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आलोक त्रिपाठी बालवरगंज सुजानगंज जौनपुर एम हिन्दी साहित्य एवं नेट मुझे हिन्दी साहित्य की पुस्तकें पढ़ना और लिखना अच्छा लगता है। अभी तक मैंने कोई भी पुस्तक नहीं लिख सका यद्यपि प्रयत्न जारी है।

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आलोक की डायरी

आलोक की डायरी

'मेरा कुछ नहीं' सब उसका है जो ब्रह्मांड को नियंत्रित करता है , फिर भी हम अपना-अपना कह कर दिन रात दर्प में चूर रहते हैं। मैं भी था अब भी हूं सब समझता हूं कि यह संसार नश्वर है यहां कोई किसी का नहीं है फिर भी दिन रात मेरा है अपने है करता रहता हूं। मैं ह

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आलोक की डायरी

आलोक की डायरी

'मेरा कुछ नहीं' सब उसका है जो ब्रह्मांड को नियंत्रित करता है , फिर भी हम अपना-अपना कह कर दिन रात दर्प में चूर रहते हैं। मैं भी था अब भी हूं सब समझता हूं कि यह संसार नश्वर है यहां कोई किसी का नहीं है फिर भी दिन रात मेरा है अपने है करता रहता हूं। मैं ह

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दिव्यालोक

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दिव्यालोक

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युग दर्शन

युग दर्शन

सात सौ दोहों का संग्रह जिसमें तत्कालीन समाज ज्योतिष नीति प्रेम संघर्ष आदि का सुंदर चित्रण कवि ने किया है।

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सात सौ दोहों का संग्रह जिसमें तत्कालीन समाज ज्योतिष नीति प्रेम संघर्ष आदि का सुंदर चित्रण कवि ने किया है।

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