shabd-logo

बच्चों को सिखाएं आदर्श

16 मार्च 2021

464 बार देखा गया 464
सबसे पहले हम बात करेंगे बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा और संस्कार के बारे में। जैसा कि हम सब जानते ही हैं कि बच्चे का पहला स्कूल उसका घर होता है । वो अपने बड़ों को देखता है और उन्हीं से सीखता है। जो भी परिवार के लोग उसे बताते हैं दुनिया के बारे में वह उसी को सच मानकर चलता है और उसी के आधार पर व्यवहार करता है। इसके बाद इंसान जाता है समाज में। पास पड़ोस, स्कूल , और बाहर के वातावरण में वह जो भी देखता है उसे अपने जीवन में उतार लेता है। हमारा समाज स्कूली शिक्षा को बहुत ज्यादा महत्व देता है लेकिन स्कूली शिक्षा का हमारे जीवन में उतना अधिक महत्व है नहीं । क्यों कि वहां पर हमें सिर्फ एग्जाम देना और पास होना सिखाया जाता है । हमारी शिक्षा प्रणाली हमें केवल एक नौकरी या रोजगार दिलाने में सहायक है इसके अतिरिक्त इसका कोई खास प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर नहीं पड़ता। इसका कारण यह है कि जो बातें हम किताबों में पढ़ते हैं वो हमें वास्तविक जीवन में देखने को नहीं मिलती । हमारा इतिहास आदर्शों से भरा पड़ा है लेकिन आज के समय में उनको अपने जीवन में उतारना बेहद मुश्किल लगता है। और हमारे माता पिता और समाज हमें उन आदर्शों के बारे में जिस तरीके से बताते हैं वो स्वयं उनका पालन कभी नहीं करते । आप लोगों ने एक कहावत तो सुनी होगी कि कहने से ज्यादा करने का प्रभाव पड़ता है । बच्चे उन चीजों पर इतना ध्यान नहीं देते जो आप कहते हैं बल्कि उस पर ध्यान देते हैं जो आप करते हैं।

आदर्शों का एक सबसे बड़ा उदाहरण हैं पुरुषोत्तम श्री राम । उनका जीवन चरित्र जब हम पढ़ते हैं तो हमें हर मोड़ पर एक नया आदर्श मिलता है। पिता, पुत्र , भाई , पति- पत्नी हर किरदार हमें एक सीख देता है। लेकिन हम में से कितने लोग हैं जो इन आदर्शों का पालन करते हैं ? अगर सच्चाई और ईमानदारी से आप स्वयं से ये प्रश्न करें तो आपको उत्तर मिलेगा कि क्यों हमारी आने वाली पीढ़ी हम पर ही प्रश्न चिन्ह लगा देती है। दरअसल हम लोग उन्हें बड़े बड़े आदर्श और कीर्तिमान सिखाते तो हैं लेकिन जब उन्हें कर के दिखाने की बात आती है तो हम स्वयं को असमर्थ पाते हैं । यहां तक कि हम अपने बच्चों को भी वो करने से रोकते हैं , जाने अंजाने पर हां हम ऐसा करते हैं ।

राधा कृष्ण सा प्रेम हो या समाज में फैली कुरीतियों को खत्म करने की बात ये सारी बातें हमें तभी अच्छा लगता है जब तक ये किताबों और फिल्मों में होती हैं। लेकिन जब आपके अपने बच्चे या परिवार का कोई सदस्य इन्हे अपने जीवन में उतारना चाहता है तो आप परेशान है जाते हैं , और उन्हें ये सब करने नहीं देते। आपका डर कोई भी हो , लेकिन आप उन्हें आगे बढ़ने से रोक देते हैं।

वैसे भी भारतीय समाज में माता पिता अपने बच्चों बहुत सी उम्मीदें लगा कर रखते हैं। हालांकि यह गलत नहीं है लेकिन आपका यह मोह उन्हें आगे बढ़ने नहीं देता। आप उन्हें अपनी सोच के हिसाब से चलाते हैं और ये भूल जाते हैं कि उनका अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व है। उनकी अपनी एक सोच है और अपना एक दृष्टिकोण है। आपकी नजर से समाज और दुनिया को देखते हुए उनकी अपनी नजर कहीं खो जाती है। आशाओं और उम्मीदों का बोझ उन्हें स्व विकास और आत्मज्ञान के रास्ते पर बढ़ने नहीं देता। माता पिता बेशक भगवान की तरह होते हैं , और अपने बच्चे से बेहद प्रेम करते हैं लेकिन प्रेम और मोह में फर्क हमें समझ नहीं आता। प्रेम उस कहते हैं जहां आप दूसरे को आगे ले जाने में उसकी सहायता करते हैं लेकिन अपने मोह को प्रेम का नाम देकर आप अपने बच्चों को बांध देते हैं और उनका जीवन कभी भी सार्थक नहीं बन पाता। इसलिए बच्चों का पालन करें अपना धर्म समझ कर और फिर उन्हें उनकी शिक्षा , संस्कार और समझ के अनुसार जीवन जीने दे , हां कहीं गलत लगे तो उन्हे रोके , समझाए लेकिन कभी भी उन पर अपना अधिकार ना जताएं।



Ankita purohit की अन्य किताबें

1

आत्मसम्मान - एक अधिकार

5 मार्च 2021
0
0
0

रोज की जिंदगी में हम लोग कई बार ऐसी परिस्थितियों से गुजरते हैं जब हमें समझौते करने पड़ते हैं , कभी रिश्तों में तो कभी अपने सपनों से । रोज ना जाने हम ना चाहते हुए भी जाने कितने समझौते कर लेते हैं सिर्फ यही सोच कर कि ठीक तो है ना । अगर मेरे ये करने से कोई रिश्ता बचता है तो ठीक तो है ना । अगर मेरे ये क

2

बच्चों को सिखाएं आदर्श

16 मार्च 2021
0
0
0

सबसे पहले हम बात करेंगे बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा और संस्कार के बारे में। जैसा कि हम सब जानते ही हैं कि बच्चे का पहला स्कूल उसका घर होता है । वो अपने बड़ों को देखता है और उन्हीं से सीखता है। जो भी परिवार के लोग उसे बताते हैं दुनिया के बारे में वह उसी को सच मानकर चलता है और उसी के आधार पर व्यवहार

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए