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कविता - जोकर हूं मैं

25 जुलाई 2022

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जोकर हूं मैं

किसी ने कहा कि तुम हंसते बहोत हो।
किसी ने कहा की तुम हसाते बहोत हो।
क्यों जोकर बने हुऐ हो और लोगों को हंसाते हो।
अब क्या कहूं उनसे , की उनके ही गम उन्ही से चुराने आता हूं।
अब क्या कहूं उनसे मैं जो हंसता हूं और जो हसाता हूं।
उसी हसी मैं खुद के गम भी छिपाता हूं।
हां मैं जोकर हूं अपने ही दर्द को अपनों से ही छिपाता हूं।
पर खुश हूं कि अपनी झुटी हंसी से तुम्हे हंसाता हूं।
सबकी चिंता करते करते मैं खुद को ही भूल गया हूं।
अपनी फ़िक्र ना करते हुऐ मैं अब जोकर बन गया हूं।
सबकी परवाह करते करते अब मैं खुद ही जोकर बन गया हूं।
सबकी ख्वाइशों को पूरा करते करते खुद की ख्वाइश को भूल गया हूं।
हां अब मैं जोकर बन गया हूं।
हर एक अपनों को खुशनुमा बनाते बनाते , में खुद ही तन्हा हो गया हूं।
सबको खूबसूरत बनाने के चक्कर में 
मैं खुद ही बदसूरत सा हो गया हूं।
क्या कहूं की मैं अब जोकर बन गया हूं।
ये मालूम है हमे की कोई नही होगा जब मैं खुद ही टूट जाऊंगा।
ये दुनिया वाले उल्टा ही सिला देते हैं।
की वक्त आने पे खुद ही जान जाऊंगा।
क्या बोलूं अब तुम्हे हसाने और तुम्हारे गम भुलाने के लिए ।
मैं जोकर बन जाऊंगा 
हां मैं जोकर बन जाऊंगा।

निखिल श्रीवास्तव

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