साथ घूमते थे
नंगे पांव दूर तक
बाग में खेत में
और सड़क पर
कभी नहर के किनारे
पूरे एक-एक प्रहर तक
नहाते थे डुबकियां लगाते
धूल फेंकते दोस्तों पर
गम ना था फिक्र न थी
मां से पिटने की
न था पिता से डांट
खाने का डर
मगर फिर भी
एक भय व्याप्त था
बड़े भाई के
हाँथ उठ जाने पर
गम न था फिक्र न थी
सूखी रोटी भी
भर पेट खाते थे
कभी अपने घर
कभी दोस्तो के घर
कभी नीली कभी पीली
लाल हो या काली
तितली के पीछे भागते थे
दौड़ते थे कूदते थे
गम न था फिक्र न थी
दूर तलक उड़ जाएगी
रंग बिरंगी प्यारी सी
हाँथ से छूटकर
रात को देर तक
जुगनुओं के पीछे
उत्सुकता लिए
पकड़ने को तत्पर
गम न था फिक्र न थी
नन्हे से जीव को
डिबिया के भीतर
हौले से बन्द कर
सुबह फिर उठकर
जल्दी देखना
उत्सुक नजर से
डर-डर कर
कभी बैलगाड़ी
कभी रहट
क़भी कोल्हू के पीछे
घूमना चक्कर-चक्कर
गम न था फिक्र न थी
कच्चे फलों को तोड़ने की
कभी आम कभी बेर
कभी जामुन के ऊपर
गम न था फिक्र न थी
ऊंचे अमरूद तोड़ने को
चढ़ जाना
एकदूझे के ऊपर
@ देवेन्द्र राजपूत, देव