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कविता - मां

25 जुलाई 2022

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मां

जब मैं छोटा था तब तू थी जिसने मुझे
अपना सपना समझा था मां।
वो तू थी जिसने मुझे पहली बार भूख लगने पे सीने से लगाया था मां ।
जब मैं सोते - सोते डरा या सहमा तो तू थी जो मेरे पास थी मां ।
जब मैंने अपना पहला कदम उठाया तो तू ही तो थी जिसने अंशुओ से भरी आंखों से मुझे देखा अपनी दोनो बाहों को फैला के मुझे सीने से लगाया था मां ।
अब जब मैं अपने स्कूल में गया तो वो तू थी जिसने मेरी उंगलियां पकड़कर सही और गलत की पहचान कराई थी मां।
वो तू थी जिसने मेरी गलतियों पे डाटा था और समझाया था मां ।
जब बड़ा हुआ तो वो तू थी जिसने पिताजी के जिम्मेदारी का एहसास मुझमें डाला था मां ।
मां ऐ मां तू सुन रही हैं ना कहा है तू बस अब थक गया हूं थोड़ा सा तेरी गोदी पे सर रख कर सोना चाहता हूं।
जिंदगी की इस आपा धापी से अब थक सा गया हूं मैं मां ।
बस अब तुझे फिर से गले लगाना चाहता हूं मां ।
मां सुन रही है ना फिर से तुझे पाना चाहता हूं ।
अब फिर तेरी उंगलियों के स्पर्श को महसूस करना चाहता हूं मैं 
मां ।

निखिल श्रीवास्तव

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