथ जाने को प्रेरित करती है।भावना और प्रेम दोनों का सम्बन्ध दिल से है। भावना को हम भक्ति से से भी जोड़ते हैं, हम हम पढ़े लिखे और अनपढ़ सब के मुख से सुनते रहते हैं कि भगवान भाव के भूखे होते है

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