वैलेंटाइन डे की वैलेंटाइन डे की खोज कब और किसने की थी? कभी मैंने इसके तह में जानें की कोशिश नहीं की, नहीं कभी इस पर विचार किया। क्योंकि, हमने इसे कभी विषय वस्तु माना ही नहीं। कभी ऐसे फ़ालतू, अनैतिक संस्कारों को तरजीह देने का कष्ट नहीं किया। क्योंकि भारतीय संस्कृति कभी भी ऐसे असभ्य संस्कृति को न तो मान्यता दी है और नहीं कभी देगी।
सुबह-सुबह नींद खुलते ही हमें ध्यान आया, आज कौन सी तारीख़ हो सकती है? क्योंकि पूरे दिन मैंने तेरह फरवरी का कार्य, प्रीवियस डे में निपटाता रहा और रजिस्टर भी मेंटेंन कर डाला। चौदह फरवरी का कार्य दिवस अभी शेष है। इसीलिए तारीख़ याद आनी स्वाभाविक थी। तब हमें स्मरण आया कि आज चौदह फरवरी है? यह एक अलग संस्कृति, एक अलग संकल्प की भांति, भारतीय सांस्कृतिक विरासत पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर रहा है। कुछ चुनिंदा लोगों के लिए यह दिवस खास हो जाता है, जो पूरे सप्ताह इस मौसमी सीजन का लुत्फ़ उठाने में लगे रहते हैं। चाहे वो मींस डे के रुप में हो, चाहें प्रपोज डे के रुप में, चाहे किस डे के रुप में हो, चाहें वैलेंटाइन डे आदि के रुप में ही क्यों न हो? इस दिखावे के युग में वेस्टर्न कल्चर इस तरह से हावी है कि जिसके मद में हमने अपनी संस्कृति को ही सीमित कर डाली है।
वेलेंटइन डे की शुरुआत अमेरिका में सेंट वेलेंटाइन की याद में जन्मी एक अनैतिक सभ्यता से ताल्लुकात रखता है, जो भारतीय संस्कृति को इस तरह दूषित करने में लगी है। हमें इसका ख़मियाज़ा भुगतना ही होगा, जब सौ, पचास सालों में हमारी भावी पीढ़ियों पर इसका पूर्ण प्रभाव हो जायेगा। तब हमारी आने वाली पीढ़ियां, इसे बड़े ही गर्व के साथ स्वीकार करेंगे। ख़ास तौर पर इस तरह के मौसमी त्यौहारों के रूप में जब कुछ युवा वर्ग पूरे समाज को भ्रमित व प्रभावित करने में लगे हैं। जिन्हें शायद इस बात का जरा भी आभास नहीं है कि इनकी इस प्रकार की गतिविधियां, भावी पीढ़ियों का दर्पण है।
इश्क, प्यार, मुहब्बत ये दो दिलों का एक पावन एहसास है। जिसे हमें किसी को दिखाने की आवश्यकता नहीं है और नहीं इस तरह से तोहीन या इजहार करने का। क्षणिक आकर्षण से न तो समाज का, न तो इनका ही भला होने वाला है। ऐसे लोगों का रहन-सहन, आचार विचार इनकी पहचान को दर्शाती है और इनके संस्कार पर भी उंगलियां उठती है। ऐसे अनैतिक कार्यों को कोई भी माता-पिता या सभ्य समाज स्वीकार नहीं करेगा। ये कोई स्थाई रिलेशनशिप का हिस्सा नहीं है। जिसे कोई सभ्य समाज स्वीकार कर सके। हमें इस विषय पर कुछ लिखना नहीं था, लेकिन मेरे अंदर उत्पन्न अंतर्द्वंद्व की पराकाष्ठा ने ऐसे विषय वस्तु को जन्म दिया, तो थोड़ी बहुत लिखना पड़ा।
जितनी दीवानगी वैलेंटाइन डे को लेकर आज की युवा पीढ़ियों में देखी जाती है, उतना ही इसका अंत निराशाजनक भी होता है। जुम्मा-जुम्मा आठ दिन की ही वैधता भगवान ने बड़े ही सम्मान से इन्हें प्रदान की है। वैलेंटाइन डे फेस्टिवल का यह सप्ताह सात फरवरी रोज डे से शुरू होता है और चौदह फरवरी वैलेन्टाईन डे के बाद पंद्रह फरवरी को ब्रेकअप डे साथ इनका अध्याय समाप्त हो जाता है।
हमने एक समृद्ध सभ्यता में जन्म ली है। हमें अपने संस्कृति और विरासत पर गर्व होनी चाहिए। हमारी उन्नत सभ्यता और संस्कृति हमेशा से रही है। हमें किसी के अनैतिक सभ्यता को अपनाने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे लोग अक्सर तुच्छ विचारों से प्रेरित होते है, जिसका परिणाम एक दिन पूरे राष्ट्र को भुगताना होगा। क्योंकि युवाओं पर राष्ट्र निर्माण का सबसे ज्यादा ज़िम्मेदारियां होती है। यदि युवा पीढ़ी इस बात को समझ पायें तो विवेकानंद ने जिस आदर्श भारत निर्माण की परिकल्पना की थी, उनके सपनों को साकार कर एक विशिष्ट राष्ट्र और श्रेष्ठ राष्ट्र का निर्माण हो सकता हैं।
लेखक
राकेश चौरसिया