----------------गौ सेवक ------( सम्पुर्ण कहानी)
निगोड़ी दिन भर खाती रहती है , जितना भी दो हज़म कर जाती है । फिर भी दूध एक पाव से ज्यादा देती नहीं । ओ चुन्नू के पापा जावो इसे किसी मंडी में बेच आओ । चुन्नु की माता हर दिन लगभग दसों बार इस तरह नंदनी को कोसती रहती । इससे आगे कहती कि निगोड़ी दिन भर बाहर घूमती रहती है फिर भी भगवान ने इसे गर्भ धारण का वरदान नहीं दिया है ।
चुन्नु अपनी मम्मी के मुख से नंदनी के प्रति ऐसी कड़वी बातें सुनता तो उसे बहुत दुख होता । वास्तव में चुन्नु और नंदनी बचपन से एक दूसरे के साथी हैं । दोनों की उम्र 8 वर्ष की हो चुकी है । चुन्नू की मां ने कभी चुन्नु को बताया था कि नंदनी की मां उसे जन्म देने के घंटे भर के भीतर ही स्वर्ग सिधार गई थी । यह जानकर चुन्नु को नंदनी के प्रति और प्यार आता था । चुन्नु रोज़ नंदनी के साथ पास ही स्थित नदी में सुबह सुबह चला जाता । वहां खुद भी स्नान करता और नंदनी को भी नहलाता था । नहाते नहाते कभी कभी वह नंदनी की पीठ पर सवार हो जाता और फिर वे दोनों नदी के उस पार चले जाते, जबकि नदी की चौड़ाई 40/50 मिटर से कम नही थी । । वह कभी नंदनी की पूंछ पकड़ कर तैरता था । सही मानों में वह नंदनी के सानिध्य में ही तैरना सीखा था ।
वैसे नंदनी खाती बहुत थी पर थी दुबली की दुबली । पता नहीं उसके शरीर पर खाना लगता क्यूं नहीं था । इसके उलट एक बात नंदनी के पक्ष में थी कि वह फुर्तीली बहुत थी । नदी में उसका तैरना देखने लायक रहता था । नंदनी को चुन्नू के साथ बाहर घूमना बहुत अच्छा लगता था । वह जब भी घूम कर घर पहुंचती थी तो चुन्नु की माता सहोदरा का विलाप प्रारंभ हो जाता । जिसके कारण नंदनी अक्सर उदास हो जाती । वह अक्सर आंसू बहाती हुई सोचती थी कि इसमें मेरा क्या दोष कि मुझे भूख जियादा लगती है और मेरे शरीर में दूध कम बनता है।
अब गांव में बारिश का मौसम दस्तक देने लगा था । रविवार को दोपहर जब लक्षमी घर आई ति वह हांफ़ रही थी । उसके पैरों पर खून के धब्बे थे मानो कि उसके पैरों को किसी ने दांतों से काटा हो । शायद उसे गांव के कुत्तों ने मिलकर दौड़ाया और काटा हो । वह कराहती हुई अपनी जगह पर बैठ गई । अभी वह चारा भी ठीक से नहीं खा पा रही थी । जब सहोदरा ने उसका यह हाल देखा तो उसका बड़बड़ाना फिर चालू हो गया कि करमजलि मर क्यूं नहीं जाती । अभी तक हमारे सर पर उसके चारा का खर्चा था , अब तो दवा दारू का खर्चा भी करना पड़ेगा । वह मर जाए तो हमें मुक्ति मिले ।
उधर चुन्नु उसके घावों को देखकर रो पड़ा उसे लगने लगा कि बेचारी को कितना दर्द हो रहा होगा। उसने गांव में स्थित वेटेनरी हास्पिटल के सहायक से पूछकर नंदनी के घावों में चिकनी मिट्टी का लेप लगा दिया । जिससे उसे लगा कि नंदनी का दर्द कुछ तो कम हुआ है और नंदनी चुन्नु के हाथों को चांटकर अपने प्यार और धन्यवाद का इज़हार करने लगी ।
