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भारतीय ज्ञान विज्ञान

21 जून 2016

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इसी संदर्भ में Vinay Jha ji विनय झा जी की यह पोस्ट संदर्भित है- भारत मे जितने प्राचीन प्रमाणिक ग्रन्थ उपलब्ध हैं उतने शेष संसार में नहीं हैं | यह दूसरी बात है कि म्लेच्छ और उनके मानसपुत्र ऋषियों के ग्रन्थों को प्रामाणिक नहीं मानते | भारत के सभी पुस्तकालय जला दिए गए, मन्दिरों से संलग्न पाठशालाएं मन्दिरों के साथ नष्ट किये गए, बाद में अंग्रेजों ने पारंपरिक पाठशालाओं को बन्द करा दिया और ढेर सारी पांडुलिपियाँ ले गए, इसके बावजूद शेष संसार के सभी देशों को मिलाकर जितनी प्राचीन पांडुलिपियाँ बची हैं उससे बहुत अधिक पांडुलिपियाँ केवल भारत में बची हुई हैं , जिनमें से लगभग 15% का ही cataloge सरकार बनवा पायी है और उसका भी छोटा अंश ही प्रकाशित हो पाया है (क्योंकि संस्कृत में शासकों की रूचि नहीं है) | अंग्रेजों ने भारत का जो इतिहास "खोजा" वह कबाड़ा है , उसे पढ़कर अच्छे-खासे इंसान भी गधे बन जाते हैं | अनुमानतः बीस लाख (अटकल) संस्कृत पांडुलिपियाँ बची हुई हैं जिनमे अधिकाँश निजी हाथों में हैं | सबसे अधिक संस्कृत पांडुलिपियाँ काशी और दरभंगा में हैं, जिसके बाद चेन्नई है | काशी का सरस्वती भवन संसार का सबसे बड़ा पांडुलिपि संग्रहालय है जिसकी सारी 95000 पांडुलिपियों का कैटेलॉग इन्टरनेट पर उपलब्ध है, इनमे से 16000 पांडुलिपियाँ भादुरी के निजी पुस्तकालय को वापस कर दी गयी जो अनुचित है क्योंकि सारी प्राचीन पांडुलिपियाँ राष्ट्रीय धरोहर हैं | दरभंगा में लगभग एक लाख पांडुलिपियाँ है जिनका कैटेलॉग जानबूझकर नहीं बनाया जा रहा है और पांडुलिपियाँ चोरी से विदेश भेजी जा रही हैं | वहाँ के भाजपा सांसद कीर्ति झा आजाद को अरुण जेटली से लड़ने के अलावा दूसरा कोई काम नहीं है | चेन्नई के अडयार पुस्तकालय में 60000 पांडुलिपियाँ हैं | पुणे के भंडारकर संग्रहालय में पन्द्रह हज़ार से ऊपर हैं | विदेश के किसी एक भण्डार में चार हज़ार संस्कृत पांडुलिपियाँ भी नहीं है : सबसे अधिक ब्रिटिश म्यूजियम में हैं जिनका कैटेलॉग इन्टरनेट पर उपलब्ध है | पंजाब के होशियारपुर में भी बड़ा भण्डार है, संख्या पता नहीं |लगभग तीन लाख संस्कृत पांडुलिपियों का कैटेलॉग बन चुका है | काशी के सरस्वती भवन की सारी पांडुलिपियों की CD वर्षों पहले बन चुकी हैं किन्तु सड़ रही हैं, किसी को CD देखने की भी अनुमति नहीं है | संस्कृत से पूर्णतया अनजान सूर्यकांत यादव वहाँ संसार के सबसे बड़े पांडुलिपि भण्डार के अध्यक्ष हैं जिनकी कृपा से पिछले पाँच वर्षों से पांडुलिपियों की रक्षा हेतु कीटनाशक का भी छिडकाव नहीं हो पाया है | उत्तर प्रदेश की सरकार को संस्कृत से कोई सरोकार नहीं है | मोदी सरकार के सत्ता में आते ही हमलोगों ने काशी के विद्वानों की बैठक करके केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजा कि काशी के सरस्वती भवन सहित संस्कृत विश्वविद्यालय को केन्द्र सरकार अपने हाथों में ले ले | केन्द्र सरकार ने स्वीकृति दे दी, किन्तु राज्य सरकार अनापत्ति प्रमाणपत्र देने से इनकार कर रही है | राज्य सरकार का मानना है कि संस्कृत के पूरे साहित्य को नष्ट करके ही देश आगे बढ़ सकता है | सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति से अनुमति लेकर पांडुलिपि देख भी सकते हैं और फोटोकॉपी भी करा सकते हैं, किन्तु जीर्ण-शीर्ण पांडुलिपियों को छूने की भी अनुमति नहीं मिल सकती | अन्य संस्थाओं में भी ऐसा ही प्रावधान है |

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सामान्य ज्ञान

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भारतीय ज्ञान विज्ञान

21 जून 2016
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इसी संदर्भ में Vinay Jha ji विनय झा जी की यह पोस्ट संदर्भित है- भारत मे जितने प्राचीन प्रमाणिक ग्रन्थ उपलब्ध हैं उतने शेष संसार में नहीं हैं | यह दूसरी बात है कि म्लेच्छ और उनके मानसपुत्र ऋषियों के ग्रन्थों को प्रामाणिक नहीं मानते | भारत के सभी पुस्तकालय जला दिए गए, मन्दिरों से संलग्न पाठशालाएं मन्

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