हम अपना परिचय देश-काल और परिस्थितियों के अनुरूप देते हैं,हम छोटे थे तो माता-पिता भाई-बहन तो कभी गांव कभी देश के द्वारा भी हम अपना परिचय देते हैं।हम यह भी कह सकते हैं कि जैसे जैसे हम बड़े होते जाते हैं वैसे ही हमारी पहचान भी बदलती रहती है तो इस प्रकार मेरा परिचय मेरे दादा जी से प्रारंभ होता है जो राष्ट्रीय इंटर कालेज सुजान गंज में हिंदी के प्रवक्ता थे।जब मेरी प्रारम्भिक शिक्षा शुरू हुई और मैं कालेज जाने लगा तो वहां पर सब हमें गुरूजी का नाति कहकर पहचान करते थे, जब मेरे आचार्य लोग मेरे नाम के बाद मेरे दादा का नाम लेते थे तो हम फूले नहीं समाते थे उस समय ऐसा लगता था कि जैसे कोई प्रतिष्ठित पद प्राप्त हो गया हो। मैंने स्कूल की शिक्षा आठवें वर्ष में प्रारम्भ किया कारण था कि मेरे दादा जी आठ के पहले बच्चों को स्कूल जाने के पक्षधर नहीं थे। आप लोग को यह भी बताता चलूं कि हम अपने दादा जी को बाबू कहते हैं आज मेरे बाबू 90वर्ष का जीवन सकुशल व्यतीत करते हुए हम लोगों को अनेकों प्रकार से लालन पालन कर रहे हैं ,अभी तक बाबू जी नहीं हम लोगों की सेवा कर रहे हैं हम लोग अभी तक उनके लिए कुछ नहीं किया। आठवें वर्ष में जब मैं स्कूल जाने लगा तो मैं अपनी कक्षा का सबसे तेज विद्यार्थी था कारण घर पर माता पिता और दादी के द्वारा जो शिक्षा मिली थी वहीं था। ये तो बता दिया कि हम अपने दादा जी को बाबू कहता था, आप लोग ये भी जान लीजिए की। हम अपनी दादी जी को अम्मा कहते थे।
हम अपने जीवन के बारे में बात करें और अपनी अम्मा की बात नकरे तो समझ लो वैसे ही है जैसे पृथ्वी पर पानी के बिना जीवन मेरे जीवन दात्री थी मेरे जीवन का अठ्ठाइस वर्ष अम्मा की देख देख में बीता था, अम्मा बताती थी जब मैं पैदा हुआ था तो मुझे सुखवा रोग पकड़ लिया था , मैं बहुत कमजोर था ,गांव की जो भी लोग देखने आते वो यही कहते कि बहुत कमजोर है लड़का लगता नहीं बचेगा। लेकिन मेरी दादी ने ऐसा सेवा किया कि शरीर से दुबला पतला हूं पर कमजोर नहीं है।अमृ््मा बताती थी कि जब मैं छह माह का था तभी से हम अपनी मां का दूध छोड़ दिए थे।एक वर्ष का होते-होते मैं अपनी उम्र के सब लड़कों के समान हो गया था वहीं लोग जो मेरे जन्म के समय मुझे देखकर यह कल्पना करते थे कि यह जीवित नहीं रहेगा आज वह इतना स्वस्थ हैं , इसका श्रेय सब अम्मा को ही देते थे।
जब मैं पैदा हुआ था तो मेरे पिता जी इलाहबाद विश्वविद्यालय से एम ए कर रहे थे। माता जी उस समय कक्षा आठ तक की पढ़ाई की थी। मैं अपने माता पिता की पहली संतान था , मेरे बाद कुल चार संतान या कह सकते हैं कि एक बहन और तीन भाई और भी मेरा साथ साथ देने के लिए इस इस धरा पर मेरी मां की गर्भ से पैदा हुए। हमारी माता जी से पांच संतान का होना यह सामान्य बात नहीं थी इसके पीछे एक घटना है जिसका वर्णन हम आगे करेंगे।
जिस अम्मा और मां का वर्णन कर रहा हूं दुर्भाग्य से आज दोनों हम लोगों का साथ छोड़कर गोलोकवासी हो गई है। अम्मा ने 7-04-2013को हम सब का साथ छोड़कर गोलोकवासी हो गई तो मां 11-02-2020को ईश्वर ने मां का स्नेह छीन लिया।
