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"स्वतंत्र और संयुक्त भारत की एक दृष्टि"।

29 अप्रैल 2023

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जहां मन निर्भय हो और मस्तक ऊंचा हो;
  जहां ज्ञान मुफ्त है;
  जहां दुनिया को संकीर्ण घरेलू दीवारों से टुकड़ों में नहीं तोड़ा गया है;
  सत्य की गहराई से जहाँ शब्द निकलते हैं;
  जहां अथक प्रयास पूर्णता की ओर अपनी बाहें फैलाता है;
  जहां कारण की स्पष्ट धारा मृत आदत की सुनसान रेगिस्तानी रेत में अपना रास्ता नहीं खोती है;
  जहां आपके द्वारा मन को हमेशा व्यापक विचार और क्रिया में आगे बढ़ाया जाता है
  स्वतंत्रता के उस स्वर्ग में, मेरे पिता, मेरे देश को जगाने दो।

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मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

वाह क्या बात है बहुत सुंदर लिखा आपने 👌👍🙏 मेरी कहानी प्यार का प्रतिशोध पढ़कर उसमें अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏

8 अगस्त 2023

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"स्वतंत्र और संयुक्त भारत की एक दृष्टि"।

29 अप्रैल 2023
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जहां मन निर्भय हो और मस्तक ऊंचा हो;   जहां ज्ञान मुफ्त है;   जहां दुनिया को संकीर्ण घरेलू दीवारों से टुकड़ों में नहीं तोड़ा गया है;   सत्य की गहराई से जहाँ शब्द निकलते हैं;   जहां अथक प्रयास प

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रवींद्रनाथ टैगोर का जीवन इतिहास और कार्य

29 अप्रैल 2023
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मैं सोया और स्वप्न देखा कि जीवन आनंद है। मैं जागा और देखा कि जीवन सेवा है। मैंने अभिनय किया और देखा, सेवा ही आनंद है।" - रवींद्रनाथ टैगोर 7 मई 1861 को पैदा हुए रवींद्रनाथ टैगोर एक प्रसिद्ध भारतीय कवि

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भारत की खोज

29 अप्रैल 2023
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                                                      अहमदनगर किला, 13 अप्रैल 1944 हमें यहां लाए हुए बीस महीने से अधिक हो गए हैं,मेरे कारावास की नौवीं अवधि के बीस महीने से अधिक।अमावस्या का चाँद, अँधे

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अंखियां तो झाईं परी -कबीर

5 मई 2023
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अंखियां तो झाईं परी, पंथ निहारि निहारि। जीहड़ियां छाला परया, नाम पुकारि पुकारि। बिरह कमन्डल कर लिये, बैरागी दो नैन। मांगे दरस मधुकरी, छकै रहै दिन रैन। सब रंग तांति रबाब तन, बिरह बजा

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कबीर के पद -कबीर

5 मई 2023
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प्रेम नगर का अंत न पाया, ज्‍यों आया त्‍यों जावैगा॥ सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता, या जीवन में क्‍या क्‍या बीता॥ सिर पाहन का बोझा लीता, आगे कौन छुड़ावैगा॥ परली पार मेरा मीता खड़िया, उस मिलने का ध्‍यान

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जीवन-मृतक का अंग -कबीर

5 मई 2023
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कबीर मन मृतक भया, दुर्बल भया सरीर । तब पैंडे लागा हरि फिरै, कहत कबीर ,कबीर ॥1॥ जीवन तै मरिबो भलौ, जो मरि जानैं कोइ । मरनैं पहली जे मरै, तो कलि अजरावर होइ ॥2॥ आपा मेट्या हरि मिलै, हरि मेट्या सब

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भेष का अंग -कबीर

5 मई 2023
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माला पहिरे मनमुषी, ताथैं कछू न होई । मन माला कौं फेरता, जग उजियारा सोइ ॥1॥ `कबीर' माला मन की, और संसारी भेष । माला पहर्‌यां हरि मिलै, तौ अरहट कै गलि देखि ॥2॥ माला पहर्‌यां कुछ नहीं, भगति न आई

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मधि का अंग -कबीर

5 मई 2023
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`कबीर'दुबिधा दूरि करि,एक अंग ह्वै लागि । यहु सीतल बहु तपति है, दोऊ कहिये आगि ॥1॥ दुखिया मूवा दु:ख कौं, सुखिया सुख कौं झुरि । सदा अनंदी राम के, जिनि सुख दु:ख मेल्हे दूरि ॥2॥ काबा फिर कासी भया,

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