26 जुलाई 2022
पुरुष अपने संस्कार भूला,
स्त्री अपनी शर्म और लाज,
जाने किस प्रलय की ओर ,
इशारा कर रहा है,
वक्त का ये बदलता मिजाज
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Ma hindiD
भूख की तड़प धनवान क्या जाने, कहते है ऐश्वर्य किसे, वो भूखा भिखारी अंजान क्या जाने, दे निवाला उसे जो रोटी का, वो तो उसे ही भगवान माने
जन्म लेते ही पराई, समझी जाती है बेटियां, परंतु अक्सर देखा है मैंने, जीवन के गहरे अंधकार में, रोशनी बनकर आती है बेटियां
जिसका बोया अनाज, ये सारा जहां खाता है, कड़वा है परंतु सत्य है, अक्सर वो स्वयं भूखा सो जाता है|
वक्त के फिर से, तकदीर बदल जाती है, पैरों के नीचे से ये धरती खिसक जाती है, वक्त अच्छा जो आए भला क्या रोना, माटी उठा लो हाथ में बन जाए सोना। (दिन में सूर्य चमकता है,तो रात में चंद्रमा,जो की सूर्य स
वक्त का ये कैसा फेर, वक्त का ये कैसा फेर, जो समझते थे खुद को बाहुबली, जो समझते थे खुद को शेर, जो समझते थे खुद को बाहुबली, जो समझते थे खुद को शेर, एक छोटे से वायरस ने लगा दिया उनकी लाशों का ढेर,
पुरुष अपने संस्कार भूला, स्त्री अपनी शर्म और लाज, जाने किस प्रलय की ओर , इशारा कर रहा है, वक्त का ये बदलता मिजाज
कुरुवंश की ढाल था मैं, राजा शांतनु का पुत्र, माता गंगा का लाल था मैं, देखें जो आंख उठाकर, हस्तिनापुर की ओर, ऐसे शत्रुओं का काल था मैं, पिता की खातिर आजीवन ब्रह्मचर्य निभाया था मैने, तब पिता से
वो रात दर्द और सितम की रात होगी, जिस रात रुखसत उनकी बारात होगी, अक्सर उठ जाता हूं मैं नींद से ये सोचकर के एक गैर की बाहों में मेरी सारी कायनात होगी
बना था कानून जो, महिला सुरक्षा के लिए, अक्सर वो पुरुषों को छला करता है, जो मांगा ही नही था कभी उसने साहब, उस दहेज की आग में पुरुष भी जला करता है।
ए खुदा ये तेरी कैसी खुदाई है, ना जाने कौन से कर्मों की सजा हमने पाई है, तड़प उठा है दिल, कांप उठी है रूह, के तड़प उठा है दिल, कांप उठी है रूह, जब देखा की मां के कंधे पर बेटे की अर्थी आई है,
रावण हूं मैं , पाप का प्रतीक हूं, क्या तुलना है मेरी, कलयुग के देवताओं से, मैं राक्षस ही ठीक हूं।