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बच्चो का योग्य धडतर, मा बाप की फर्ज

10 दिसम्बर 2021

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प्रस्तावना :-
          यह लेख भारतीय संस्क्रुती को बचाने और सही संस्कार सै शूरवीर बालक, और सच्चा विवेकी , नारी सन्मानवाला धर्मरक्षक  शुरवीर और विरांगना युवती बनाकर संसार की सारी समस्या खतम करने हैतूसर लिखा है. समय लेकर शांत चित सै जरुर पढे.
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बच्चो का योग्य धडतर, मा बाप की फर्ज

    मीटेगी सारी शिकायते जब ऐक बच्चा संस्कारी शुरवीर बनेगा
नाज करेगे वह मा बाप, जिनके महान संस्कार का छलकता प्रभाव होगा
          
              आज के मा बाप को खास यह ध्यान देना चाहिये की वो बच्चो को अपने सनातन धर्म का शिक्षण दे रहे है या सिर्फ खूद पश्चीमी संस्क्रूती के प्रभावमे आकर बच्चो को सनातन धर्मसे विपरित शिक्षा दे रहे है..!
ऐक बात तो तय है की जैसा बीज संस्कारोका बोयेगे वैसा ही वटव्रुक्ष होगा. अगर हम दीखावै मे न आकर भारतीय संस्क्रुती के आधारीत विवेक, वाणीमे नम्यता शिखायैगे तो वह आजीवन वणी गुणो से सबको प्रिय लगेगे. परोपकारकी भावना का विकास करेगे, नीजी स्वार्थ हर बात मे सोचना नही शिखायैगे तो देश का कल्याण करेगे और दुसरे लोग उनको भरपूर सन्मान देगे,
     शिक्षा भले ही अंग्रेजीमे दीजीये पर संस्कार तो भारतीय ही दीजीये, खास तो माॅ और बहन बेटी की तरफ अति सन्मान का भाव शिखायेगे तो महीलाओके छेडती और बलात्कार बिना पूलीस के उपियोग के समाज मे कम हो जायेगे,
             भव्य भुतकाल दैखे शिवाजी, प्रताप, झासी की रानी, पद्मीनी, दूर्गावती ऐसै ही महान नही बनै थे उनके मा बापने ही उनको महान संस्कार सिंचध से महान बनाया था. वो महान मातापिताने ही अपने बेटे को महान बनाया था जिन पर आज हम भारतवासी गर्व करते है.
         हम सब भी अपने बच्चो को महान बना शकते है. वीरता, शौर्य और नम्रता के संस्कार देकर. याद रखे सिर्फ लाड प्यार देना वैसा ही है जेसे हम उसकी जिन्दगी के सही राह सै अलग पथ पर भटका देना "अति सर्वत्र वर्जयेत"

  " राह सच्ची दीखाये, वही मा बाप ही सच्चे कहलायेगे
दीझा विहिन युवक, गलत संस्कार से भटका हुवा कहलायेगे"
              