बारिश के इस मौसम में कुछ दिनों से गांव में कम जियादा बारिश भी हो रही थी । एक रात चुन्नु की नींद रात 12 बजे खुल गई वजह थी कि नंदनी आंगन पर बंधी ज़ोर ज़ोर से रंभा रही थी, चिल्ला रही थी । चुन्नु ने बाहर आकर देखा तो पाया कि ज़ोरदार बारिश हो रही है , आंगन में पानी भरना प्रारंभ हो चुका था । घर के बाहर चारों तरफ़ पानी ही पानी नज़र आ रहा था। चुन्नु को लगा कि कुछ घंटों से गांव में बहुत तेज़ बारिश हो रही है जिसके कारण नदी अपना पाट तोड़कर गांव में घुसने लगी है । चूंकि चुन्नु का घर नदी के बिल्कुल पास था अत: उनके घर में नदी और बारिश का पानी सबसे पहले अपना जलवा दिखाना प्रारंभ कर दिया था । इसे लगा कि गांव में बाढ की हालात बनते जा रही थी । चुन्नु ने अपने माता पिता को तुरंत ही उठाकर वस्तुस्थिति से अवगत कराया । वे भी चारों तरफ़ का नज़ारा देखकर डर गए और समझ गए कि गांव के लोगों के लिए मुश्क़िल घड़ी आ गई है । अब सारे लोगों को इस गांव से निकल कर दूसरे किनारे की ओर जाना होगा । नदी का दूसरा किनारा उंचा था और दूसरे किनारे पर बसा गांव डेहरी कभी भी बाढ से प्रभावित नहीं हो पाया था , भले ही कितनी भी बारिश कभी भी हुई हो ।
चुन्नु के माता पिता को लगने लगा कि हमें जल्द से जल्द गांव छोड़कर दूसरे किनारे पर बसे ग्राम डेहरी जाना होगा । बारिश का प्रकोप यूं ही कहर ढाता रहेगा तो 2 घंटों में ही यह गांव बचेड़ी पूरी तरह से जलमग्न हो जाएगा । धीरे धीरे सारा गांव जाग गया । चारों तरफ़ हल्ला होने लगा कि गांब बाढ से घिरने लगा है, जल्द से जल्द गांव खाली करके किसी सुरक्षित स्थान पर सबको जाना होगा ।
चुन्नु के पिता भी कुछ ज़रूरी सामान और घर में रखे नगदी पैसों को समेटकर नदी के उस पार जाने की तैयारी करने लगे । उनके घर में एक छोटी सी नाव थी जिसकी तली में एक दो छोटे छोटे छिद्र थे । चुन्नु और उसके पिताजी ने उन छिद्रों को कपड़ों और पुट्ठों से बंद कर दिया फिर वे तीनों नाव पर बैठकर नदी में उतर गए। साथ ही उन्होंने अपने घर की गाय नंदनी को भी नाव के अगले सिरे पर खड़ा कर दिया । नंदनी अभी भी अपने घावों से परेशान और बेहाल नज़र आ रही थी । चुन्नु के पिताजी ने नदी के बहाव से लड़ने के लिए दो लंबी बांसें भी नाव में रख लिए थे । नदी की चौड़ाई 40 से 50 मिटर रही होगी , उन सबको उतनी दूरी ही पार करके सुरक्षित स्थान तक पहुंचना था ।
उनकी नाव डगमगाते डगमगाते इस पार से उस पार जाने के लिए गतिशील हुई । 20 से 25 मिटर यानी आधी दूरी को वे बिना किसी विशेष परेशानी के पार कर गए। पर इसके बाद बेहद तेज़ पानी का एक रेला आया तो उनकी नाव उलट गई और वे चारों नदी की गोद में पहुंच गए । चुन्नु और उनके पिताजी को तैरना आता था अत: वे तो सुरक्षित तरीके से आगे बढने लगे, लेकिन उनकी माताजी तैराकी के मामले में अनाड़ी थी अत: वह डूबने लगी। नंदनी ने जब देखा कि उसकी मालकिन डूब रही है तो वह तेज़ी से मालकिन के पीछे गई और फिर डूबकी लगाकर अपनी मालिकिन के नीचे पहुंच गई फिर उसे अपनी पीठ पर सुरक्षित बिठाकर आगे बढने लगी । यह सब देखकर चुन्नु ने अपनी माता से कहा कि नंदनी की पीठ पर बिना डर के बैठे रहो और उसके सिंग को दोनों हाथों से मजबूती से पकड़े रहो । नंदनी के हाव भाव से