This is Yogesh , who was interested in the feild of content creation and I'm currently pursuing my undergrad from Kirori Mal College , University of Delhi
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`कबीर'दुबिधा दूरि करि,एक अंग ह्वै लागि । यहु सीतल बहु तपति है, दोऊ कहिये आगि ॥1॥ दुखिया मूवा दु:ख कौं, सुखिया सुख कौं झुरि । सदा अनंदी राम के, जिनि सुख दु:ख मेल्हे दूरि ॥2॥ काबा फिर कासी भया,
माला पहिरे मनमुषी, ताथैं कछू न होई । मन माला कौं फेरता, जग उजियारा सोइ ॥1॥ `कबीर' माला मन की, और संसारी भेष । माला पहर्यां हरि मिलै, तौ अरहट कै गलि देखि ॥2॥ माला पहर्यां कुछ नहीं, भगति न आई
कबीर मन मृतक भया, दुर्बल भया सरीर । तब पैंडे लागा हरि फिरै, कहत कबीर ,कबीर ॥1॥ जीवन तै मरिबो भलौ, जो मरि जानैं कोइ । मरनैं पहली जे मरै, तो कलि अजरावर होइ ॥2॥ आपा मेट्या हरि मिलै, हरि मेट्या सब
प्रेम नगर का अंत न पाया, ज्यों आया त्यों जावैगा॥ सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता, या जीवन में क्या क्या बीता॥ सिर पाहन का बोझा लीता, आगे कौन छुड़ावैगा॥ परली पार मेरा मीता खड़िया, उस मिलने का ध्यान
अंखियां तो झाईं परी, पंथ निहारि निहारि। जीहड़ियां छाला परया, नाम पुकारि पुकारि। बिरह कमन्डल कर लिये, बैरागी दो नैन। मांगे दरस मधुकरी, छकै रहै दिन रैन। सब रंग तांति रबाब तन, बिरह बजा
अहमदनगर किला, 13 अप्रैल 1944 हमें यहां लाए हुए बीस महीने से अधिक हो गए हैं,मेरे कारावास की नौवीं अवधि के बीस महीने से अधिक।अमावस्या का चाँद, अँधे
मैं सोया और स्वप्न देखा कि जीवन आनंद है। मैं जागा और देखा कि जीवन सेवा है। मैंने अभिनय किया और देखा, सेवा ही आनंद है।" - रवींद्रनाथ टैगोर 7 मई 1861 को पैदा हुए रवींद्रनाथ टैगोर एक प्रसिद्ध भारतीय कवि
जहां मन निर्भय हो और मस्तक ऊंचा हो; जहां ज्ञान मुफ्त है; जहां दुनिया को संकीर्ण घरेलू दीवारों से टुकड़ों में नहीं तोड़ा गया है; सत्य की गहराई से जहाँ शब्द निकलते हैं; जहां अथक प्रयास प