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----- पण्डित जी का भोग ----

10 अगस्त 2015

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आज राजू बड़ा खुश था ! आखिर माँ आज खीर पूरी हलुवा जो बना रही थी ! उछलता फिर रहा था दोस्तों को बता रहा था ! सब बनने के बाद राजू बोला - “ माँ हलुवा दे ना ! " माँ ने कहा - “ चल दूर हो जा ! अभी हाथ मत लगाना , मुश्किल से तो ये समान उधार दिया है लालाजी ने ! पंडित जी को भोजन कराना है ! आज तेरे पिता जी की बरसी है ! " राजू मन को समझाकर की , पंडित जी के खाने के बाद तो मिलेगा ! बाहर खेलने चला गया ! कुछ देर बाद दरवाजे से भारी भरकम पेट वाले पंडित जी ने प्रवेश किया ! जब पंडित जी उठे तो सारे पकवान खत्म हो चुके थे ! पंडित जी के जाने के कुछ देर बाद राजू हलुवे के बारे में सोचता हुआ मां के पास गया तो देखा मां चावल उबाल रही थी और राजू से किसी गुनेहगार की तरह नजरें चुरा रही थी ! - हरेन्द्र धर्रा Posted by Harender

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