लग रहा है कि वह तुम्हें सुरक्षित तरीके से उस पार पहुंचा देगी । नंदनी अपनी मालिकिन को पीठ पर बिठाए आगे बढने तो लगी पर पानी के तेज़ बहाव के कारण उसे भी परेशानी हो रही थी । उसे अपनी पूरी ताक़त लगानी पड़ रही थी । वह अभी भी अपनी चोटों से उभर नहीं पाई थी । कुत्तों के द्वारा दिए गए घाव अभी भी उसे टिसते थे । थोड़ा आगे बढने के बाद उसकी सांसे फूलने लगीं । थोड़ी देर के लिए वह घबरा गई कि मैं अपनी मालिकिन को सुरक्षित उस पार ले जा पाऊंगी या नहीं । वह फिर भी कोशिश करती रही । इस तरह वह लगभग 10 मिटर की दूरी और पार कर ली । अब उस किनारे की दूरी मुश्क़िल से 5 मिटर ही रही होगी कि नंदनी के सीने में असहनीय दर्द होने लगा । उसे लगने लगा कि उसका अंत आ गया है । उसने भगवान महादेव को मन ही मन याद किया और याचना करने लगी कि हे प्रभु इस नंदनी को कर्तव्य पालन करने दो ।मुझे मेरी मालिकिन को बचाने के लायक शक्ति प्रदान कीजिए , उसके बाद भले ही मेरा प्राण हर लीजिएगा। इतना कहते ही पता नहीं नंदनी के शरीर मेँ क्या बदलाव आया। उसे लगा कि मेरे शरीर का दर्द बिल्कुल कं हो गया है। तब नंदनी ने आगे बढने के लिए अपनी समूची ताक़त लगा दी । जिसका परिणाम यह हुआ कि वह 5 मिटर की उस दूरी को पार करके किनारे पर पहुंच गई । उनके पार पहुंचते ही चुन्नु की माता सहोदरा देवी नंदनी की पीठ से उतरी और फिर नंदनी को गले लगाकर फूट फूटकर रोने लगी । तब नंदनी ने अपनी मालिकिन को प्यार भरी नज़रों से देखा । उसकी भी आखों से भी आंसू छलक रहे थे । उसकी आंखों से ऐसा लग रहा था मानो वह अपनी मालिकिन से कहना चाह रही हो कि मालिकिन मुझे माफ़ कर देना । मेरे कारण आपको बहुत ज्यादा कष्ट झेलना पड़ा है । उसके बाद नंदनी की आंखे सदा के लिए बंद हो गईं । यह सब देखकर सहोदरा दहाड़ मारकर रोने लगी । उसे अब एहसास हो रहा था कि नंदनी उसके परिवार के लिए कितनी महत्वपूर्ण थी , क्या हुवा वह दूध कम देती थी या क्या हुआ वह चारा ज्यादा खाती थी पर वह इस परिवार के लिए पूरी तरह से समर्पित थी । तभी तो उसने अपनी जान देकर मुझे बचाया है ।
इसके बाद सहोदरा की जीवन और सोच में बेहद बदलाब आ गया । वह अब अपनी खेती की ज़मीन पे एक गौशाला का निर्माण करवा करके गायों व अन्य पशुओं की सेवा करने लगी है । आज की तारीख में उसके साथ काम करने वाले 10 सहायक हैं और उसकी गौशाला में लगभग 50 गायें, बैल व भैंसें हैं । सहोदरा जी ज्यादातर बीमार और चोटिल पशुओं को अपनी गौशाला में पहले रखती हैं । सहोदरा जी के इस पुण्य काम में अच्छा खासा पैसा लगता ही होगा । इतने पैसों का प्रबंध सहोदरा जी कैसे कर पाती होंगी ,ये तो वही जानती होंगी या भगवान जानता होगा । उनसे कभी कोई पछता था कि पैसों का इंतजाम कैसे होता है तो उनका जवाब रहता था कि ये तो सब ऊपर वाला अपने आप ही कर देता है। हमें इस बाबत मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती । अब गांव के कुछ किसान भी सोचने लगे हैं कि हम भी पशु सेवा का कुछ काम करें और अपने मनुष्य होने को प्रमाणित करें ।
(समाप्त )