आधुनिकता की दौड़ में डगमगाती.... संक्रमण के दौर से गुजरती... मंझधार में फंसी. ... निस्सार जीवन में जर्जर पीत पर्ण सा बिखरा उजडा मन एकाकी राही पथिक की धुंधले सपने जेहन में समाए आशा- निराशा के भंवर में मन में टीस दिल में आस कुछ कर गुजरने की चाह असमंजस मन के किसी कोने में बदलते परिवेश में क्या सही, क्