मेरे पिता जी दो भाई और चार बहनें थीं जिस प्रकार अपने सभी भाइयों बहनों में मैं सबसे बड़ा था उसी प्रकार पिता जी भी भाइयों में सबसे बड़े थे। उनसे बड़ी एक बहन थी । मेरे चाचा और बुआ लोग भी मुझसे बहुत स्नेह करते थे। मेरा जन्म उस समय हुआ था जब घर में कोई बच्चा नहीं था इसलिए सबका चहेता गांव की भाषा में कहें तो दुलरूवा लड़िका रहें ।
मेरी प्रारम्भिक शिक्षा गांव के एक नर्सरी स्कूल कक्षा पांच तक हुई थी। उसके बाद मिडिल की शिक्षा जूनियर हाईस्कूल सुजानगंज में हुआ, जहां हम पढायी कम और बदमाशी ज्यादा करते थे ,। कक्षा छोड़कर झाड़ियों में छिपे रहते थे कभी कभी फिल्म देखने भी चलें जातें थे, सब दुर्गुण आ गया था। बस एक नशा को छोड़कर कई मित्रों ने कराने की कोशिश की पर नहीं किया। ऐसा नहीं कि हमने कोई नशा नहीं किया है , चुपके चुपके तम्बाकू का स्वाद लिया है, बीड़ी सिगरेट भी पिया है । एक बार बीयर और एक बार गांजे का भी स्वाद लिया है। लेकिन सिर्फ स्वाद के लिए एक बार के बाद दुबारा कुछ नहीं खाया पिया। उसका कारण था कि मेरे पिता जी भी कोई नशा नहीं करते थे माता जी भी नहीं करती थी। लेकिन हां मेरे दादा और दादी दोनों पान खाते थे, दोनों चाचा लोग भी तम्बाकू और पान खाते थे।
कक्षा छह में हम जितनी बदमाशी किए थे सात से कम कर दिए आठ में हम कक्षा प्रथम आए ।कक्षा छह में शरारत करने का कारण था कि गांव के बहुत से सहपाठी पढ़ते थे । उस समय गुंडई का भूत सवार था , ए भाव हो गया था कि लोग हमसे डरें, इसलिए हम बात बात पर लोगों को मार देते थे बहुत लड़कों को हम मार दिए थे बहुत से लोग डरने भी लगें थे। लेकिन इसी बीच अपने गांव के लड़कों से मनमुटाव हो गया और उन लोगों का साथ छूट गया और घर वालों के पास शिकायत भी पहुंचने लगा। कक्षा सात में सब कुछ छोड़कर पढ़ईपर ध्यान देने लगा लेकिन एक दिन गणित के अध्यापक उपाध्याय गुरु जी एक सवाल दिए थे उसको हम हम हर नहीं कर पाएं तो हमको गिरा कर मारें थे । मन में तो आया कि आज इनकी बिक्की पलट देंगे और लाठी से सर फोड़ देंगे , फिर घर पर और मार खाने के डर से सब प्लान वहीं भूल गए।।
कक्षा आठ के बाद हाई स्कूल से इंटर तक की पढ़ाई के लिए मैंने अपना नाम राष्ट्रीय इंटर कालेज सुजान गंज में लिखवाया और वहां पर हमने पांच साल में चार वर्षों का कोर्स पूरा किया कारण पहली बार दसवीं कक्षा में फेल हो गया। स्नातक की डिग्री राष्ट्रीय पी जी कालेज सुजानगंज से और स्नातकोत्तर की डिग्री सल्तनत बहादुर पी जी कालेज बदलापुर से पास किया। इसके बाद तैयारी करने के उद्देश्य से हम प्रयाग चलें ग्रे। वहां पर रह कर हमने बीएड पी जी कालेज पट्टी प्रतापगढ़ से किया और अगले वर्ष यूजीसी नेट परीक्षा हिन्दी भाषा से उत्तीर्ण किया। इसके एक वर्ष बाद पी जी कालेज पट्टी प्रतापगढ़ से ही शिक्षा शास्त्र से एम ए भी कर लिया । अब मै टीजीटी पीजीटी की तैयारी करते हुए सरोज विद्याशंकर सरस्वती मंदिर महाविद्यालय सुजानगंज में अध्यापन कार्य कर रहा हूं।
यह मेरा संक्षेप में परिचय था इस, परिचय को हम विभिन्न शीर्षकों के द्वारा आगे वर्णन करेंगे।