3- मोहनगढ़ का ऐतिहासिक किला
3:- ‘‘बुंदेलखण्ड का मोहनगढ़ किला’’*
-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’*
भारत में वैसे तो लगभग हर क्षेत्र में अनेक किले और दुर्ग अभी भी अपनी दास्तान बयां करते दिखाई पड़ते हैं किन्तु मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले की मोहनगढ़ तहसील पर स्थित किला मोहनगढ़ अपने आप में अनौखा और अदभुद है। यह किला सबसे सुरक्षित किलों में से एक माना जाता है। यही कारण है कि इस किले पर कभी आक्रमण नहीं हुआ। यह अपनी अजेय होने की कहानी अभी भी कहता हुआ प्रतीत हेाता है। किले का भ्रमण करते हुए हम उसके निर्माण और भौगोलिक स्थिति से स्वयं आसानी से अंदाजा लगा सकते है कि यह किला किसी प्रकार से सुरक्षित रहा होगा।
मोहनगढ़ का ऐतिहासिक किला जिला मुख्यालय टीकमगढ़ से लगभग 34 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम मोहनगढ़ के पश्चिमी क्षेत्र में 25-00 उत्तरी अक्षांश एवं 78-47 पूर्वी देशान्तर पर स्थित है टीकमगढ़ से सीधी बस मोहनगढ़ के लिए जाती है।
मोहनगढ़ के इस किले का नाम श्री कृष्ण के उपनाम ‘मोहन’ के नाम से मोहनगढ़ पड़ा था। वनगाँव के जागीरदार उदोत सिंह के समय इसको ‘गढ़’ कहा जाता था। जब उदोत सिंह ओरछा के राजा (1689-1736ई.) बन गए तो उन्होंने गढ़ में किला बनाकर इसका नाम मोहनगढ़ रख दिया था। चूँकि उस समय जब अराजकता बहुत बढ़ गयी तो उदोत सिंह ने अपने पुत्र अमर सिंह को खनियाधाना में रख दिय था। बाद में अमर सिंह के दूसरे पुत्र मानसिंह यहाँ रहने लगे थे फिर जब मानसिंह भी जब ओरछा के राजा बन गए तो महाराज सिंह यहाँ रहने लगे थें महाराज सिंह स्वयं अराजक थे जिस कारण महाराजा विक्रमजीत सिंह ने उन्हें मोहनगढ़ से खनियाधाना खदेड़ कर किला मोहनगढ़ अपने कब्जे में ले लिया था।
यह किला टोरियों और पहाड़ियों एवं घने जंगल के बीच बना हुआ है तथा एक तरफ पूर्वी दिशा में तालाब से सुरक्षित है । एक नाला तो यहाँ जाने के लिए लगभग सात बार पार करना पड़ता है यहीं कारण है कि यह किला सबसे सुरक्षित किला माना जाता था। कोई भी शत्रु यहाँ पर किसी भी दिशा से आक्रमण नहीं कर सकता जबकि इस किले से सभी दिशा में दुश्मनों पर आक्रमण किया जा सकता है। तालाब को पार करते ही तालाब के दक्षिणी किनारे पर किला का एक परकोटा है, जो कि ईट मिट्टी से बना हुआ है। पहाड़ी पर कुछ ऊँचाई पर एक विशाल दरवाजा है जिसकी ऊँचाई लगभग 40 फीट है एवं लंबाई लगभग 20 फीट है यह ‘हाथी दरवाजा’ कहलाता है इस दरवाजे पर लोहे के नुकीले कीले लगे हुए है इसके कारण इस दरवाजे को हाथी भी नहीं तोड़ सकते है। दरवाजे के ऊपरी भाग में महल है जिसमें 6 बड़ी एवं ऊँची गुर्जे है। अंदर कुछ खुली हुई दलानें है यहाँ पर संकट मोचन हनुमान जी का एक मंदिर है। संकट मोचन मंदिर के पास ही नीचे देवी जी की एक छोटी सी मूर्ति भी विराजमान है जो कि खुली हुई है।
