अंखियां तो झाईं परी,
पंथ निहारि निहारि।
जीहड़ियां छाला परया,
नाम पुकारि पुकारि।
बिरह कमन्डल कर लिये,
बैरागी दो नैन।
मांगे दरस मधुकरी,
छकै रहै दिन रैन।
सब रंग तांति रबाब तन,
बिरह बजावै नित।
और न कोइ सुनि सकै,
कै सांई के चित।