              भुतकाल मे राजकुंवर फोरेन अभ्यास करते थे. पर वहां अपने शौर्य, विवेक से सबका दील जीतकर भारतीय संस्क्रुतीका गौरव बढाते थे. विदेश से पदवी लेकर भारत आते थे, तब भी कभी भारतीय लोगो के साथ अंग्रेजीका ऐक शब्द भी उपीयोग नही करते थे. और उनका शौर्य और विवेक वही भारतीय जैसा हि रहता था कारण मा बाप के महान  संस्कार थे. अगर विदेशी गोरी लडकी उनके संपर्कमे आती थी तो वोभी महान संस्कारोके प्रभावसे भारतीय नारी बन जाती थी.
     बच्चों को भोगी विलासी न बनाएं। धार्मिक, चरित्रवान बुद्धिमान ईमानदार बनाएं। तब वे अपना और आपका भी कल्याण कर पाएंगे।
        आज बहुत से माता-पिता ऐसी शिकायत करते हैं कि हमारे बच्चे हमारी बात नहीं मानते, भारतीय सभ्यता से बहुत दूर हो गए हैं। जन्मदिन पर केक काटते हैं। होटल में पार्टी मनाते हैं। क्लब में जाते हैं, देर रात तक जागते हैं , डांस आदि में बहुत रुचि रखते हैं। हमें गुड नाईट और गुड मॉर्निंग बोलते हैं। पांव छू कर नमस्ते नहीं करते। हम जो बात कहते हैं, उसे वे मानते नहीं, अपनी मनमानी करते हैं इत्यादि।
                पर मा बाप को कडवा सत्यसमज लेना चाहिये के बच्चो को बिगाडने मै जवाबदार हम खुद है. हमने ही संस्कार सिंचन नही किया अगर मा बाप का संस्कार का प्रभाव होता तो बच्चा महान ही होता विवेकी ही होता. सिर्फ जन्म देकर मा बाप की फर्ज पूरी नही होती. जीसका सर्जन कीया उसे सही राह पर चलना शिखाना भी मा बाप की फर्ज है. दूसरो को दोष देकर या बाहरी वातावरण को दोष देकर हम अपनी भुल को दूसरो पर नही ठोक शकते.
           बच्चो का योग्य धडतर मा बाप की पहली फर्ज है यह मानकर जो पूरी लगन सै अपने प्रिय बालकको महान संस्कार देगे तो संसारकी सारी शिकायते मिट जायेगी और बदले मे वो मा बाप को सदैव अपना वीर, विवेकी बेटा गौरव प्रदान करेगा.
        यह लेख पढने के लिये ही नही आत्ममंथन करे क्या आप सच्चे मा बाप बनना चाहते है? तो जरूर अपने बालक को महान बनाना आपके हाथ मे है, शुभ शरुआत घर सै ही करे
           🌺🚩जय माताजी ⚔💥

        माता पिता की ये सब शिकायतें क्यों आने लगी? इसमें मुख्य दोषी कौन है? इसका उत्तर है, माता पिता स्वयं दोषी हैं। उन्होंने अपने बच्चों को यह कब सिखाया, कि अपने से बड़ों के पांव छू कर नमस्ते करो। माता पिता ने बच्चों को यह कब सिखाया कि  जन्मदिन होटल पार्टी में नहीं मनाएंगे, घर में हवन करके मनाएंगे। माता पिता ने बच्चों को मन्दिरों में जाना, विद्वानों के प्रवचन सुनना, हर रोज गायत्री मन्त्र से भगवान की उपासना करना, दो-काल सन्ध्या करना, यज्ञ हवन करना, रोगियों की सेवा करना, परोपकार करना, गरीब लोगों की सहायता करना, भारतीय वेशभूषा पहनना, सभ्यता से सम्मान से बोलना, तपस्वी चरित्रवान बुद्धिमान ईमानदार बनना, बड़ों का आदर करना, प्रत्येक परिस्थिति में प्रसन्न रहना आदि, इस प्रकार की बातें, बच्चों को माता-पिता ने कब सिखाई ?

      उन्होंने तो बचपन से ही बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाई, और अंग्रेजियत सिखाई। धन कमाने का, धनवान बनने का ही लक्ष्य सिखाया। केवल भोगवादी ही बनाया। इतनी गलतियां करने के बाद अब शिकायत करते हैं!

         अंग्रेजी पढ़ाइए इसमें कोई आपत्ति नहीं है। आज व्यापार नौकरी के लिए अंग्रेजी सीखना आवश्यक है। इसलिये अंग्रेजी भले ही सिखाओ, परन्तु अंग्रेजियत मत सिखाओ। जीवन शैली तो भारतीय ही होनी चाहिए।
आवो मिलकर करे, हम सब प्रयास यूवा कल्याण का
शूरवीर बनाये संस्कारोसे, निर्माण करे महान राष्ट्र का
          🌹 जय माताजी🙏


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