किले के मुख्य चैक के पश्चिमी पाश्र्व में खुली दालाने है जिसके नीचे दाये बायें तरफ एक-एक भंड़ार कक्ष है जहाँ पर युद्ध में प्रयोग होने वाले गोला बारूद एवं हथियार आदि सामग्री रखी जाती थी। इन्हीं दालानों के ऊपरी मंज़िल पर सैंनिकों एवं महल के विशिष्ट अधिकारियों के रहने के कक्ष बने हुए है। यहीं पर तीसरी मंजिल पर एक रनिवास भी है जिसे राजमहल कहा जाता है। इसके चारों तरफ आवासीय कक्ष बने हुए है। रनिवास कक्षा में मणिमाला चित्रकारी है। जो कि बहुत अदभुद है अभी भी दिखाई पड़ती है। संवभतः ऐसी चित्रकारी अन्य किसी महल में देखने को नहीं मिलती है।
किला के मुख्य चैंक के उत्तरी भाग पर एक चैक है जिसे संस्कृति चैक कहा जाता है। वहाँ पर एक मंदिर है जिसमें भगवान विष्णु जी की एक आदमकद बहुत ही अदभुद मूर्ति यह मूर्ति काले रंग के पत्थर से बनी है जिसमें भगवान के दसावतार को बहुत खूबसूरती से चित्रिण किया गया है। मूर्ति के अभी भी अनौखी आभा और तेज चमक दिखाई पड़ती है जिसे देखकर भ्रम होता है कि यह मूर्ति अभी बनी हो मानों नव निर्मित हो किन्तु वास्तव में है बहुत प्राचीन। ऐसा सुनने में आता है कि पहले इस मूर्ति के नेत्रों में रत्न जड़े थे किन्तु वर्तमान में वे रत्न दिखाई नहीं पड़ते है।
विष्णु जी के सामने ही एक मूर्ति जो कि कपड़ें से ढकी हुई एक आदमकद है जो कि प्रार्थना की मुद्रा में खड़ी स्थित है जिसे यहाँ के स्थानीय लोग कहते हैं कि यह मूर्ति लक्ष्मी जी की है, लेकिन यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि यह लक्ष्मी जी की ही मूर्ति हैं क्योंकि अभी तक विष्णु जी के साथ-साथ ही लक्ष्मी जी की मूर्ति देखने को मिलती है अर्थात ऐसी अन्य किसी स्थान पर कोई भी मूर्ति के प्रमाण नहीं मिलते जिसमें लक्ष्मी जी भगवान विष्णु की पूजा करती दिखाई पड़ रही हो। संभवतः यह मूर्ति लक्ष्मी जी की न होकर किसी अन्य पूजा करनेवाली महिला पूजारिन आदि की हो सकती है, लेकिन यह भी विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसमें अनेक इतिहासकारों के भिन्न-भिन्न मत है फिलहाल इस मूर्ति को लक्ष्मी जी ही मानकर पूजा की जाती है।
अपनी अनेक विशेषताओं के कारण वर्तमान में भी यह किला मोहनगढ़ दर्शनीय है और पुराने इतिहास की गवाही देता अभी भी सीना ताने खड़ा है। हाॅलाकि उचित देखरेख के अभाव में इस ऐसतिहासिक धरोहर का कुछ हिस्सा क्षतिग्रस्त हो चुका है और जो शेष है भी वह भी मिटता जा रहा हैं इस किले को संरक्षण की बहुत अवाश्यकता है। पुरातत्व की दृष्टि से यह किला बहुत महत्पूर्ण है एवं दर्शनीय है।
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लेगक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
*साभार सन्दर्भ ग्रंथ-*
1-‘बुन्देलखण्ड के दुर्ग’ सन्-2005 लेखक- डाॅ. काशीप्रसाद त्रिपाठी
3-‘टीकमगढ़ जिला गजेटियर’ – डाॅ. नर्मदा प्रसाद पाण्डेय
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– *राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’*
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
जिलाध्यक्ष-वनमाली सृजन केन्द्र,टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
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