कुरुवंश की ढाल था मैं,
राजा शांतनु का पुत्र,
माता गंगा का लाल था मैं,
देखें जो आंख उठाकर,
हस्तिनापुर की ओर,
ऐसे शत्रुओं का काल था मैं,
पिता की खातिर आजीवन ब्रह्मचर्य निभाया था मैने,
तब पिता से इच्छा मृत्यु वरदान पाया था ,
ली थी प्रतिज्ञा जब मैने,
देवताओं ने "भीषण भीषण" चिल्लाया था,
तब मैं देवव्रत से भीष्म कहलाया था,
धृतराष्ट्र का विवाह जब गांधारराज ने ठुकराया था,
एक बार फिर मैंने अपना पराक्रम दिखलाया था।
हुआ जन्म जब दुर्योधन का,
हुए ऐसे ऐसे कृत्य(अपशकुन) थे,
मानों यमराज हस्तिनापुर में,
कर रहे नृत्य थे,
कुरूवंश का करेगा विनाश बालक यह,
ऐसा ज्योतिषियों ने बतलाया था,
परंतु धृतराष्ट्र अपना पुत्रमोह छोड़ ना पाया था,
कुरुओं की उस राजसभा में,
हुआ एक अधर्म था,
जिस रोक ना पाने का,
मुझे आजीवन मर्म था,
जिसका कारण मेरा व्यक्तिगत धर्म था,
धर्मराज ने जब द्युत में स्वयं को दांव पर लगाया था,
हारकर उसने दास धर्म को अपनाया था,
स्वामी(दुर्योधन) के आदेश पालन हेतु,
कुलवधु को उसने दांव पर लगाया था,
दुशासन जब केश पकड़कर,
पांचाली को सभा में लाया था,
तब सूतपुत्र ने नीच चरित्र अपना दिखलाया था,
उसके वचनों ने वस्त्रहरण
दुर्योधन को सुझाया था,
द्रौपदी चीत्कारती रही,
मेरी अंतरात्मा मुझे,
मन ही मन धिक्कारती रही,
तब हुआ सभा में ऐसा चमत्कार था,
पांचाली की रक्षा हेतु,
आया सृष्टि का पालनहार था,
करूंगा मैं(भीम) धृतराष्ट्र के सभी पुत्र का वध,
ऐसा भीम का प्रण था,
हस्तिनापुर के दहलीज पर खड़ा एक महा रण था,
महाभारत के उस युद्ध में,
मैंने त्राहिमाम त्राहिमाम मचाया था,
पांडव सेना के हर योद्धा को मैने हराया था,
अर्जुन भी जब रोक न सका मुझको,
तब मुरलीवाले ने मेरे वध के लिए,
स्वयं सुदर्शन चक्र उठाया था,
कुरुक्षेत्र की उस रणभूमि में,
श्रीकृष्ण ने वास्तविक धर्म का ज्ञान मुझे कराया था,
उन्ही का अनुसरण कर मैंने,
अपनी ही मृत्यु का मार्ग मैने पांडवों को बतलाया था
देख शिखंडी को मैने स्वयं को निहत्था कर डाला था,
लेकर उसका सहारा अर्जुन ने मुझे बींध डाला था।
|जय श्री कृष्णा|
Written by-sanket bhardwaj