shabd-logo

बल्देवगढ़ का किला

13 मार्च 2022

676 बार देखा गया 676
1-बल्देवगढ किला

:1- ‘‘बुंदेलखण्ड का बल्देवगढ़़ किला’’ 


-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
                        भारत में वैसे तो लगभग हर क्षेत्र में अनेक किले और दुर्ग अभी भी अपनी दास्तान बयां करते दिखाई पड़ते हैं किन्तु मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में बहुत संख्या में देखने को मिलते है। बल्देवगढ का किला जिला मुख्यालय टीकमगढ़ के मात्र 26 किलोमीटर पर स्थित है बल्देवगढ़ किले का निर्माण महाराजा बिक्रमादित्य सिंह बुंदेला (सन्-1776-1817) नें मराठों के आतंक एवं लूटपाट से भयभीत होकर 18वीं शताब्दी में बनाया था। 
महाराजा बिक्रमादित्य सिंह  बुंदेला ने सन् 1783ई. में अपनी राजधानी ओरछा से टीकमगढ़ बनाया तो सैन्य स्थिति को मजबूत करने के लिए तथा यहाँ युद्ध सामग्री के भंडारण की व्यवस्था करने के लिए इस किले का निर्माण किया गया था। यह किला तीन तरफ से ग्वालसागर, जुगलसागर एवं धर्मसागर तीन तालाब से घिरा है एवं दक्षिण की ओर पहाडी है जिससे यह किला भी बहुत सुरक्षित माना जाता है। 55 से 70 एकड़ में इस दुर्ग का निर्माण कराया गया है।
          दीवानखाना के नजदीक मंदिर बल्दाऊ जू की स्थापना करायी तथा पास में ही तोपखाना है। जिसमें भुवानी शंकर विशाल तोप गाड़ी पर तैयार खड़ी रहती थी। 
         यहाँ पर एक आल्हा मुंडा भी है जिसमें राजा द्वारा आयोजित कुश्ती में पहलवान अपना दमखम दिखाया करते थे कहते है एक बार यहाँ पर ‘आल्हा’ ने भी कुश्ती में भाग लिया था। तब राजा के आल्हा को सबसे ऊँचे स्थान पर बने भवन को भैट किया था उसे ही ‘आल्हा मुंडा’ के नाम से जाना जाता है। किले के ऊपरी हिस्से में सात मढियां है जहाँ से चारों तरफ को विहंगम दृश्य दिखाई पड़ता है। यहीं पास ही में एक पहाड़ी पर माँ बिन्यवासिनी का मंदिर है। चैत के महीने में यहाँ प्रसिद्ध मेला लगता है।
इस किले का मुख्य द्वार पहाड़ को काटकर बनाया गया है। दूसरा दरवाजा सामान्यजन एवं राज्य कर्मचारियों के लिए बस्ती एवं किले के मैदान की ओर उत्तर दिशा में है।
इस किले की यह खास विशेषता है कि इस किले में एक निश्चित अंतराल में बने बुर्जो पर तोपें रखी जाती थी। जिसमें भवानी शंकर एवं गर्भ गिरावन तोप बहुत प्रसिद्ध थी।
किले का विहंगम दृश्य किले के ऊपरी हिस्से में सात मढियां है जहाँ से चारों तरफ को विहंगम दृश्य दिखाई पड़ता है। 



गर्भ गिरावन तोप बहुत प्रसिद्ध थी। ऐसा कहा जाता है कि गर्भगिरावानी तोप युद्ध में चलती थी तक इसकी तेज आवाज से आसपास के क्षेत्र के लगभग बारह कोस तक की गर्भवती स्त्रियों के गर्भ गिर जाते थे। इसी कारण से बुन्देलखण्ड में कहावत बहुत प्रसिद्ध है कि ‘तुम कौन बल्देवगढ़ की तोप हो’ अर्थात बहुत बड़ी आदमी होना। गाँव के बुजुर्ग बताते है कि एक बार जब किले की साफ-सफाई की गयी थी तो यहाँ से कुछ पत्थर के गोले जिनका आकार 2.5 से 10 किलोग्राम तक था मिले थे इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह तोप उस समय कितनी शक्तिशाली थी।
      किले के चैकीदार श्री गनेश रजक जी ने बताया कि बल्देवगढ़ को अब पर्याटक नगर घोषित कर दिया गया है तथा इस किले का पुनः रंगरोगन किया गया है जिससे इस किले की खूबसूरती बहुत बढ़ गयी है देश भर से अनेक लोग यहाँ पर प्रसिद्ध तोप को देखने आया करते है। किले के नजदीक ही बस स्टेण्ड है। जहाँ बसों का आवागमन होता ही रता है। मुख्य सड़क से ही किले का अद्भुद नजारा देखने को मिल जाता है।
बल्देवगढ़ में पान बड़े पैमाने पर होता है तथा तालाब की रोहू मछली बहुत प्रसिद्ध है। जो कि बाहर दूर-दूर तक भेजी जाती है।
          000

               आलेख -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
                         संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
                    अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
                जिलाध्यक्ष-वनमाली सृजन केन्द्र,टीकमगढ़
                     शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
            पिनः472001 मोबाइल-9893520965
           E Mail-   ranalidhori@gmail.com
           Blog - rajeevranalidhori.blogspot.com

 

 
 
 
 
 

 

आलेख- राजीव नामदेव "राना लिधौरी", टीकमगढ़ 
संपादक आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे शिवनगर कालोनी टीकमगढ़ (मप्र)
मोबाइल-9893520965

3
रचनाएँ
बुंदेलखंड के अद्भुत किले
0.0
भारत के हृदय स्थल में उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के कुछ जिलों को मिलाकर बना हुआ क्षेत्र ही बुंदेलखंड के नाम से प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में लगभग हर जिले में किले और दुर्ग है पुरे भारत वर्ष में सबसे अधिक किले आपको बुंदेलखंड में देखने को मिल जायेंगे। आज भी कुछ अद्भुत किले अपनी विशेषताओं के कारण बहुत प्रसिद्ध है। इन्हें लोग दूर दूर से देखने आते है। हमने यहां पर कुछ ही किलों के बारे में संक्षिप्त में जानकारी दी है। खासकर टीकमगढ़ जिले के किलों के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है ताकि युवा पीढ़ी हमारे यहां के किलों के बारे में जान सके उनका इतिहास जाने। आशा है आपको मेरा यह छोटा सा प्रयास जरूर पसंद आयेगा। लेखक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' संपादक- 'आकांक्षा' पत्रिका अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़ टीकमगढ़ (म.प्र) मोबाइल-9893520965

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए