बघेली कविता -
जउने दिना घर मा महतारी नहीं आबय,
जानि ल्या दुअरा मा ऊजियारी नहीं आबय ।
जउन खइथे अपने पसीना के खइथे,
हमरे इहाँँ रासन सरकारी नहीं आबय ।
ठाढ़ के मोगरा टेड़ कइके देखा ,
बेसहूरन के माथे हुसियारी नहीं आबय ।
कब्जाय लिहिन उँईं सगली जाघा जमींन,
अब अर्जी लगाए मा पटवारी नहीं आबय ।
द्रौपदी के धोतिया के खीचै दुसासन,
कलजुग मा कउनव गिरधारी नहीं आबय ।
-- प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय'
मोबा; 9981153574